नोएडा।

योगदा सत्संग सोसायटी के सेक्टर 62 स्थित नोएडा आश्रम में परमगुरु स्वामी युक्तेश्वर का महासमाधि दिवस मनाया गया। इस अवसर पर स्वामी युक्तेश्वर के जीवन परिचय और गुरु शिष्य संबंध पर बोलते हुए स्वामी नित्यानंद ने उपस्थित साधकों केा बताया कि सारी दुनिया जानती है कि श्री युक्तेश्वर  ज्ञानावतार थे।


स्वामी नित्यानंद ने इस बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि युक्तेश्वर ने सिर्फ गीता के 9 अध्यायों पर भाष्य लिखा बल्कि अपनी पुस्तकों द्वारा पूर्व के ज्योतिषीय गणना केा सही करते हुए यह साबित कर दिया कि वर्तमान युग द्वापर है न कि कलियुग। कलियुग 500 ईस्वी तक ही था, 500 से लेकर 1700 ईस्वी तक कलियुग व द्वापर का संधिकाल था। 1700 ईस्वी से द्वापर युग चल रहा है। उन्होंने बताया कि आज के तथाकथित संतों की तरह स्वामी युक्तेश्वर ज्ञान नहीं बधारते थे। वें शांत व चुप रहते थे। उनका मानना  था कि ज्ञान सिर्फ पात्र लोगों को दिया जा सकता है , उन्हें पता होता है कि ज्ञान किसे देना है। असल में युक्तेश्वर जी सदा ईश्वर के संपर्क मे रहते थे इसलिए वे कम बोलते थे। उन्होंने सिद्ध कर दिया था कि सभी धर्माे का सार एक ही है, वह है ईश्वर की प्राप्ति। उनका कहना था कि जो धर्म इसको नहीं मानता है वह धर्म नहीं है।


ज्ञात हो कि स्वामी युक्तेश्वर 20 वीं सदी के महान संत सदगुरु परमहंस योगानंद के गुरु थे , योगदा साधकांे के गुरु के गुरु होने के कारण उन्हें परमगुरु कहा जाता है। केंद्र सरकार ने स्वामी युक्तेश्वर के शिष्य परमहंस के पूरे विश्व को भारत के क्रिया योग की महत्ता से अवगत कराने के योगदान को देखते हुए उनके सम्मान में दो बार डाक टिकट तथा सिक्के जारी चुकी है।
स्वामी नित्यानंद ने योगानंद की पुस्तक योगी कथामृत के कई अध्याय को उद्धृत करते हुए बताया कि कैसे उन्होंने अपने शिष्य को ईश्वर प्राप्ति में मदद की। युक्तेश्वर जी ने न सिर्फ  शिष्य को अपनी शिक्षा को पूरी करने के लिए प्रोत्साहित किया बल्कि परीक्षा उत्तीर्ण करने के लिए विशेष कृपा प्रदान की। उन्होंने बताया कि परमहंस योगानंद केा अमेरिका यूरोप में भारत के अध्यात्म का प्रचार प्रसार कर ईश्वर प्रेमी भक्तों की ज्ञानपिपासा शांत करने के लिए महावतार बाबाजी ने चुना था। इसके लिए महावतार बाबा जी ने युक्तेश्वर जी को योगानंद को प्रशिक्षित करने की जिम्मेवारी सौंपी थी। स्वामी युक्तेश्वर ने 10 साल की कड़ी व सख्त प्रशिक्षण दे कर अपने शिष्य केा तैयार किया था।


उन्होंने बताया कि गुरु ने अपनी पुस्तक में लिखा है कि युक्तेश्वर जी बहुत ही सख्त थे। इसलिए जो भी शिष्य प्रशिक्षण केे लिए आता था भाग जाता था। सिर्फ वे ही टिके रहे। लेकिन दूसरे लोगोें के लिए युक्तेश्वर जी मृदु स्वभाव के थे। वे अतिथियों को बिना भोजन कराए  लौटने नहीं देते थे।


स्वामी नित्यानंद ने बताया कि ईश्वर की प्राप्ति का मार्ग सिर्फ गुरु ही बताता है। गुरु के बिना ईश्वर की प्राप्ति असंभव है। उन्होंने बताया कि गुरुओं ने वचन दिया है कि जबतक भगवान की प्राप्ति नहीं हो जाती तबतक वे अपने शिष्यों को मदद करते रहेेंगे चाहे यह मदद जन्मोजन्म ही क्यों न करना पड़े। स्वामी जी ने बताया कि हम योगदा साधक कितने भाग्यशाली हैं कि हमें राह दिखाने के लिए न सिर्फ गुरुओं की  श्रृखंला है बल्कि दो अवतार भी हैं।


समारोह का समापन पुष्पाजंलि से हुआ। इस मौके पर स्वामी निष्ठानंद,स्वामी अद्यानंद तथा स्वामी आलोकानंद की गरिमामय उपस्थिति से महौल भक्तिमय हो गया। साधकों में फलों का प्रसाद भी वितरित किया गया।