
आर. सूर्यामूर्ति
अक्टूबर में भारत की अर्थव्यवस्था ने तेज़ी पकड़ी, जिसमें कर सुधारों की लहर, नरम पड़ती महँगाई और घर-परिवार की बेहतर वित्तीय स्थिति ने ग्रामीण और शहरी—दोनों तरह की मांग को मजबूत बनाया। वित्त मंत्रालय की नवीनतम मंथली इकोनॉमिक रिव्यू के अनुसार, उपभोक्ता व्यवहार, निवेश और उत्पादन—सभी में सकारात्मक रुझान दिखे।
रिपोर्ट बताती है कि वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल और वस्तु बाज़ारों में अस्थिरता के बावजूद घरेलू अर्थव्यवस्था में गति बनी हुई है। ई-टोल रसीदों, हवाई यातायात और ट्रैक्टर बिक्री जैसे हाई-फ़्रीक्वेंसी संकेतक व्यापक आर्थिक मजबूती की ओर इशारा करते हैं।
जीएसटी सुधारों ने खपत को दी नई ऊर्जा
सरकार द्वारा वर्ष के मध्य में किए गए जीएसटी दरों में बदलाव से उपभोग के तौर-तरीकों में स्पष्ट परिवर्तन देखने को मिला है। सितंबर–अक्टूबर के दौरान ई-वे बिलों की संख्या पिछले साल के मुकाबले 14.4% अधिक रही, जो माल ढुलाई में बढ़ोतरी का संकेत है।
कम दरों के बावजूद अप्रैल–अक्टूबर के बीच जीएसटी संग्रह 9% बढ़ा, जो बेहतर अनुपालन और अधिक खपत को दर्शाता है।
अक्टूबर में उपभोग के आँकड़े मजबूत रहे—यात्री वाहन और दोपहिया वाहन क्षेत्र ने अब तक के सबसे बेहतर त्योहारी सीज़न की बिक्री दर्ज की। ऑटो रिटेल बिक्री साल-दर-साल 40.5% बढ़ी।
छोटे शहरों में उपभोक्ता वस्तुओं (FMCG) की मांग मजबूत रही, जिसे कम महँगाई और बेहतर कृषि आय का समर्थन मिला। डिजिटल भुगतान भी तेज़ी से बढ़े—UPI लेनदेन मूल्य अक्टूबर में 16% उछला और नवंबर में और तेज हुआ।
कृषि क्षेत्र का भरोसा दिखाने वाले ट्रैक्टर बिक्री के आँकड़े 11 वर्ष के उच्च स्तर पर पहुँचे, जिसमें अनुकूल मानसून, भरे जलाशय और कृषि उपकरणों पर कम जीएसटी दरों की भूमिका रही।
महँगाई ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर
अक्टूबर में उपभोक्ता महँगाई दर (CPI) गिरकर 0.25% पर आ गई—यह वर्तमान CPI श्रृंखला का सबसे कम स्तर है।
खाद्य महँगाई 5% घटी, जिसका कारण सब्जियों और दालों की कीमतों में सुधार रहा। अनुकूल बेस इफेक्ट और जीएसटी कटौती के असर ने भी गिरावट को तेज किया।
कोर महँगाई 4.3% पर स्थिर रही, जिससे पता चलता है कि मांग मजबूत है लेकिन अत्यधिक नहीं।
रबी बुवाई में भी तेज प्रगति हुई—कुल बोई गई जमीन 22.97 मिलियन हेक्टेयर पहुंच गई, जो साल-दर-साल 15% अधिक है। गेहूं की बुवाई 20% बढ़ी, जिससे बेहतर शीतकालीन फसल की उम्मीद जगी है।
कॉरपोरेट कमाई मजबूत, वास्तविक वृद्धि का संकेत
FY26 की दूसरी तिमाही में कंपनियों का प्रदर्शन सकारात्मक रहा। सूचीबद्ध कंपनियों की शुद्ध बिक्री 6.1% बढ़ी, जबकि शुद्ध मुनाफा 12.3% बढ़ा।
महत्त्वपूर्ण यह रहा कि यह वृद्धि अत्यंत कम महँगाई की अवधि में हुई, जिससे संकेत मिलता है कि वास्तविक (वॉल्यूम) वृद्धि मजबूत है, न कि केवल कीमतों का प्रभाव।
वैश्विक व्यापार में उथल-पुथल, लेकिन भारत को सेवाओं का सहारा
बाहरी माहौल चुनौतीपूर्ण बना हुआ है। ट्रेड पॉलिसी अनसर्टेनिटी इंडेक्स भले ही अप्रैल के मुकाबले कम हुआ हो, लेकिन एक साल पहले की तुलना में अभी भी तीन गुना अधिक है। IMF ने 2026 में वैश्विक व्यापार वृद्धि के धीमे रहने की उम्मीद जताई है।
अप्रैल–अक्टूबर के दौरान भारत के कुल निर्यात 4.8% बढ़े, लेकिन केवल अक्टूबर में माल निर्यात 11.8% गिर गए। दूसरी ओर, आयात 16.6% बढ़े, खासकर सोने और चांदी के आयात में तेज़ उछाल के कारण।
