2024 के छात्र आंदोलन पर दमन के मामलों में इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल का ऐतिहासिक फैसला**

ज़ाकिर हुसैन, ढाका से

बांग्लादेश की इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल ने सोमवार को देश की अपदस्थ पूर्व प्रधानमंत्री शेख़ हसीना को मौत की सज़ा सुनाई है। अदालत ने उन्हें 2024 के जुलाई–अगस्त छात्र आंदोलन के दौरान मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए दोषी पाया। इसी आंदोलन ने हसीना की अवामी लीग सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया था।
78 वर्षीय हसीना वर्तमान में भारत में निर्वासन की स्थिति में रह रही हैं।

दो हिंसक हमलों में दोषी करार

ट्रिब्यूनल ने उन्हें ढाका के चांखारपुल और आशुलिया क्षेत्रों में 5 अगस्त 2024 को निहत्थे छात्रों पर घातक हमले कराने का दोषी पाया। अदालत ने इन दो मामलों में मौत की सज़ा और अन्य आरोपों पर प्राकृतिक जीवनकाल तक कारावास का आदेश दिया। आरोपों में उकसावे वाले भाषण, अत्यधिक बल प्रयोग और छात्र प्रदर्शनकारियों की हत्या शामिल है।

पूर्व गृह मंत्री असदुज़्ज़मान खान कमाल को भी मौत की सज़ा सुनाई गई, जबकि तत्कालीन पुलिस प्रमुख चौधरी अब्दुल्ला अल–मामुन को पाँच वर्ष की सज़ा दी गई। वह राज्य गवाह बन गए थे, इसलिए उन्हें रियायत दी गई।
अदालत ने हसीना और असदुज़्ज़मान की सभी संपत्तियाँ राज्य के नाम दर्ज करने का भी निर्देश दिया।

ऐतिहासिक निर्णय — 453 पन्नों का फैसला

मुख्य न्यायाधीश गोलाम मोर्तुज़ा मोजम्दर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने भारी सुरक्षा व्यवस्था के बीच 453 पन्नों का फैसला सुनाया। यह ट्रिब्यूनल द्वारा 2024 के जन–आंदोलन से जुड़े अत्याचारों पर दिया गया पहला बड़ा फैसला है।

81 गवाहों में से 54 ने बयान दिया, जबकि अभियोजन पक्ष ने 8,747 पन्नों के सबूत और 135 पन्नों का आरोपपत्र पेश किया था।

अदालत ने क्या पाया?

निर्णय के अनुसार—

  • हसीना प्रत्यक्ष कमांड ज़िम्मेदारी की दोषी हैं।
  • छात्रों पर घातक हथियारों, ड्रोन और हेलिकॉप्टर के उपयोग का आदेश या अनुमति उन्होंने ही दी।
  • चांखारपुल में 6 और आशुलिया में 6 लोग मारे गए।
  • आशुलिया में पांच शवों को मौत के बाद जलाया गया और एक छात्र को जिंदा जलाए जाने की पुष्टि हुई।

अदालत ने माना कि हसीना, असदुज़्ज़मान और मामुन ने “आदेश, जानकारी और जानबूझकर निष्क्रियता” के माध्यम से अपराध होने दिए।

हसीना और कमाल दोनों को फरार घोषित किए जाने के बाद अनुपस्थिति में ही मुकदमा चलाया गया। कानून के अनुसार, हसीना तभी अपील कर सकती हैं जब 30 दिनों के भीतर लौटें या गिरफ्तार हों।

मामलों का विवरण

काउंट-1: हत्या, हत्या का प्रयास, यातना, मानवता विरोधी कृत्य तथा हमले रोकने में विफलता
काउंट-2: प्रदर्शनकारियों पर घातक हथियार, हेलिकॉप्टर और ड्रोन का उपयोग
काउंट-3: 16 जुलाई को बेगम रोकैया विश्वविद्यालय के छात्र अबु सैयद की हत्या
काउंट-4: चांखारपुल में छह निहत्थे प्रदर्शनकारियों की हत्या
काउंट-5: आशुलिया में पाँच छात्रों की हत्या और शव जलाए जाने की घटना

हसीना की प्रतिक्रिया

फैसले से पहले लिखित बयान में हसीना ने इसे “कंगारू कोर्ट” करार दिया।
“इन लोगों की मौत की सज़ा की मांग उनके भीतर छिपी राजनीतिक नफरत को दिखाती है,” उन्होंने कहा।
उन्होंने सुरक्षा बलों को गोली चलाने का आदेश देने से साफ इंकार किया—
“ईश्वर ने मुझे जीवन दिया है, वही उसे लेगा। मैंने कभी निहत्थे नागरिकों पर गोली चलाने का आदेश नहीं दिया।”

संकट की पृष्ठभूमि

2024 का छात्र आंदोलन तब भड़का जब उच्च न्यायालय ने सिविल सेवा नौकरियों में 30% आरक्षण को बहाल कर दिया। छात्र संगठनों ने इसे अवामी लीग समर्थकों को लाभ पहुँचाने वाली व्यवस्था बताया।
स्थिति तब और बिगड़ी जब हसीना ने छात्रों को “राजाकार” कहा।
संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट के अनुसार 15 जुलाई से 15 अगस्त 2024 के बीच 1,400 तक मौतें हुईं, जिनमें अधिकांश गोलीबारी में मारे गए।

हसीना ने 5 अगस्त को इस्तीफा दिया और देश छोड़कर चली गईं। संसद भंग कर दी गई और नोबेल पुरस्कार विजेता मोहम्मद यूनुस को अंतरिम सरकार का प्रमुख बनाया गया।

फैसले से पहले कड़ी सुरक्षा

अदालत के बाहर सेना, बीजीबी, रैपिड एक्शन बटालियन, पुलिस और एपीबीएन की बहु-स्तरीय सुरक्षा घेरा लगाया गया।
ढाका पुलिस ने आगजनी या हिंसा की किसी भी कोशिश पर देखते ही गोली मारने के आदेश जारी किए।
फैसले से एक रात पहले ढाका में कई जगह कच्चे बम फटे, हालांकि कोई हताहत नहीं हुआ।

पीड़ित परिवारों की प्रतिक्रिया

आंदोलन में अपने भाई को खोने वाले मिर महबूबुर रहमान स्नुिग्धो ने कहा: “हसीना ने जो अपराध किए, उसके लिए एक नहीं, हज़ार फाँसियाँ भी कम हैं।”

क्षेत्रीय असर और भारत का रुख

फैसले के बाद बांग्लादेश में फिर से यह मांग उठ सकती है कि भारत शेख़ हसीना को प्रत्यर्पित करे, लेकिन नई दिल्ली ऐसी राजनीतिक रूप से संवेदनशील मांगों को मानने के लिए बाध्य नहीं है।
उनके बेटे सजीब वाज़ेद ने स्पष्ट किया है कि हसीना भारतीय सुरक्षा में हैं।
यह फैसला बांग्लादेश की आगामी राजनीति और चुनावी समीकरणों को और जटिल बना सकता है, क्योंकि अवामी लीग पर अब भी प्रतिबंध है और उसके कई नेता निर्वासन या मुकदमों का सामना कर रहे हैं।