नई दिल्ली, 19 जुलाई:
विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने शनिवार को भारत को एक “वास्तविक विनिर्माण शक्ति” (true manufacturing power) बनाने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि “मेक इन इंडिया” के नाम पर देश में असल में निर्माण नहीं, बल्कि केवल उत्पादों की असेंबली हो रही है। उन्होंने भारत की मौजूदा औद्योगिक नीति पर सवाल उठाते हुए ज़मीनी स्तर पर व्यापक बदलाव की मांग की।

राहुल गांधी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X (पूर्व में ट्विटर) पर लिखा:
“क्या आप जानते हैं कि भारत में बन रहे अधिकतर टेलीविज़नों के 80% पुर्ज़े चीन से आते हैं? ‘मेक इन इंडिया’ के नाम पर हम बस असेंबली कर रहे हैं, असली निर्माण नहीं कर रहे। चाहे iPhone हो या टीवी – सारे पार्ट्स विदेश से आते हैं, हम केवल जोड़ते हैं।”

“छोटे उद्यमियों के लिए न नीति है, न सहयोग”

गांधी ने कहा कि भारत में छोटे उद्यमी निर्माण करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें सरकार से न तो नीतिगत समर्थन मिलता है और न ही कोई सहयोग। इसके विपरीत, भारी कर और चुनिंदा कॉरपोरेट्स का एकाधिकार देश के औद्योगिक परिदृश्य को नियंत्रित कर रहा है।
“हमारे उद्योग पर कुछ ही कॉरपोरेट्स का शिकंजा है। जो छोटे उद्योगपति हैं, उन्हें नीतियां कुचल रही हैं।”

“स्वदेशी उत्पादन के बिना, नौकरियों और विकास की बात महज़ भाषण बनकर रह जाएगी”

राहुल गांधी ने यह भी कहा कि जब तक भारत उत्पादन के क्षेत्र में आत्मनिर्भर नहीं बनता, तब तक ‘मेक इन इंडिया’, रोजगार और विकास पर की जाने वाली चर्चाएं महज़ खोखली बातें बनकर रह जाएंगी।
“हमें असेंबली लाइन से आगे बढ़कर असली निर्माण शक्ति बनना होगा। चीन के साथ बराबरी पर मुकाबला करने के लिए भारत को ज़मीनी बदलाव की ज़रूरत है।”

“मेक इन इंडिया” पर सवाल: GDP में विनिर्माण घटा

अपने पूर्व बयानों में भी राहुल गांधी ने सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए दावा किया था कि ‘मेक इन इंडिया’ अभियान भारतीय विनिर्माण क्षेत्र को पुनर्जीवित करने में असफल रहा है।
उन्होंने कहा था, “2014 में भारत की GDP में विनिर्माण का हिस्सा 15.3% था, जो अब घटकर 12.6% रह गया है — जो पिछले 60 वर्षों में सबसे कम है।”

“चीन हमसे एक दशक आगे है”

गांधी ने चीन की तकनीकी तैयारियों का उल्लेख करते हुए चेताया कि भारत को तकनीकी और औद्योगिक क्रांति में पीछे नहीं रहना चाहिए।
“चीन पिछले दस वर्षों से बैटरियों, रोबोट, मोटर और ऑप्टिक्स पर काम कर रहा है। इन क्षेत्रों में वह भारत से कम से कम 10 साल आगे है।”

“नई आर्थिक दृष्टि की जरूरत”

गांधी ने भारत की आर्थिक दिशा को लेकर एक नई सोच अपनाने की वकालत की। उन्होंने कहा:
“दुनिया एक नई तकनीकी और आर्थिक क्रांति की दहलीज पर खड़ी है। भारत को विकास, उत्पादन और भागीदारी के लिए एक नई दृष्टि की जरूरत है – जो हमारे दो सबसे बड़े संकटों: रोजगार की कमी और 90% भारतीयों के लिए अवसरों के अभाव – को सीधा संबोधित करे।”

उन्होंने यह भी जोड़ा कि “रोजगार निर्माण से आते हैं, और ‘मेक इन इंडिया’ उसे उत्पन्न करने में विफल रहा है। लेकिन हमारे पास ऊर्जा और मोबिलिटी की क्रांति में एक अवसर है — जिसमें रिन्यूएबल एनर्जी, बैटरियां, इलेक्ट्रिक मोटर्स, ऑप्टिक्स और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस जैसे क्षेत्र शामिल हैं। भारत को इसमें अग्रणी भूमिका निभानी होगी, जिससे हमारे युवाओं को भविष्य की उम्मीद मिल सके।”