आर. सूर्यामूर्त‍ि

भारत ने 2025-26 खरीफ सीजन के लिए खाद्यान्न उत्पादन में हल्की बढ़ोतरी का अनुमान जताया है, हालांकि अनियमित बारिश के कारण कई क्षेत्रों में फसल तनाव देखने को मिला। कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान द्वारा बुधवार को जारी पहला अग्रिम अनुमान कुल खरीफ खाद्यान्न उत्पादन को 173.3 मिलियन टन बताता है, जो पिछले वर्ष की तुलनात्मक अवधि से 3.87 मिलियन टन अधिक है।

मंत्रालय ने धान, मक्का और तिलहन जैसी कई प्रमुख फसलों में उल्लेखनीय वृद्धि को रेखांकित किया है। सरकार का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में “कृषि क्षेत्र में निरंतर सकारात्मक प्रयासों” से यह बढ़ोतरी संभव हुई है। हालांकि यह अनुमान राज्यों से प्राप्त रिपोर्टों पर आधारित है और असमान मानसून के प्रभाव अंतिम आंकड़ों को बदल सकते हैं।

धान और मक्का में मजबूत बढ़त

खरीफ धान उत्पादन 124.5 मिलियन टन अनुमानित है, जो पिछले वर्ष से करीब 1.7 मिलियन टन अधिक है। मक्का में वृद्धि और तेज है—उत्पादन 28.3 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो 2024-25 की तुलना में 3.5 मिलियन टन ज्यादा है।

मंत्रालय ने कहा कि भले ही कुछ इलाकों में अत्यधिक वर्षा से फसलों को नुकसान पहुंचा, लेकिन “अधिकांश क्षेत्रों को अच्छे मानसून का लाभ मिला,” जिससे धान और मोटे अनाज की पैदावार बढ़ी।

पोषक अनाज/मिलेट्स का कुल उत्पादन 41.4 मिलियन टन, जबकि खरीफ दालों का उत्पादन 7.41 मिलियन टन रहने का अनुमान है। दालों में तूर 3.60, उड़द 1.20 और मूंग 1.72 मिलियन टन उत्पादन का अनुमान है।

तिलहनों में उछाल, सोयाबीन की पैदावार बढ़ी

भारत का तिलहन उत्पादन भी तेज बढ़त दर्शा रहा है। कुल खरीफ तिलहन उत्पादन 27.56 मिलियन टन अनुमानित है, जिसमें 11.09 मिलियन टन मूंगफली और 14.27 मिलियन टन सोयाबीन शामिल हैं।

कपास का उत्पादन 29.2 मिलियन गांठ (प्रत्येक 170 किग्रा) और जूट-मेस्टा का उत्पादन 8.34 मिलियन गांठ (180 किग्रा) रहने का अनुमान है।

गन्ना उत्पादन 475.6 मिलियन टन रहने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष से 21 मिलियन टन अधिक है—यह शक्कर उद्योग के लिए स्थिर आपूर्ति का संकेत देता है, हालांकि वैश्विक कीमतें और निर्यात प्रतिबंध अभी भी प्रमुख कारक बने हुए हैं।

विश्लेषण: उत्पादन बढ़ा, चुनौतियां कायम

उत्पादन में वृद्धि खाद्य महंगाई से निपटने की कोशिशों को राहत देती है। अच्छा खरीफ उत्पादन आमतौर पर चावल, दालों और तेलों की कीमतों में तेजी को नियंत्रित करता है।

लेकिन चुनौतियां बनी हुई हैं। शुरुआती अनुमान अक्सर फसल-कटाई के वास्तविक आंकड़ों के आने पर बदल जाते हैं—विशेषकर बदलते जलवायु पैटर्न के कारण।

कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि उत्पादन बढ़ने से किसानों की आय स्वतः नहीं बढ़ती, जब तक कि खरीद प्रणाली सुचारु न रहे और मंडी कीमतें स्थिर न हों। मक्का और सोयाबीन के उभरते उत्पादन के बावजूद, वैश्विक कीमतों में नरमी किसानों की कमाई प्रभावित कर सकती है।

असमान मानसून के चलते कुछ क्षेत्रों में बेहतर पैदावार हुई, जबकि पूर्वी और प्रायद्वीपीय भारत के कई जिले नुकसान से जूझते रहे—यह भारतीय कृषि की वर्षा-निर्भर संरचना की नाजुकता को फिर सामने लाता है।

आगे क्या

मंत्रालय ने संकेत दिया है कि संशोधित अनुमान फसल-कटाई और बाद के आंकड़ों को शामिल करेंगे। फिलहाल, ये अनुमान एक आशावादी तस्वीर पेश करते हैं—जिससे पता चलता है कि भारत ने खरीफ में बड़े घाटों से बच तो लिया है, लेकिन मौसम की अनिश्चितताओं और मूल्य उतार-चढ़ाव का खतरा अभी भी मौजूद है।