एस. एन. वर्मा

भारत का इतिहास सागर से गहराई से जुड़ा हुआ है। पश्चिमी सभ्यता के उदय से बहुत पहले ही भारतीय उपमहाद्वीप समुद्री व्यापार और नौवहन की दिशा तय कर रहा था। पुरातात्विक साक्ष्यों से पता चलता है कि सिंधु घाटी सभ्यता के समय, लगभग 2300 ईसा पूर्व, गुजरात तट पर लोथल में विश्व का पहला ज्वारीय बंदरगाह स्थापित किया गया था। भारतीय पुराणों और ग्रंथों में सागर, नदियों और जलमार्गों का वर्णन यह दर्शाता है कि समुद्र और उसके संसाधनों ने मानव समाज को आर्थिक मजबूती प्रदान की। साहित्य, कला, मूर्तिकला, चित्रकला और पुरातत्व से भी भारत की समृद्ध समुद्री परंपरा प्रमाणित होती है।

प्राचीन काल से ही भारत ने हिंद महासागर पर प्रभुत्व कायम रखा और समुद्री मार्गों ने इसे विश्व के दूरस्थ हिस्सों से जोड़ा। मौर्यकाल में समुद्री व्यापार व्यापक था। उस समय भारत ने दक्षिण-पूर्व एशिया तक अपने व्यापारिक संबंध स्थापित किए थे—थाईलैंड, मलय प्रायद्वीप, कंबोडिया और वियतनाम तक भारतीय जहाज पहुँचते थे। मौर्यों के समुद्री संपर्कों ने आगे चलकर इंडोनेशिया और आस-पास के द्वीपों तक भारत का विस्तार किया। 16वीं शताब्दी तक भारतीय समुद्री मार्ग व्यापार, संस्कृति और कूटनीति के प्रमुख साधन बन चुके थे।

आज भारत दुनिया का 16वां सबसे बड़ा समुद्री राष्ट्र है। घरेलू समुद्री परिवहन से भारत के 95 प्रतिशत व्यापार (आयतन के आधार पर) और 68 प्रतिशत व्यापार (मूल्य के आधार पर) का संचालन होता है। भारत जहाज-रीसाइक्लिंग (ship recycling) में भी अग्रणी है और विश्व के कुल जहाज तोड़ उद्योग का 30 प्रतिशत हिस्सा रखता है। गुजरात के आलंग में विश्व की सबसे बड़ी जहाज-तोड़ सुविधा है। दिसंबर 2021 तक भारत के पास 1.3 करोड़ टन से अधिक की समुद्री वहन क्षमता वाली वाणिज्यिक बेड़े की शक्ति थी, हालांकि यह विश्व के कुल बेड़े का केवल 1.2 प्रतिशत है।

भारत सरकार ने 2017 में महत्वाकांक्षी ‘सागरमाला कार्यक्रम’ शुरू किया, जिसका उद्देश्य बंदरगाह-आधारित विकास और लॉजिस्टिक-आधारित उद्योगों को बढ़ावा देना है। वर्तमान में भारत में 12 प्रमुख बंदरगाह और लगभग 200 छोटे/मध्यम बंदरगाह हैं। मुंबई का जवाहरलाल नेहरू पोर्ट ट्रस्ट (जेएनपीटी) सबसे बड़ा प्रमुख बंदरगाह है, जबकि मुंद्रा पोर्ट देश का सबसे बड़ा निजी बंदरगाह है।

वैश्विक स्तर पर समुद्री परिवहन अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। आज 75 प्रतिशत से अधिक अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समुद्र के रास्ते होता है। तेल, अनाज और तैयार माल जैसी वस्तुओं की ढुलाई बड़े पैमाने पर जहाजों से ही होती है। विश्व में आज 4,500 से अधिक गहरे पानी के बंदरगाह मौजूद हैं, जो वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की अहम कड़ी हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में भावनगर में समुद्र को भारत की समृद्धि का आधार बताते हुए हजारों करोड़ रुपये की परियोजनाओं का उद्घाटन और शिलान्यास किया। उन्होंने मुंबई में अंतर्राष्ट्रीय क्रूज़ टर्मिनल भी राष्ट्र को समर्पित किया ताकि क्रूज़ पर्यटन को बढ़ावा मिल सके। प्रधानमंत्री ने चिंता जताई कि पिछले 50 वर्षों में भारतीय जहाजों से होने वाले व्यापार का हिस्सा 40 प्रतिशत से घटकर मात्र 5 प्रतिशत रह गया है, जिसके कारण हर साल भारत को विदेशी जहाज कंपनियों को लगभग 75 अरब डॉलर (छह लाख करोड़ रुपये) चुकाने पड़ते हैं। यह राशि भारत के रक्षा बजट के लगभग बराबर है।

इस निर्भरता को कम करने के लिए सरकार ने जहाज निर्माण क्षेत्र को प्रोत्साहन देने का ऐतिहासिक निर्णय लिया है। बड़े जहाजों को अब बुनियादी ढांचा क्षेत्र में शामिल किया गया है, जिससे कंपनियों को बैंक ऋण आसानी से मिल सकेगा और ब्याज दरों में भी छूट मिलेगी। आने वाले वर्षों में इस क्षेत्र में 70,000 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए जाएंगे।

भारत में नए और बड़े बंदरगाह भी बनाए जा रहे हैं। हाल ही में देश का पहला डीप-वॉटर कंटेनर ट्रांसशिपमेंट पोर्ट केरल में शुरू किया गया, वहीं महाराष्ट्र में वधावन पोर्ट 75,000 करोड़ रुपये की लागत से बनाया जा रहा है। इसके विश्व के शीर्ष दस बंदरगाहों में शामिल होने की संभावना है।

आज भारत दुनिया में सबसे अधिक समुद्री नाविक (seafarers) उपलब्ध कराने वाले शीर्ष तीन देशों में है। इससे युवाओं के लिए रोज़गार के नए अवसर पैदा हो रहे हैं और भारत की वैश्विक समुद्री ताकत भी बढ़ रही है।

निस्संदेह, भारत की समुद्री विरासत और आधुनिक समुद्री महत्वाकांक्षाएँ एक बार फिर यह साबित करती हैं कि भारत का तटवर्ती क्षेत्र आने वाले वर्षों में समृद्धि का द्वार बनेगा।