भारत में थोक मूल्य सूचकांक (WPI) आधारित महंगाई दर जुलाई 2025 में लगातार चौथे महीने गिरावट दर्ज करते हुए (-) 0.58% पर आ गई, जो पिछले दो वर्षों में सबसे निचला स्तर है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा गुरुवार को जारी आंकड़ों के अनुसार, यह कमी मुख्य रूप से खाद्य वस्तुओं और ईंधन जैसे पेट्रोल, डीज़ल और प्राकृतिक गैस की कीमतों में आई गिरावट के कारण हुई है।
जून 2025 में WPI महंगाई दर (-) 0.13% थी, जबकि मई में यह 14 महीने के निचले स्तर 0.39% तक पहुंच गई थी। मार्च 2025 से शुरू हुई यह नरमी लगातार जारी है, जो इस बात का संकेत देती है कि थोक स्तर पर कीमतों का दबाव अब कम हो रहा है।
कमी के पीछे मुख्य कारण
जुलाई में WPI के खाद्य सूचकांक में 2.15% की गिरावट दर्ज की गई। दालों, अनाज, सब्जियों और खाद्य तेलों की कीमतों में उल्लेखनीय कमी आई है। इसके साथ ही ईंधन एवं ऊर्जा श्रेणी में 2.43% की वार्षिक गिरावट दर्ज हुई, जिसका कारण अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कच्चे तेल की कीमतों में नरमी और घरेलू कर संरचना की स्थिरता रहा।
ईंधन के सस्ता होने से परिवहन लागत घटती है, जिससे कृषि, विनिर्माण और सेवा क्षेत्र में इनपुट लागत पर भी सकारात्मक असर पड़ता है। अर्थशास्त्री मानते हैं कि यह गिरावट आने वाले महीनों में खुदरा महंगाई (CPI) को भी नीचे लाने में मदद करेगी, क्योंकि थोक स्तर की बचत धीरे-धीरे उपभोक्ता कीमतों में परिलक्षित होगी।
खुदरा महंगाई में भी नरमी
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई दर जुलाई 2025 में घटकर 1.55% रह गई, जो जून 2017 के बाद सबसे कम है। जून 2025 में CPI महंगाई 2.1% थी, जो पहले ही जनवरी 2019 के बाद का न्यूनतम स्तर था।
खुदरा खाद्य महंगाई जुलाई में (-) 1.76% पर आ गई। दाल, सब्ज़ी, अनाज, अंडा और चीनी जैसी आवश्यक वस्तुओं की कीमतें पिछले साल की तुलना में कम हुईं। गैर-खाद्य क्षेत्रों जैसे परिवहन, संचार, शिक्षा और आवास में भी कीमतों का दबाव कम हुआ। इसके पीछे एक बड़ा कारण बेस इफ़ेक्ट भी है, यानी पिछले साल जुलाई में कीमतें अपेक्षाकृत अधिक थीं, जिससे इस साल की वार्षिक वृद्धि दर स्वतः कम दिख रही है।
RBI का अनुमान और नीतिगत दृष्टिकोण
भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने वित्त वर्ष 2025-26 के लिए CPI महंगाई 3.1% रहने का अनुमान जताया है। इसके पीछे अच्छे मानसून, मजबूत खरीफ़ बुवाई, जलाशयों में पर्याप्त पानी और खाद्यान्न के आरामदायक भंडार जैसे कारक हैं।
RBI के गवर्नर संजय मल्होत्रा ने कहा:
“2025-26 के लिए महंगाई का परिदृश्य हमारी उम्मीद से अधिक अनुकूल हुआ है। बड़े पैमाने पर सकारात्मक बेस इफ़ेक्ट, खरीफ़ बुवाई में मजबूती, जलाशयों का पर्याप्त जलस्तर और खाद्यान्न का पर्याप्त बफर स्टॉक — इन सभी ने महंगाई कम करने में मदद की है।”
भविष्य की चुनौतियाँ
विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि वित्त वर्ष 2025-26 की अंतिम तिमाही (Q4) में CPI महंगाई दर 4% से ऊपर जा सकती है। इसके पीछे दो मुख्य कारण हो सकते हैं —
- बेस इफ़ेक्ट का उलट असर, जब पिछले साल की कम कीमतों के मुकाबले इस साल की कीमतें अधिक दिखेंगी।
- मांग में तेजी, खासकर त्योहारी सीजन और सरकारी नीतिगत खर्च से।
कोर महंगाई (खाद्य और ईंधन को छोड़कर) पूरे साल हल्के से ऊपर 4% रहने का अनुमान है, जब तक कि कच्चे माल की कीमतों में अचानक बढ़ोतरी या आपूर्ति में बड़े झटके न आएं।
क्षेत्रवार प्रभाव
- कृषि क्षेत्र: अच्छे मानसून और कम इनपुट लागत से किसानों को उत्पादन लागत घटाने में मदद मिलेगी, हालांकि वैश्विक बाजार में कीमतों का दबाव बना रहेगा।
- उद्योग और विनिर्माण: सस्ते ईंधन और कच्चे माल से उत्पादन लागत कम होगी, जिससे निर्यात प्रतिस्पर्धा बढ़ सकती है।
- सेवा क्षेत्र: परिवहन और लॉजिस्टिक्स की लागत घटने से सेवा प्रदाताओं का मार्जिन सुधर सकता है।
समग्र तस्वीर
थोक और खुदरा, दोनों स्तरों पर महंगाई में आई नरमी उपभोक्ताओं, व्यवसायों और नीतिनिर्माताओं के लिए एक राहतभरी खबर है। इससे RBI को ब्याज दर नीति में लचीलापन बनाए रखने और आर्थिक विकास को समर्थन देने का अवसर मिलता है।
हालाँकि, वैश्विक तेल बाजार में उतार-चढ़ाव, अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अनिश्चितता और घरेलू मांग में बढ़ोतरी जैसे कारक आने वाले महीनों में महंगाई प्रबंधन को चुनौतीपूर्ण बना सकते हैं।
अभी के लिए, जुलाई के आंकड़े यह संकेत दे रहे हैं कि भारत महंगाई नियंत्रण के मोर्चे पर अपेक्षाकृत मजबूत स्थिति में है, लेकिन सतर्कता बनाए रखना और समय पर नीतिगत हस्तक्षेप करना जरूरी रहेगा।

