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भारत में अर्थव्यवस्था का औपचारिक रूप से विस्तार केवल आंकड़ों में नहीं हो रहा, बल्कि अब यह लैंगिक समावेशिता की दिशा में भी तेजी से बढ़ रहा है। भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की आर्थिक अनुसंधान विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, देश में मौजूद 1.52 करोड़ से अधिक सक्रिय GST पंजीकरणों में से हर पाँचवां व्यवसाय ऐसा है जिसमें कम से कम एक महिला भागीदार है। इतना ही नहीं, 14% व्यवसाय ऐसे हैं जिनमें केवल महिलाएं ही संचालक या मालिक हैं, जो औपचारिक क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी का संकेत है।

यह भागीदारी विशेष रूप से प्राइवेट लिमिटेड कंपनियों और लिमिटेड लाइबिलिटी पार्टनरशिप (LLP) जैसे कॉर्पोरेट ढांचे में ज्यादा दिख रही है। SBI के ग्रुप चीफ इकनॉमिक एडवाइज़र डॉ. सौम्यकांति घोष ने बताया कि यह रुझान, आयकरदाताओं में महिलाओं की 15% हिस्सेदारी और कुल बैंक जमा में 40% हिस्सा जैसे आंकड़ों के साथ मिलकर, महिला सशक्तिकरण की नई तस्वीर पेश करता है।

1 जुलाई 2025 को GST को लागू हुए आठ साल पूरे हो गए। वर्ष 2017 में शुरू की गई इस प्रणाली ने अप्रत्यक्ष करों की जटिलता को हटाकर एकीकृत कर प्रणाली की शुरुआत की। इससे व्यापार में पारदर्शिता बढ़ी, लागत कम हुई और राज्यों के बीच माल की आवाजाही सुगम बनी। केवल पांच वर्षों (FY21–FY25) में ही GST संग्रह दोगुना हो गया है और अब मासिक औसत संग्रह ₹2 लाख करोड़ तक पहुंच चुका है।

GST राजस्व में पांच प्रमुख राज्य—महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश—41% हिस्सा रखते हैं। वहीं छह राज्य ऐसे हैं जिन्होंने सालाना ₹1 लाख करोड़ से अधिक GST संग्रह का आंकड़ा पार किया है। इन राज्यों में कुल घरेलू संग्रह में 30% से अधिक हिस्सा IGST (एकीकृत GST) का है, जो बताता है कि बड़े राज्य अन्य राज्यों को भी राजस्व बढ़ाने में मदद कर रहे हैं।

हालांकि, रिपोर्ट में एक चौंकाने वाली बात सामने आई है: तेलंगाना, केरल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और यहां तक कि कर्नाटक जैसे समृद्ध राज्य, अपने सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के अनुपात में अपेक्षाकृत कम GST पंजीकृत करदाता रखते हैं। दूसरी ओर, उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात जैसे राज्य, अपने GSDP के मुकाबले कहीं अधिक GST करदाता रखते हैं, जो बताता है कि इन राज्यों में औपचारिक क्षेत्र में विस्तार की बड़ी संभावनाएं हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, FY25 तक कर संग्रह और आर्थिक औपचारिकता में संतुलन आता दिख रहा है, और इसमें महिला उद्यमियों की भूमिका निर्णायक बनती जा रही है। भारत की आर्थिक प्रगति में अब महिलाएं केवल सहभागी नहीं, बल्कि नेतृत्वकर्ता बन रही हैं।