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एस एन वर्मा

करनाल। आज यहां बाबा विरसा सिंह महाराज के जन्मदिवस के उपलक्ष्य पर गुरुमत समागम आयोजित किया गया। सर्वधर्म सदभाव के विश्वस्तरीय प्रतीक गोबिंद सदन दिल्ली के संस्थापक बाबा विरसा सिंह के आगमन दिवस को समर्पित गुरमत समागम की शुरुआत 3 मार्च को श्री गुरु ग्रन्थ साहिब जी का अखंड पाठ से  आरम्भ हुआ और 5 मार्च समापन हुआ। इस अवसर पर गुरबाणी कीर्तन का गायन किया गया तथा संत महापुरुषों व विद्वानों ने बाबा विरसा सिंह के बारे में अपने अपने विचार गुरबाणी में आयी हुई संगतों के आगे रखे।
कहा जाता हैं कि बाबा विरसा सिंह वर्ष 1962 से 1967  तक लगातार इस इलाके में आते रहे और यहाँ के लोगों को सच्चाई और धर्म की राह पर और ईश्वर एक है का पाठ पढ़ाया। गुरु गोबिंद सिंह  की बाणी जाप साहिब जिसमें निराकार ईश्वर का वर्णन हैं ,मानस की जात सभ एके पेहचानबो, जिन प्रेम कियो तिन ही प्रभ पायो का पाठ पढ़ाया।  इस शुभ अवसर पर गुरु नानक देव द्वारा चलाए गए लंगर व मिष्ठान प्रसाद संगतों  के लिए बनवाया गया।
सुखबीर सिंह ने बताया कि बाबा विरसा सिंह की आध्यात्मिकता का अनुसरण देश ही नहीं परन्तु विदेशों में भी  लोग करते हैं।बाबा महाराज कहा करते थे यदि हम अपने लोगों को शांति नहीं सिखाते हैं तो हम युद्ध और संघर्ष के लिए जिम्मेदार हैं।
यदि आप अपनी सीमाओं पर शांति चाहते हैंं तो पहले अपने धर्मों के बीच शांति की बाधाओं को तोड़ें और अपने भीतर शांति जगाएं। आपसी प्यार और सम्मान का माहौल बनाएं। एक दूसरे के अवतारों व पैगंबरों के धार्मिक त्यौहार  सबको मिलजुल कर मनाने चाहिये।
एक आश्चर्यजनक बयान में गोबिंद सदन के परम पावन बाबा विरसा सिंह ने न्यूयॉर्क में मिलेनियम पीस समिट में एकत्रित धार्मिक नेताओं को चुनौती दी कि वे पहले आपस में संघर्ष को हल करने के लिए भीतर जाग्रत करें और पहचानें कि सभी परंपराओं का संदेश एक है, यह कहते हुए कि  यदि आज के धर्मगुरु संघर्षों को सुलझाने की कोशिश करते हैं तो वे केवल टहनियाँ तोड़ रहे हैं और समस्या की जड़ तक नहीं पहुँच रहे हैं।”


जब तक वे मानते हैं कि उनके पैगंबर ही एकमात्र हैं और उनका धर्मग्रंथ ईश्वर की एकमात्र शिक्षा है, वे शांति कैसे ला सकते हैं?
बाबा कहते थे कि परमेश्वर एक है, सभी नबी- अवतार एक ही स्थान से उसका संदेश लेकर आए हैं। इन मुद्दों को सुलझाओ और शांति आ जाएगी, पहले अपनी भावना पर काबू पाओ।

धर्म आध्यात्मिकता एक बहुत शक्तिशाली शक्ति है, यह लोगों के दिमाग को बदल देता है, उनके जीवन को बदल देता है और उनकी आंतरिक आदतों को बदल देता है। अध्यात्म की यही आंतरिक शक्ति ही लोगों को बदल सकती है।
बाबाजी धार्मिक संघर्ष का एक सरल इलाज सुझाते हैं। एक दूसरे के अवतारों व पैगंबरों के धार्मिक त्यौहार  सबको मिलजुल कर मनाएं।

गोबिंद सदन दिल्ली के सुखबीर सिंह ने बताया कि कई वर्षों से नई दिल्ली के गोबिंद सदन स्थित अपने केंद्र में गुरुपर्व ईद,क्रिसमस, रामनवमी, जन्माष्टमी, भगवान महावीर और महात्मा बुद्ध  के मानने वालों के धार्मिक त्योहारों का आयोजन बड़े स्तर पर किया जाता है । श्ुरुआत बाबा विरसा सिंह महाराज ने की थी। नतीजतन, सभी परंपराओं के लोगों को एक-दूसरे के लिए प्यार और श्रद्धा और एक-दूसरे की परंपराओं की शिक्षा यहां मिलती है। इस प्रक्रिया से सदियों पुरानी नफरत पर काबू पाया जा सकता है।