
By Andalib Akhter / नई दिल्ली / देवबंद
अफगानिस्तान के विदेश मंत्री मौलाना अमीर ख़ान मुत्तकी का भारत दौरा ऐतिहासिक माना जा रहा है, खासकर उनके देवबंद पहुंचने और जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी से हुई विशेष भेंट के कारण। मुत्तकी ने दारुल उलूम देवबंद को “मदर-ए-इल्मी और रूहानी मरकज़” बताते हुए कहा कि अफगानिस्तान और भारत के बीच सदियों पुराने शैक्षिक, सांस्कृतिक और तहज़ीबी रिश्ते हैं।
मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि अफगानिस्तान से भारत का केवल इल्मी या रूहानी नाता ही नहीं, बल्कि आज़ादी की जंग में भी उसका अहम योगदान रहा है। उन्होंने कहा कि बात यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि भारत की आज़ादी की जंग से भी अफगानिस्तान का एक विशेष संबंध रहा है। आज की नई पीढ़ी शायद इस बात से परिचित न हो, लेकिन यह एक ऐतिहासिक तथ्य है कि आज़ादी की लड़ाई के दौरान दारुल उलूम देवबंद के प्रधान अध्यापक (सदर-उल-मुदर्रिसीन) शेख़-उल-हिंद मौलाना महमूद हसन (रह.) के आदेश पर अफगानिस्तान में ही हमारे स्वतंत्रता सेनानियों ने एक जला-वतन (निर्वासित) सरकार क़ायम की थी।
उस सरकार के राष्ट्रपति राजा महेन्द्र प्रताप सिंह, प्रधानमंत्री मौलाना बरकतुल्लाह भोपाली और विदेश मंत्री मौलाना उबैदुल्लाह सिंधी (रह.) थे।
मदनी ने कहा कि अफगानिस्तान ने भी विदेशी कब्ज़े से मुक्ति पाने में भारत के स्वतंत्रता सेनानियों के रास्ते पर चलकर संघर्ष किया। उन्होंने उम्मीद जताई कि मुत्तकी का यह दौरा दोनों देशों के रिश्तों को और मज़बूत करेगा, खासकर शैक्षिक और व्यापारिक क्षेत्रों में।
मौलाना मुत्तकी ने दारुल उलूम में अपने स्वागत और मेहमाननवाज़ी की सराहना करते हुए कहा कि देवबंद हमेशा अफगान जनता के दिलों में एक रूहानी पहचान रखता है।
क़ाबिले-ज़िक्र है कि इस दौरे के दौरान एक सार्वजनिक सभा (जनसभा) भी होनी थी। मौलाना अमीर ख़ान मुत्तकी को देखने और सुनने के लिए बड़ी संख्या में लोग बाहर से भी आए थे, मगर अफगानिस्तान प्रतिनिधिमंडल के साथ दिल्ली से विदेश मंत्रालय की जो टीम आई थी, उसने सुरक्षा कारणों का हवाला देते हुए दौरे को संक्षिप्त कर दिया, जिसके चलते आम सभा नहीं हो सकी और लोगों में निराशा फैल गई।
