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डॉक्टर दिनेश प्रसाद मिश्र

भारतीय राजनीतिक व्यवस्था में संसद तथा विधान मंडलों के सदस्यों के चुनाव हेतु शैक्षिक योग्यता का कोई प्रावधान न होने के कारण पूर्ण रूपेण अशिक्षित व्यक्ति भी वहां पहुंचकर राज्य एवं राष्ट्र के उत्थान हेतु नीति निर्धारक बनकर कानून के सृजन में अपना योगदान दे रहा है ,जबकि सामाजिक एवं शासकीय व्यवस्था में किसी भी कर्मचारी की नियुक्ति की प्राथमिक योग्यता उस की शैक्षिक योग्यता है ,जो समय-समय पर उसके पद के अनुसार निर्धारित की जाती है ।

संसद एवं विधान मंडल के सदस्यों के चुनाव हेतु कोई शैक्षिक योग्यता संविधान में निर्धारित नहीं की गई । संविधान निर्माण के समय डॉ राजेंद्र प्रसाद ने योग्यता के बिंदु पर अपना मत व्यक्त करते हुए कहा था कि संसद में जन प्रतिनिधि के रूप में उपस्थित होकर राष्ट्र निर्माण का कार्य करने वाले व्यक्ति भले ही शैक्षिक रूप से संपन्न न हो किंतु वह निश्चित रूप से सच्चरित्र हों,उनके चरित्रवान होने में किसी प्रकार का संदेह न हो ,जिससे वह बिना किसी धर्म जाति वर्ग आदि के मोह पाश में पड़े समाज एवं राष्ट्र के हित में निर्णय ले सकें , जनप्रतिनिधियों के लिए शिक्षित होने के स्थान पर सच्चरित्र होना आवश्यक है जनप्रतिनिधियों का आचरण और उनका स्वभाव ही सच्चे लोकतंत्र का आधार है जो उसे मजबूती प्रदान करता है श,किंतु व्यवहार में यह देखा जा रहा है की पहली दूसरी लोकसभा में प्रारंभिक चुनाव में भले ही संसद सदस्य एवं विधान मंडलों के सदस्यों के रूप में सच्चरित्र लोगों का चुनाव होता रहा हो, किंतु आज परिवेश पूरी तरह से बदल चुका है सच्चरित्र एवं सज्जन लोग चुनाव से दूर भाग रहे हैं और चुनकर पहुंच रहे हैं माफिया ,अपराधी एवं तरह-तरह के दूर्गुणों से युक्त प्रतिनिधि ,जिन्हें देखते हुए जनप्रतिनिधियों को वापस बुलाने के अधिकार की मांग मांग समय-समय पर की जाती रही है, जिस पर अभी तक विचार नहीं किया गया। फलस्वरूप राजनीतिक दल अपने प्रतिनिधियों के रूप में किसी भी व्यक्ति को नामित करने के लिए स्वतंत्र हैं ,उनकी कसौटी का एकमात्र आधार प्रत्याशी का येन केन प्रकारेण चुनाव में जीत प्राप्त करना है ,भले ही वह क्षल बल, धन बल या बाहुबल के आधार पर प्राप्त की गई हो तथा बिजयी प्रतिनिधि में नाना प्रकार के दुर्गुण हों, जिसे देखते हुए मतदाताओं की ओर से चुनाव आयोग से समस्त प्रत्याशियों को अस्वीकार करने का अधिकार प्रदान करने की मांग भी उठी, जिसे स्वीकार कर माननीय सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 2013 में एक जनहित याचिका मैं निर्णय पारित करते हुए चुनाव आयोग को वोटिंग मशीन में प्रत्याशियों के नाम एवं उनके चुनाव चिन्ह के साथ नोटा का भी विकल्प उपलब्ध कराने का आदेश दिया गया।

