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असद मिर्ज़ा
पिछला सप्ताह भारतीय कूटनीति के लिए उम्मीद और चिंता, दोनों लेकर आया। एक तरफ नई दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी विदेश मंत्री वांग यी की मुलाकात को भारत ने फलदायी बताया, वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान के वाणिज्य और विदेश मंत्रियों का ढाका दौरा और वांग यी का इस्लामाबाद जाकर पाकिस्तानी नेतृत्व और सेना से बातचीत करना भारतीय रणनीतिक हलकों के लिए गहरी चिंता का विषय बन गया।
मोदी ने वांग यी के साथ मुलाकात के बाद द्विपक्षीय संबंधों में हुई “लगातार प्रगति” की सराहना की। चीन के विदेश मंत्रालय ने भी कहा कि दोनों देश अब “स्थिर विकास की राह” पर हैं और एक-दूसरे पर भरोसा और समर्थन करते हैं। वांग यी ने विदेश मंत्री एस. जयशंकर और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल से भी बातचीत की, जिसमें सीमा विवाद, तनाव घटाने और सीमांकन जैसे मुद्दों पर विस्तार से चर्चा हुई।
लेकिन भारत की असली चिंता उस बदलते परिदृश्य से जुड़ी है, जो बांग्लादेश और पाकिस्तान की बढ़ती निकटता से सामने आया है। हाल ही में हिंसक अशांति के बाद शेख़ हसीना की सत्ता से विदाई ने ढाका की विदेश नीति को नए रास्ते पर डाल दिया है। पाकिस्तान के वाणिज्य मंत्री जाम कमाल ख़ान के हालिया ढाका दौरे में संयुक्त आर्थिक आयोग को फिर से सक्रिय करने, व्यापार और निवेश आयोग बनाने तथा शुल्क और कोटा जैसे पुराने समझौतों को बहाल करने की बातचीत हुई। बांग्लादेश ने पाकिस्तान से अपने चमड़ा और चीनी उद्योग को विकसित करने में मदद मांगी, साथ ही गेहूँ जैसे खाद्यान्न आयात बढ़ाने का भी संकेत दिया।
इसी दौरान पाकिस्तान के उप प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार भी ढाका पहुंचे। यह 13 वर्षों में पहला उच्च-स्तरीय पाकिस्तानी दौरा था। इस दौरान डार ने सत्तारूढ़ दलों के अलावा विपक्षी दलों—बीएनपी और जमात-ए-इस्लामी—के नेताओं से भी मुलाकात की, जिसने भारत की चिंता और बढ़ा दी। ढाका और इस्लामाबाद के बीच बिना वीज़ा यात्रा समझौते और शिक्षा, मीडिया तथा कूटनीतिक प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने पर सहमति बनी।
चीन ने भी इस समीकरण को और गहराई दी है। बांग्लादेश के सेना प्रमुख जनरल वाकर-उज़-ज़मान हाल ही में चीन गए, जहाँ उन्होंने वहां के शीर्ष नेतृत्व से मुलाकात की। रक्षा प्रशिक्षण और हथियारों की आपूर्ति में चीन पहले से ही बांग्लादेश का प्रमुख भागीदार है। इसी तरह वांग यी ने इस्लामाबाद में पाकिस्तान के सेना प्रमुख असीम मुनीर से मुलाकात की और क्षेत्रीय सुरक्षा, अफगानिस्तान और खाड़ी क्षेत्र पर चर्चा की। इसमें आर्थिक सहयोग और चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (CPEC) को और आगे बढ़ाने पर विशेष जोर रहा।

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ की चीन यात्रा की भी तैयारी है, जहाँ वे CPEC-II की शुरुआत करेंगे। यह परियोजना गिलगित-बाल्टिस्तान और पाकिस्तान-प्रशासित कश्मीर से होकर गुजरती है, जिन पर भारत दावा करता है। इस लिहाज़ से यह परियोजना सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि भारत की संप्रभुता के लिए सीधी चुनौती है। ग्वादर बंदरगाह भी भारत की चिंता बढ़ाता है, क्योंकि इसके व्यावसायिक उपयोग के साथ-साथ नौसैनिक ठिकाने के रूप में इस्तेमाल की आशंका जताई जाती है।
इन घटनाक्रमों के बीच भारत के रणनीतिक हलकों में विशेष रूप से सिलिगुड़ी कॉरिडोर या “चिकन नेक” को लेकर चिंता बढ़ रही है। बांग्लादेश में चीन और पाकिस्तान का बढ़ता प्रभाव भारत की सुरक्षा चुनौतियों को और कठिन बना सकता है। रक्षा प्रतिष्ठान को यह आशंका भी है कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसियाँ बांग्लादेश में सक्रिय होकर भारत के प्रभाव को कम करने की कोशिश कर रही हैं।
हालांकि पाकिस्तान के लिए भी यह रास्ता आसान नहीं है। CPEC-I पहले ही उसके लिए भारी आर्थिक बोझ साबित हुआ है। अधूरे प्रोजेक्ट, बढ़ते कर्ज़ और ऊर्जा संकट ने उसे कमजोर किया है। इसके बावजूद पाकिस्तान CPEC-II को रोज़गार और विकास का साधन बताकर चीन की पकड़ को और मजबूत बना रहा है।
कुल मिलाकर दक्षिण एशिया में तेजी से बदलते समीकरण भारत के लिए नई कूटनीतिक चुनौती खड़ी कर रहे हैं। चीन, पाकिस्तान और बांग्लादेश आपसी सहयोग गहरा कर भारत को चारों ओर से घेरने की रणनीति पर काम करते दिख रहे हैं। भारत की परंपरागत विदेश नीति ने हमेशा संतुलन और पारदर्शिता को प्राथमिकता दी है, न कि किसी देश को दूसरे के खिलाफ इस्तेमाल करने की चालबाज़ी। इस वजह से आने वाले समय में उसे और भी सावधानी और समझदारी से कदम उठाने होंगे।
भारतीय कूटनीति को अब बहुपक्षीय मंचों का सहारा लेने, अपने पड़ोसियों से नए संवाद स्थापित करने और आंतरिक सुरक्षा तैयारियों को मज़बूत करने पर ध्यान देना होगा। अन्यथा बदलते हालात चीन-पाकिस्तान-बांग्लादेश की तिकड़ी को भारत के लिए एक गंभीर रणनीतिक चुनौती में बदल सकते हैं।
भारत की तीन प्रमुख चिंताएँ
- सिलिगुड़ी कॉरिडोर (चिकन नेक): चीन और पाकिस्तान के बढ़ते प्रभाव से यह क्षेत्र और अधिक संवेदनशील बनता जा रहा है।
- CPEC-II परियोजना: गिलगित-बाल्टिस्तान और पीओके से गुजरने के कारण भारत की संप्रभुता पर सीधी चुनौती।
- ढाका-इस्लामाबाद निकटता: बांग्लादेश में राजनीतिक बदलाव के बाद पाकिस्तान के साथ गहराते रिश्ते भारत की क्षेत्रीय स्थिति को कमजोर कर सकते हैं।
असद मिर्ज़ा, नई दिल्ली स्थित वरिष्ठ टिप्पणीकार हैं। वे राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय, रक्षा और सामरिक विषयों, पर्यावरणीय मुद्दों तथा अंतर्धार्मिक संवाद पर लिखते हैं इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के निजी हैं। इनका समाचारपत्र या संपादक के विचारों से अनिवार्य रूप से मेल खाना आवश्यक नहीं है।
