सुधीर कुमार


18वीं लोकसभा चुनाव में लगभग 90 प्रतिशत सीटों पर मतदान पूरा हो चुका है. इसके बाद, सियासी माहौल गर्म है. चुनावी पंडित अपने-अपने तरीकों से कयास लगा रहे हैं. राजनीतिक गलियारों में सरगर्मी छायी हुई है. हर कोई अपने-अपने हिसाब से गुणा-भाग कर आकड़ों के सहारे यह अनुमान लगाने की कोशिश कर रहा है कि कौन सी पार्टी सत्ता की कुर्सी से कितनी दूर और कितनी पास है.


हर रोज टीवी चैनलों पर चुनाव को लेकर सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के नेताओं में बहस जारी है. सत्तारूढ़ पार्टियों के नेता 400 पार का नारा दे रहे हैं. वहीं, विपक्षी पार्टियां इसे मुंगेरी लाल के हसीन सपने बता रही हैं.


मतदान प्रतिशत में गिरावट
प्रथम और द्वितीय चरण में मतदाता उदासीन दिखे. इसकी वजह से कई राज्यों में मतदान में सात से आठ प्रतिशत तक की कमी दिखी. ऐसे में सत्तापक्ष बैकफुट पर आ गया और विपक्षी दल आक्रामक तेवर में नजर आने लगे. हालांकि, तीसरे चरण से मतदान में गिरावट थम गई. पहले और दूसरे चरण में 2019 की तुलना में 2024 में करीब चार प्रतिशत कम मतदान हुआ, लेकिन तीसरे चरण से यह अंतर कम होकर डेढ़ से दो प्रतिशत पर आ गया.


मतदान प्रतिशत में गिरावट के मायने
दुनियाभर के चुनावी विशेषज्ञ मतदान प्रतिशत में बढ़त को सत्ता विरोधी लहर मानते हैं, जबकि गिरावट को सत्तापक्ष के लिए शुभ संकेत. वहीं, बात भारत की करें, तो पिछले 16 चुनावों में छह बार मतदान प्रतिशत गिरा है. 10 चुनावों में इसमें बढ़ोतरी देखने को मिली है. इस दौरान आठ बार सत्ता परिवर्तन हुआ है. ऐसे में यह अनुमान लगाना मुश्किल है कि मतदान का प्रतिशत कम होने से किसे फायदा होगा और किसे नुकसान.


आंकड़ों की जुबानी पूरी कहानी
अगर हम अधिकांश चुनावी विशेषज्ञों के अनुमान के आधार पर यह मान लें कि बीजेपी के वोटर उदासीन हैं, वे घर से नहीं निकल रहे हैं, और इस वजह से बीजेपी को मिले कुल मतों में 2019 की तुलना में 3 से 4 प्रतिशत का नुकसान होता है, तो क्या होगा?


चुनावी वर्ष बीजेपी % सीट कांग्रेस % सीट
1989 11.36 85 39.53 197
1991 20.7 120 36.44 244
1996 20.29 161 28.80 140
1998 25.59 182 28.30 141
1999 23.75 182 25.82 114
2004 22.16 138 26.53 145
2009 18.80 116 28.55 206
2014 31 282 19.31 44
2019 37.31 303 19.49 52

(ये आंकड़े विकीपीडिया से लिए गए हैं)
अगर हम उपरोक्त 30 वर्ष के आंकड़ों को खंगालते हैं, तो पाते हैं कि 21 प्रतिशत से ऊपर बीजेपी का औसतन स्ट्राइक रेट सात से आठ सीट प्रति प्रतिशत रहा है. यह औसत 2014 में 9 सीट हर प्रतिशत तक पहुंच गया. इसकी मुख्य वजह उत्तर प्रदेश में चतुष्कोणीय मुकाबला था. जबकि, बिहार में त्रिकोणीय मुकाबला था.


गौर करने वाली बात यह है कि 2014 की तुलना में 2019 में बीजेपी के कुल मतों में छह प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई. जबकि, सीट सिर्फ 20 ही बढ़े. इसकी वजह यह थी कि मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे राज्यों में पार्टी का वोट प्रतिशत पिछले चुनावों से 10 प्रतिशत बढ़ा, लेकिन सीट दोनों राज्यों में सिर्फ एक-एक ही बढ़ी.


इसी तरह, 1998 की तुलना में 1999 में बीजेपी को मिले कुल मतों में दो फीसदी की कमी देखने को मिली, लेकिन 1999 में पिछले चुनाव के बराबर ही सीटें आईं. 1991 और 1996 में भी इसी तरह के नतीजे देखने को मिले थे, जिसमें पार्टी के वोट प्रतिशत तो नहीं बढ़े, लेकिन सीटों की संख्या 33 फीसदी बढ़ गई. ऐसे में मत प्रतिशत के आधार पर सीटों का अनुमान लगाना मुश्किल है.