नोट none of the above शब्द समूह का संक्षिप्त रूप है ,जिसका हिंदी में अर्थ है ‘इनमें से कोई नहीं’ ‘। वर्ष 2013 में उच्चतम न्यायालय के पिपुल्स आफ सिविल लिबर्टीज की जनहित याचिका में दिए गए निर्णय के परिणाम स्वरूप ईवीएम मशीन में अंतिम प्रत्याशी के नाम के रूप में नोटा को सम्मिलित किया गया ,जिसके चुनाव चिन्ह के रूप में क्रॉस चिन्ह को ईवीएम मशीन में सबसे अंत में अंकित किया गया ।अब कोई मतदाता मतदान के समय यदि प्रत्याशियों में से किसी भी प्रत्याशी को मतदान के योग्य नहीं पाता तो वह नोटा का बटन दबाकर समस्त प्रत्याशियों को अस्वीकार कर सकता है। मतदाताओं द्वारा इसका उपयोग भी किया जा रहा है। अब तक किसी चुनाव में सर्वाधिक नोटा उपयोगकर्ता मतदाता 2-3% रहे हैं,जो परिणाम को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण रहे है ।चुनाव आयोग की व्यवस्था के अनुसार यद्यपि नोटा को प्राप्त मत निर्णायक ना होकर निरस्त मतों की कोटि में ही रखे जाते हैं किंतु उनका अपना महत्त्व चुनाव के परिणाम को प्रभावित करने में दिखाई देता है। चुनाव आयोग की व्यवस्था के अनुसार यदि नोटा को किसी चुनाव क्षेत्र में सर्वाधिक मत प्राप्त होते हैं तो भी वह मतदान को सीधे प्रभावित नहीं करते ,नोटा को प्राप्त समस्त मत निरस्त मत के रूप में माने जाते हैं तथा नोटा के बाद सर्वाधिक मत प्राप्त करने वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित कर दिया जाता है यद्यपि अभी तक ऐसी कोई स्थिति नहीं आई, किंतु इस स्थिति की संभावना को देखते हुए पूर्व चुनाव आयुक्त टी एस कृष्णमूर्ति ने यह सुझाव दिया है कि यदि चुनाव में हार जीत का अंतर नोटा को प्राप्त मतों से कम है तो उस चुनाव को निरस्त कर पुन:चुनाव कराया जाना चाहिए। चुनाव व्यवस्था में चुनाव आयोग द्वारा अभी तक यह सुधार तो नहीं किया गया किंतु संभव है निकट भविष्य में चुनाव व्यवस्था में उक्त संशोधन कर यह व्यवस्था समाहित कर दी जाए ।नोटा की व्यवस्था को ला लागू करने वाला भारत 14 वां देश है , भारत के पूर्व कोलंबिया, यूक्रेन, ब्राज़ील, बांग्लादेश, इंग्लैंड ,स्पेन ,चिली, फ्रांस ,बेल्जियम, ग्रीस और रूस में नोटा का प्रयोग सफलतापूर्वक किया जा रहा है ।इन देशों के अलावा अमेरिका भी इसका इस्तेमाल कुछ मामलों में करने की अनुमति देता है। गत संसदीय चुनाव में पाकिस्तान ने भी प्रारंभ में नोटा के उपयोग को स्वीकार किया था किंतु पाकिस्तान सरकार द्वारा अंत में उसे अस्वीकार कर दिए जाने से वहां मतदान व्यवस्था में मतदाताओं को नोटा के उपयोग का अधिकार प्रदान नहीं किया गया। मतदान में नोटा का विकल्प प्राप्त होने से उन लोगों को भी मतदान करने अपने मत का उपयोग करने का अवसर मिल जाता है जो अपने प्रसिद्ध पसंदीदा उम्मीदवार के ना होने के कारण मतदान करने नहीं जाते थे। नोटा के उपयोग के अधिकार उपलब्ध होने से वह अब समस्त उम्मीदवारों को अस्वीकार करते हुए अपना मतदान कर सकते हैं। चुनाव आयोग द्वारा नोटा के उपयोग का आशय मात्र यह था की राजनीतिक दलों द्वारा सच्चरित्र समाजसेवी तथा समाज के आदर्श लोगों को प्रत्याशी बना कर चुनाव पर उतारा जाए जो चुने जाने पर राष्ट्र एवं समाज की सेवा अपना सर्वोपरि धर्म समझ कर करें , किंतु उसका कोई परिणाम सामने नहीं आ रहा है ।राजनीतिक दल चुनाव की दौड़ में सफलता प्राप्त करने वाले घोड़े पर ही दांव लगा रहे हैं। वह प्रत्याशी के भूत एवं वर्तमान पर न कोई नजर डालते हैं और न ही उसकी सिद्धांत हीनता पर ही विचार करते हैं, अपितु उसके चुनाव जीतने की क्षमता को दी दृष्टि में रखकर उसकी अनेकानेक कमियों को नजरअंदाज कर प्रत्याशित घोषित कर देते हैं। प्रत्याशियों का कोई राजनीतिक सिद्धांत ना होने तथा अवसरवाद को महत्व देकर निरंतर दल-बदल करने जैसे महत्वपूर्ण दुर्गुणों पर भी कोई नजर नहीं डालते ।