सोने के आयात में 199% और चांदी के आयात में 528% की भारी वृद्धि हुई, जिसके पीछे अंतरराष्ट्रीय कीमतों में 50% से अधिक उछाल की भूमिका रही। इससे अक्टूबर का व्यापार घाटा बढ़कर $41.7 बिलियन हो गया।
हालाँकि सेवाओं ने सहारा दिया—अक्टूबर में सेवाओं का निर्यात रिकॉर्ड $38.5 बिलियन रहा, जिसने माल व्यापार घाटे का लगभग आधा हिस्सा समेट लिया।
पूँजी प्रवाह स्थिर, घरेलू निवेशक बने मजबूती का स्तंभ
FDI प्रवाह मजबूत रहा—अप्रैल–सितंबर में शुद्ध FDI $24 बिलियन पहुँच गया, जो पिछले वर्ष से काफी अधिक है।
FPI (विदेशी पोर्टफोलियो निवेश) में उतार-चढ़ाव रहा—अक्टूबर में वे खरीदार बने, लेकिन नवंबर में फिर बिकवाली की। इसके बावजूद विदेशी मुद्रा भंडार $687 बिलियन पर स्थिर रहा, जो 11 महीने का आयात कवर प्रदान करता है।
घरेलू संस्थागत निवेशक (DIIs) भारतीय शेयर बाज़ार की सबसे बड़ी ताकत बने रहे। उनकी बाजार हिस्सेदारी अब विदेशी निवेशकों से भी अधिक है। म्यूचुअल फंडों में घर-परिवारों से लगातार प्रवाह बढ़ा है।
क्रेडिट वृद्धि में नई तेजी
कई महीनों की नरमी के बाद सितंबर में बैंकिंग क्रेडिट वृद्धि में सुधार हुआ।
व्यक्तिगत ऋण 11.7% बढ़े, जिसमें सोने के आभूषणों के बदले दिए जाने वाले ऋण साल-दर-साल 114.9% उछले, जिसका कारण सोने की ऊंची कीमतें रहीं।
MSME क्षेत्र भी अच्छा प्रदर्शन करता रहा—सूक्ष्म और लघु उद्योगों को दिया जाने वाला ऋण 22% बढ़ा, जबकि पिछले वर्ष यह 13% था।
राजकोषीय स्थिति संतुलित, पूंजीगत खर्च पर जोर
वित्त वर्ष के मध्य तक केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति अपेक्षाओं के अनुरूप रही। सकल कर राजस्व 2.8% बढ़ा, लेकिन गैर-कर राजस्व 30.5% उछला।
सरकारी पूंजीगत व्यय 40% बढ़ा, जो बुनियादी ढाँचे पर निरंतर फोकस दर्शाता है। राजस्व व्यय केवल 1.5% बढ़ा, जिससे वित्तीय समेकन की राह मजबूत हुई।
सितंबर के अंत तक राजकोषीय घाटा वार्षिक लक्ष्य का 36.5% हुआ, जो ऐतिहासिक रुझानों के अनुरूप है।
श्रम बाज़ार में मौसमी नरमी, लेकिन भविष्य उज्ज्वल
अक्टूबर में श्रम बाज़ार में हल्की कमजोरी देखी गई, जो कृषि से जुड़ी मौसमी गतिविधियों के कारण सामान्य है।
PLFS आंकड़ों के अनुसार, श्रम बल भागीदारी बढ़ी और बेरोजगारी दर 5.2% पर आई। हालांकि CMIE के आंकड़ों में ग्रामीण क्षेत्रों की मौसमी अस्थिरता दिखी।
व्हाइट-कॉलर नौकरियों में भी हल्की गिरावट आई—Naukri JobSpeak इंडेक्स 9% गिरा, जो त्योहारों के दौरान भर्ती में सामान्य सुस्ती को दर्शाता है।
लेकिन आगे का परिदृश्य मजबूत है—CII–Taggd के अनुसार 2026 में भर्ती इरादा 11% बढ़ने की उम्मीद है। India Skills Report में युवाओं की रोजगार-योग्यता 56.4% हुई, जहाँ महिलाओं का स्कोर पुरुषों से अधिक रहा। AI और डिजिटल भूमिकाओं में तेजी जारी है।
दूसरे अर्ध-वर्ष में मजबूती के साथ प्रवेश करेगा भारत
रिपोर्ट का निष्कर्ष है कि FY26 के दूसरे हिस्से में भारत मजबूत घरेलू आधार पर खड़ा है—कम महँगाई, बेहतर कृषि परिदृश्य, स्थिर कॉरपोरेट आय और बढ़ती खपत।
वैश्विक व्यापार तनाव, भू-राजनीतिक जोखिम और वित्तीय बाजार की अस्थिरता बड़ी चुनौतियाँ हैं, लेकिन विश्लेषकों के अनुमान के अनुसार Q2 FY26 में भारत की GDP वृद्धि 7–7.5% रहने की उम्मीद है, जो इसे दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में रखता है।
