उदयपुर

कविता की दुनिया संवेदना और प्रेम की अनुरागी दुनिया है जो बगैर बर्बरता फैलाए, दिलों से दिलों तक दस्तक देती है । शरद पूर्णिमा की यह महारास की रात और निर्मल गीत चांदनी में कविता और गजलों की बहार माननीय संवेदनाओं को आज ताज़गी और राहत दे रही है ऐसी * गीत चांदनी* हर वर्ष एक सुंदर परंपरा के रूप में सभी शहरों में होती रहनी चाहिए । उक्त विचार यहां मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय के कुलपति *प्रो. जेपी शर्मा* ने यहां मादड़ी में रीको कॉलोनी स्थित यूनिक वाटिका में डाॅ. धर्मेश जैन द्वारा आयोजित* निर्मल गीत चांदनी* के अवसर पर व्यक्त किए। आरंभ में डाॅ . धर्मेश जैन ने सभी अतिथियों का भाव- भीना स्वागत करते हुए घोषणा की कि वे आजन्म अपने अनुज स्व. निर्मल कुमार जैन की की स्मृतियों को *निर्मल गीत चांदनी* के रूप में अक्षुण्ण रखने की कोशिश करेंगे। आरंभ में इस मौके पर उज्जैन से पधारी साध्वी अखिलेश्वरी दीदी मां ने शरद पूर्णिमा एवं इस अवसर पर क्षीर पान के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि यह रात कृष्ण के पावन महारास की अलौकिक रात है , भारत भूमि पर हज़ारों गायें उस युग में दूध बरसाती हुई अनोखी महारास की रात में भगवान कृष्ण के साथ साथ शामिल होती थीं। हमारे यहां उसी परंपरा में शरद पूर्णिमा क्षीेर पान किया जाता है।

इस अवसर पर ह्रदय रोग विशेषज्ञ डॉ.जे.के. छापरवाल ने भी स्व. निर्मल जैन की स्मृतियों को ताजा करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी । नाथद्वारा मंदिर मंडल के अधिकारी पंडित सुधाकर शास्त्री एवं मीरा आश्रम के श्री अरुण सिंह सोलंकी ने भी सभी को आशीर्वाद प्रदान किया। इस अवसर पर शहर की अनेक गणमान्य उद्योगपति, न्यायाधीश कॉलेज डीन आदि अतिथि के रूप में मौजूद थे । *निर्मल गीत चांदनी* का आग़ाज़ डॉ. देवेंद्रस्वरों में गाई ग़ज़लों से हुआ। जिसमें उन्होंने *रिवाजों रस्म निभाने की क्या जरूरत है ? मेरे हुकुम को ज़माने की क्या हिरण की मधुर स्वरों में गाई ग़ज़लों से हुआ। जिसमें उन्होंने *रिवाजों रस्म निभाने की क्या जरूरत है ? मेरे हुकुम को ज़माने की क्या ज़रूरत है? के साथ ही राहत इंदौरी के एक क़लाम के साथ उन्होंने जगजीत सिंह की मशहूर ग़ज़ल” *ये दौलत भी ले लो, ये शोहरत भी ले लो “*पेश करके खूब तालियां बटोरी और अपना रंग जमाया। प्रारंभिक संचालन जानी-मानी कवयित्री डॉ. शकुंतला सरूपरिया ने किया ।

*निर्मल की चांदनी” में “कवि सम्मेलन” का आग़ाज़ नाथद्वारा के ख्यात नाम गीतकार- कवि गिरीश विद्रोही के संचालन में हुआ ‌,जिसे स्थानीय गीतकार मनमोहन मधुकर ने अपनी सरस्वती वंदना से प्रारंभ किया वरिष्ठ ग़ज़लकार प्रेम प्यारी भटनागर ने मधुर स्वरों में अपनी मोहब्बत भरी ग़ज़ल मोहब्बत के सिवा कुछ भी यहां न काम आता है, मोहब्बत से अगर देखो बड़ा आराम आता है! पढ़ी। इस मौके पर जयपुर से आए हिंदी -ब्रजभाषा के वरिष्ठ कवि -गीतकार श्री विट्ठल पारीक ने अनेक प्रभावी दोहों के साथ सुंदर गीत * न जाने कैसी हवा चल रही है ? हिमगिरि के मन में अगन जल रही है ।*और एक “प्रेम गीत ” *एक दिन राह में हमने देखा “उन्हें कल्पना की डगर चांद ले हाथ में “”उनके दोनों ही गीत खूब सराहे गए । चित्तौड़गढ़ से आए राष्ट्रीय गीतकार अब्दुल जब्बार ने अपने मशहूर गीत” गंगा “”मीरा़” के साथ अनेक सुंदर मुक्तकों से गीत चांदनी को सफल बनाया । कवयित्री डॉ. शकुंतला सरूपरिया ने *गीत “तुम्हें चांदनी में ढूंढूं, तुम्हें रोशनी में ढूंढूं,तुम्हें ज़िंदगी में ढूंढूं, तुम्हें बंदगी में ढूंढूं “सुरीले अंदाज़ में पेशकर स्व. निर्मल जैन को श्रद्धांजलि दी और अपना मशहूर राजस्थानी गीत धीमे-धीमे उत्तरयो चांद ,हौले हौले चाल्यो चांद गाकर के शरद पूर्णिमा की प्रभात को जीवंत किया। इस गीत चांदनी में स्थानीय कवि एवं गीतकार डॉ. मनोहर श्रीमाली ने अपनी मशहूर हास्य की रचनाएं* “चलो दिलदार चलो “और* जंडे होवै टांट वंडे होवे ठाठ” मेवाड़ी भाषा की इस रचना को को शानदार अंदाज में प्रस्तुत कर श्रोताओं को गुदगुदाया। सूत्रधार श्री गिरीश विद्रोही ने अनेक मुक्तकों की शानदार प्रस्तुति के साथ अपने मशहूर *”मीरां गीत” एवं एक प्रेम गीत के साथ राजस्थानी गीत” *पहली पहली रात अणबोल्यो रियो रे म्हारो सायबो* से कवि सम्मेलन को नवीन ऊंचाइयां दी.!

बड़गांव से आये युवा कवि दुष्यंत ओझा ने मुक्तकों के साथ गीत *तुमपे लिखता रहा मैं मिटाता रहा -दिल का उपवन खिला कर जलाता रहा* पेश कर सभी को प्रभावित किया। मुंबई से आए आर.जे प्रदीप पांडे ने भी अंग्रेजियत को दूर कर अपनी मातृभाषा की तरफ लौटने की अपील करती हुई असरदार शायरी पेश की। देर रात तक चले इस कवि सम्मेलन में धन्यवाद की रस्म श्री अशोक जैन ने अदा की। इस अवसर पर निमंत्रित सभी अतिथियों ने क्षीर पान का भोजन के साथ आनंद लिया! भवदीय।

डॉ. धर्मेश जैन संयोजक *निर्मल गीत चांदनी* उदयपुर