उदाहरण के लिए बांदा लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा ,कांग्रेस एवं सपा द्वारा घोषित उम्मीदवार पूर्व में 2-3 राजनीतिक दलों के प्रत्याशी रहकर संसद की शोभा बढ़ा चुके हैं और अब नए दल में आकर जनता से संसद पहुंचाने की अपेक्षा करते हुए अपने पक्ष में मतदान किए जाने की मांग कर रहेहैं। स्पष्ट है ऐसे प्रत्याशियों का कोई राजनीतिक सिद्धांत ना होकर स्वार्थ सेवा ही सिद्धांत है, फिर भी देश के प्रमुख 3 राजनीतिक दलों ने उन्हें अपने प्रतिनिधि के रूप में चुनाव समर में उतार दिया है ।यह तो एक उदाहरण है। देश के अनेक संसदीय क्षेत्रों में ऐसे ही प्रत्याशी बनाए जाते हैं। इतना ही नहीं नहीं दल बदल के माहिर राजनेताओं के साथ साथ अपराधी माफिया भी प्रत्याशी बनने में सफल होते है। ऐसी स्थिति मे उनके विरुद्ध मतदाता के पास नोटा ही एकमात्र हथियार है, जिसका उपयोग वह कर सकता है।

औ‌r वर्तमान लोकसभा चुनाव में नोटा के उपयोग हेतु कतिपय व्यक्तियों संगठनों के द्वारा उसके प्रचार प्रसार का कार्य भी किया जा रहा है। प्रयाग के महाकुंभ में कलकत्ता विश्वविद्यालय से स्नातक उत्तर प्रदेश की बलिया जिले कि निवासी किन्नर अनुष्का ने वर्तमान चुनावी व्यवस्था के विरुद्ध बिगुल बजा कर नोटा का प्रयोग करने हेतु माहौल बनाने का कार्य प्रारंभ किया । किन्नर समुदाय को अपने प्रचार प्रसार में जोड़ कर इस मुहिम को मूर्त रूप देने का प्रयास करते हुए वह घर घर जाकर खुशियों में बधाई गीत गाकर लोगों से नोटा का समर्थन मांगती हैं।उनका कहना है कि राजनीतिक दलों द्वारा सच्चरित्र प्रत्याशियों को चुनाव में न उतार कर चुनाव जीतने की संभावना वाले अपराधी माफिया लोगों को प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान पर उतारा जा रहा है।वह कहती हैं कि नोटा का प्रावधान अच्छे उम्मीदवार उतारने के लिए किया गया है ।अब तक राजनीतिक दलों की ओर से इसमें सक्रियता और सकारात्मकता नहीं दिखाई है। इसलिए उन्होंने यह मुहिम राष्ट्र एवं समाज हित मेंछेड़ी है ।उनकी तरह अनेक संगठन नोटा के प्रति जागरूकता के लिए आगे आए हैं। विभिन्न किसान संगठनों की प्रमुख संस्था पश्चिम ओडिशा कृषक संगठन समन्वय समिति पीओके एस एस एस ने चुनाव में नोटा का विकल्प चुनने के लिए किसानों को एकजुट करने का कार्य प्रारंभ कर दिया है संस्था के साथ पश्चिमी उड़ीसा के 50 लाख से अधिक किसान जुड़े हुए हैं। संस्था के समन्वयक श्री लिंगराज के अनुसार नेताओं एवं कार्यकर्ताओं मतदान में नोटा को चुनने के लिए कहा जा रहा है ,जो विभिन्न राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के स्थान पर नोटा का चुनाव करने के लिए एकजुट हो किसानों को एकजुट कर रहे हैं ।संस्था का मानना हैकि किसी भी राजनीतिक दल द्वारा स्वामीनाथन आयोग की अनुशंसाओं को लागू करने में रुचि नहीं दिखाई गई और किसानों को निरंतर धोखा दिया गया है जिस के दृष्टिगत किसान सामूहिक रूप से नोटा का प्रयोग करेंगे ।