Last Updated on October 26, 2025 11:09 pm by INDIAN AWAAZ

हमारे संवाददाता | पटना

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, राज्य का राजनीतिक माहौल वायदों और पलटवायदों से गर्म होता जा रहा है। महागठबंधन (Grand Alliance) और सत्तारूढ़ एनडीए — दोनों ने घोषणाओं की झड़ी लगा दी है, हर दल मतदाताओं को यह विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा है कि बिहार का भविष्य उनकी ही नीतियों के रास्ते तय होगा।

तेजस्वी का जनकल्याण एजेंडा: पंचायत स्तर पर सशक्तिकरण

महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी प्रसाद यादव ने बिहार की जमीनी लोकतांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने के उद्देश्य से कई कल्याणकारी योजनाओं की घोषणा की।
पटना में बोलते हुए यादव ने कहा कि अगर उनकी सरकार बनी तो सभी पंचायती राज प्रतिनिधियों को ₹50 लाख का बीमा कवर दिया जाएगा और उनके मानदेय को दोगुना किया जाएगा।

उन्होंने पूर्व पंचायत प्रतिनिधियों के लिए पेंशन योजना, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (PDS) के डीलरों के लिए मानदेय और कमीशन में बढ़ोतरी, और पारंपरिक पेशेवरों — जैसे नाई, कुम्हार और लोहार — के लिए ₹5 लाख की आर्थिक सहायता योजना (5 वर्षों में) की भी घोषणा की।

तेजस्वी यादव ने कहा, “हमारे पंचायत प्रतिनिधि और ग्रामीण श्रमिक बिहार के लोकतंत्र की आत्मा हैं। वे सम्मान, सुरक्षा और उचित पारिश्रमिक के हकदार हैं।”

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह घोषणाएँ ग्रामीण स्तर पर प्रभावशाली लोगों तक सीधा संदेश पहुँचाने की रणनीति हैं — जो चुनावों में मतदाताओं की राय को आकार देते हैं। साथ ही, यह कदम सामाजिक न्याय की उस विचारधारा को पुनर्जीवित करता है जिसने आरजेडी की राजनीति को दशकों तक ऊर्जा दी है।

अमित शाह का जवाब: दोहरे इंजन से विकास की राह

दूसरी ओर, भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बिल्कुल अलग दृष्टिकोण पेश किया।
उत्तर बिहार में रैलियों को संबोधित करते हुए शाह ने कहा कि केवल एनडीए की “डबल इंजन सरकार” — यानी केंद्र और राज्य की संयुक्त ताकत — ही बिहार को स्थायी विकास की दिशा में आगे ले जा सकती है।

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बिहार के कायाकल्प का एक स्पष्ट रोडमैप तैयार किया है।
“हम बिहार को आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, डिजिटल डेटा और कृषि आधारित उद्योगों का हब बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं,” शाह ने कहा। उन्होंने जोड़ा कि बिहार को पिछड़ेपन से बाहर निकालने का रास्ता दीर्घकालिक विकास है, न कि अल्पकालिक लोकलुभावन वादे।

शाह ने यह भी दावा किया कि एनडीए सरकार ने राज्य में बुनियादी ढाँचे, बिजली आपूर्ति और महिलाओं के सशक्तिकरण के क्षेत्र में ठोस काम किया है — और इसकी तुलना उन्होंने “राजद-कांग्रेस गठबंधन के खोखले वायदों” से की।

वायदे बनाम प्रदर्शन

दोनों पक्षों के ये अलग-अलग एजेंडे बिहार की दो सच्चाइयों को दर्शाते हैं — एक ओर तात्कालिक कल्याण की जरूरत, तो दूसरी ओर दीर्घकालिक आधुनिकीकरण की आकांक्षा।
जहाँ तेजस्वी के वायदे ग्रामीण मतदाताओं को सुरक्षा और सम्मान का संदेश देते हैं, वहीं शाह की बात युवा और शहरी तबके को आकर्षित करती है जो निवेश, नवाचार और औद्योगिक विकास की उम्मीद रखता है।

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि दोनों ही रास्तों में जोखिम हैं।
वेलफेयर योजनाएँ राज्य के सीमित बजट पर बोझ डाल सकती हैं, जबकि हाई-टेक उद्योगों के वादे ज़मीन पर उतरने में वर्षों लग सकते हैं। असली चुनौती यह है कि लोकलुभावन कल्याण और सतत विकास के बीच संतुलन कैसे बनाया जाए।

आगे की राह

जैसे-जैसे चुनाव प्रचार तेज़ हो रहा है, बिहार के मतदाता एक दोराहे पर खड़े हैं —क्या वे उस मॉडल को चुनेंगे जो सामाजिक सुरक्षा और समावेशिता का वादा करता है,
या उस राह को जो तकनीकी प्रगति और आर्थिक सुधार की बात करती है?

दोनों गठबंधन अपने-अपने विमर्श को धार दे रहे हैं। ऐसे में बिहार विधानसभा चुनाव 2025 केवल सत्ता की लड़ाई नहीं रहा — यह एक जनमत बन गया है कि बिहार का भविष्य आखिर कैसा होना चाहिए।