इतना ही नहीं विगत दिनों एससी -एसटी एक्ट के विरोध में सवर्ण समाज द्वारा भी नोटा के पक्ष में मतदान करने का प्रचार प्रसार किया गया। राजनीतिक दलों द्वारा प्रत्याशियों के चयन में उसके चरित्र एवं सिद्धांतों के प्रति प्रतिबद्धता को महत्व न देकर एकमात्र जीतने की संभावना को ही महत्व देने के कारण नोटा के उपयोग की संभावना बढ़ गई है। जहां एक और नोटा के माध्यम से राजनीतिक दलों द्वारा घोषित प्रत्याशियों को नकारने हेतु अनेक संगठनों द्वारा मतदाताओं से संपर्क कर उन्हें प्रेरित किया जा रहा है, वहीं दूसरी ओर सरकार या चुनाव आयोग द्वारा नोटा का प्रयोग न कर सार्थक मतदान करने के संदर्भ में किसी प्रकार का प्रचार प्रसार का कार्य न किए जाने से मोटा के उपयोग की संभावना बढ़ गई है।
‌ गत लोकसभा तथा विधानसभा के चुनाव में मतदाताओं द्वारा नोटा का भरपूर उपयोग किया गया था। चुनाव आयोग के अनुसार गत लोकसभा के चुनाव में उत्तर प्रदेश में ही 0.8% तथा 2017 के विधानसभा चुनाव में 0.9% मतदाताओं ने नोटा का उपयोग कर राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों के प्रति अपना असंतोष व्यक्त किया था । स्पष्ट है कि
‌ गत लोकसभा चुनाव के पश्चात विधानसभा के चुनाव में नोटा के प्रति मतदाताओं का रुझान बड़ा था। फिर भी उत्तर प्रदेश में मतदाताओं द्वारा नोटा का उपयोग काफी कम हुआ था ,इसके विपरीत 2018 के विधानसभा चुनाव में राजस्थान मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ राज्यों में मतदाताओं द्वारा नोटा का भरपूर उपयोग किया गया ।फलस्वरूप छत्तीसगढ़ विधानसभा में नोटा को डाले गए मतों का 2% , मध्यप्रदेश में 1.4 प्रतिशत तथा राजस्थान में 1.3% मतदाता नोटा के पक्ष में मतदान कर प्रत्याशियों के प्रति असंतोष व्यक्त करते हुए उन्हें अस्वीकार किया था ।ऐसे में नोटा के प्रति मतदाताओं का बढ़ता रुझान आगामी मतदान में अप्रत्याशित परिणाम दे सकता है ।इतना ही नहीं गत गुजरात विधानसभा चुनाव में नोटा के प्रभाव से भाजपा 155 से 99 पर पहुंच गई थी जहां उसे 13 सीटों में नोटा को प्राप्त मतों से कम मतों के अंतर से हार का सामना करना पड़ा था ।इसी प्रकार उत्तर प्रदेश विधानसभा के चुनाव में बहराइच के बटेरा विधानसभा क्षेत्र में सपा ने भाजपा को 1595 मतों से हराया था जबकि नोटा के पक्ष में 2717 मत पड़े थे ।आजमगढ़ की मुबारकपुर विधानसभा सीट पर बसपा ने अपने प्रतिद्वंदी को महज 688 मतों से हराया था जबकि नोटा के पक्ष में 1628 वोट पड़े थे ।इसी प्रकार मऊ के मुहम्मदाबाद गोहना सीट पर भाजपा के उम्मीदवार ने बसपा प्रत्याशी को 538 मतों से पराजित किया था जहां नोटा के पक्ष में 1945 मत पड़े थे । मध्य प्रदेश के बांधवगढ़ सीट पर भाजपा के प्रत्याशी ने कांग्रेसी उम्मीदवार को 1903 मतों से पराजित किया था जब की सीट पर नोटा को 5037 मत प्राप्त हुए थे। राजस्थान में भी बेगू निर्वाचन क्षेत्र में प्रत्याशियों के मध्य जीत हार का अंतर 1661 मत था जबकि नोटा को 3165 मत प्राप्त हुए थे ।इसी प्रकार पोकरण विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के प्रत्याशी ने 72 मतों से विजय प्राप्त की थी जबकि नोटा के पक्ष में 1121 मत पड़े थे ।यह कुछ विधानसभा क्षेत्रों का दृष्टांत है इसी प्रकार अनेक विधानसभा क्षेत्रों में नोटा को प्राप्त होने वाले मत प्रत्याशियों के मध्य हार जीत के अंतर से काफी अधिक थे जिससे स्पष्ट था की नोटा ने प्रत्याशियों को हराने जिताने में अत्यधिक भूमिका अदा की है ,जिसे देखते हुए पूर्व चुनाव आयुक्त श्री कृष्ण मूर्ति ने यह सुझाव दिया है कि यदि नोटा को प्राप्त होने वाले मतों की संख्या प्रत्याशियों के जीत हार के मतों के अंतर से अधिक है तो संबंधित निर्वाचन क्षेत्र का परिणाम निरस्त कर पुनः चुनाव कराया जाना चाहिए ,जो मतदाताओं के मंतव्य को देखते हुए सही प्रतीत होता है ।संभव है आगे आने वाले दिनों में चुनाव आयोग इस सुझाव को स्वीकार कर मूर्त रूप दे। मध्य प्रदेश छत्तीसगढ़ मिजोरम राजस्थान और तेलंगाना के चुनाव में नोटा ने कई दलों सपा व आप आदि से ज्यादा वोट हासिल किए हैं गत लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के कौशांबी निर्वाचन क्षेत्र से नोटा सर्वाधिक मत प्राप्त कर तीसरा स्थान बनाने में सफल हुआ था जिसके कारण अनेक प्रत्याशियों की जमानत जब्त हो गई थी।
स्पष्ट है कि प्रत्याशियों से असंतुष्ट मतदाता नोटा के प्रति आकर्षित हो रहा है तथा सामाजिक एवं शासकीय व्यवस्था से असंतुष्ट वर्ग ऐसे प्रत्याशियों के विरुद्ध नोटा को सहज रूप में हथियार के रूप में प्राप्त कर उसका उपयोग कर रहे हैं जो देखने में एक प्रकार से मतदान में नकारात्मक सोच को प्रस्तुत करता है, किंतु वह वस्तुतः लोकतंत्र या मतदान के विरुद्ध नकारात्मक न होकर असहयोग के रूप में आंदोलन का रूप ग्रहण करते हुए चुनाव व्यवस्था में सुधार कर संसद तथा विधानमंडल मे चरित्रवान व्यक्तियों की उपस्थिति को सुनिश्चित करना चाहता है जिसे आज के समस्त राजनीतिक दल किसी भी रूप में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं हैं। वह वह बिना चरित्र एवं व्यवहार का परीक्षण किए मात्र जीतने की संभावना के आधार पर व्यक्तियों को प्रत्याशी बना रहे हैं जिन्हें अनुपयुक्त पाए जाने पर मतदाता नोटा के माध्यम से नकार रहे हैं। प्रत्याशियों के विरुद्ध छेड़ा गया यह आंदोलन निश्चित रूप से आज नहीं तो कल एक दिन सफलता प्राप्त करेगा और राजनीतिक दलों को सुयोग्य चरित्रवान एवं भारतीय लोकतंत्र के लिए उपयुक्त जाति वर्ग एवं धर्म की अपेक्षा राष्ट्र एवं समाज को ही सर्वोपरि समझने वाले गुणवान आचार व्यवहार युक्त व्यक्तियों को प्रत्याशी बना कर संसद में पहुंचाने हेतु विवश होना पड़ेगा, तभी आचार विचार से प्रतिबद्ध सांसदों से युक्त संसद सच्चे अर्थों में लोकतंत्र को प्रतिबिंबित करेगी तथा लोकतंत्र सफल होगा। माननीय सर्वोच्च न्यायालय द्वारा चुनाव आयोग के माध्यम से देश के सभी मतदाताओं को नोटा का सोंटा उपलब्ध करा दिया गया है ,जिसे वह हाथ में लेकर मतदेय स्थलों पर पहुंचकर अयोग्य अक्षम तथा समाज के लिए अनुपयुक्त प्रत्याशियों के विरुद्ध प्रयोग कर राजनीतिक दलों को राष्ट्रहित में योग्य प्रत्याशी उतारने के लिए बाध्य कर देंगे जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक हाथ में आया नोटा का सोंटा एक दिन अपेक्षित परिणाम देगा जिसके लिए मतदान प्रक्रिया में सुधार हेतु नोटा को अभी काफी लंबा सफर तय करना होगा।


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