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प्रवीण कुमार

आज से ठीक 620 दिन पहले की बात है। 25 अक्टूबर 2022 की तारीख थी जब ब्रिटेन में भारतवंशी ऋृषि सुनक ने 10 डाउनिंग स्ट्रीट यानी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री आवास में अपनी पत्नी अक्षता नारायण मूर्ति और पालतू कुत्ता नोवा के साथ अपना पहला कदम रखा था। कंजर्वेटिव पार्टी में अंतरकलह की वजह से उन्हें ब्रिटेन के प्रधानमंत्री की कुर्सी मिली थी। एक साल 8 महीने 15 दिन बाद 5 जून 2024 को सुनक ने लंदन की उसी 10 डाउनिंग स्ट्रीट से अपने परिवार के साथ बाहर आकर अपनी हार कबूल ली। उनकी कंजर्वेंटिव पार्टी को 14 साल बाद चुनाव में करारी हार मिली है। जिस अंतरकलह ने सुनक को सत्ता में बिठाया था, कहते हैं उसी अंतरकलह की वजह से पार्टी को करारी हार मिली है।

खबर आ रही है कि ब्रिटेन के आम चुनाव में लेबर पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज की है। संसद की 650 में से लेबर पार्टी को 412 सीटें मिल चुकी हैं। सरकार बनाने के लिए संसद में 326 सीटों की जरूरत होती है। वहीं भारतीय मूल के ऋृषि सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को सिर्फ 121 सीटें ही मिल पाई हैं। ये लेबर पार्टी की इतिहास में दूसरी सबसे बड़ी जीत है और कंजर्वेटिव पार्टी को 200 सालों में मिली सबसे बड़ी हार। लेबर पार्टी को इससे पहले इतनी बड़ी जीत साल 1997 में मिली थी। तब उन्हें रिकॉर्ड 418 सीटें हासिल हुई थीं। उस वक्त पार्टी की कमान टोनी ब्लेयर के हाथों में थी। 71 सीटों पर जीत दर्ज कर लिबरल डेमोक्रेटिक तीसरे नंबर पर रही। ब्रिटेन के 58वें प्रधानमंत्री बनने जा रहे लेबर पार्टी के नेता सर कीर स्टार्मर के व्यक्तित्व की बात करें तो वह सुनक से एकदम उलट हैं। भारतवंशी सुनक जहां खुद को धार्मिक बताते रहे हैं, वहीं स्टार्मर भगवान में यकीन नहीं करने वाले नेता हैं। स्टार्मर सुनक की तरह अरबपति भी नहीं हैं।  

ब्रिटेन का जनादेश जिस रूप में सामने आया है इसकी आहट पहले से ही सुनाई देने लगी थी। चुनाव से पहले ही सुनकर सरकार में इस्तीफों की झड़ी लग गई थी। बीते एक साल में तीन मंत्रियों और 78 सांसदों ने इस्तीफा देकर चुनाव लड़ने तक से इनकार कर दिया था। इससे पहले 2019 में सुनक की कंजर्वेटिव पार्टी को 365, कीर स्टार्मर की लेबर पार्टी को 202 और लिबरल डेमोक्रेट्स को 11 सीटें मिली थीं। इस बार लगभग सभी सर्वे में कंजर्वेटिव पार्टी की करारी हार की आशंका जताई गई थी। यूगोव के सर्वे में लेबर पार्टी को 425, कंजर्वेटिव को 108, लिबरल डेमोक्रेट को 67, एसएनपी को 20 सीटें मिलने का अनुमान लगाया गया था। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि लगातार 14 साल तक सत्ता में रही कंजर्वेटिव पार्टी की हालत ऐसी कैसे हो गई? सुनक ने प्रधानमंत्री रहते आखिर क्या गलतियां हुईं जो पार्टी को इतनी करारी हार का सामना करना पड़ा?

अर्थव्यवस्था बनी गले की फांस : ब्रिटेन में 70 साल के इतिहास में टैक्स की दरें सबसे ज्यादा हैं। सरकार के पास लोगों पर खर्च करने के लिए पैसे नहीं हैं। इसी बीच आया साल 2020 का वक्त। दुनिया कोरोना के जाल में फंस गई थी। ब्रिटेन की सरकार इससे बच निकलने के लिए एक बड़ी योजना लेकर आई और अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए 280 बिलियन पाउंड यानी 29 लाख करोड़ रुपए खर्च कर डाले। उस वक्त सुनक वित्त मंत्री थे। पूरी योजना उन्हीं की बनाई हुई थी। हालांकि, सरकार ने ये पैसे अपनी जेब से खर्च नहीं किए थे। इसके लिए कर्ज लिया गया था। इसके पीछे की सोच ये थी कि कर्ज बहुत कम सिर्फ 0.1% ब्याज दर पर लिया गया था जिसे अर्थव्यवस्था के पटरी पर आते ही चुका देने की मंशा थी। लेकिन फिर जो हुआ उसकी आशंका किसी को नहीं थी।

रूस ने यूक्रेन पर चढ़ाई कर दी। बदले में अमेरिका की अगुआई में यूरोप के देशों ने रूस से तेल और गैस खरीदना बंद कर दिया। नतीजा यह हुआ कि वहां, गैस और तेल के दाम आसमान छूने लगे। महंगाई दर बढ़कर 5% से ज्यादा हो गई। लोगों के लिए जरूरत का सामान जुटाना मुश्किल होने लगा। सरकार ने इस संकट से निपटने के लिए और कर्ज लेकर 400 बिलियन पाउंड खर्च कर दिए। बढ़ती महंगाई से निपटने के लिए ब्रिटेन के सेंट्रल बैंक ने ब्याज दरें बढ़ा दीं। इससे महंगाई तो कम हुई लेकिन ब्रिटेन की सरकार ने जो कर्ज लिया था उसका ब्याज बढ़ गया। सुनक की सरकार कर्ज पर सालाना 40 बिलियन पाउंड चुकाने में बुरी तरह फंस गई। यह राशि बढ़कर 100 बिलियन पाउंड हो गया। ब्याज दरें बढ़ने की वजह से सरकार के पास लोगों की जरूरतों, देश की सुरक्षा, चिकित्सा व्यवस्था पर खर्च करने के लिए पैसा कम पड़ने लगा। इससे सुनक सरकार ने लोगों पर खर्च कम कर दिया। इससे जनता में जबरदस्त नाराजगी बढ़ी। कहने का मतलब यह कि इस चुनाव में इकोनॉमी का बेड़ा गर्क सबसे अहम मुद्दा रहा।

सुनक फैमिली की लग्जरी लाइफ : याद हो तो जुलाई 2023 में ऋृषि सुनक स्कॉटलैंड के दौरे से लौटकर जब बीबीसी रेडियो को इंटरव्यू दे रहे थे तो इस दौरान प्रजेंटर ने उनसे एक सवाल पूछा था- एक तरफ तो आप हमेशा क्लाइमेट चेंज रोकने की बातें करते हैं, वहीं दूसरी तरफ देश के अंदर की यात्रा के लिए भी आप प्राइवेट जेट का इस्तेमाल करते हैं। आखिर इससे भी तो कार्बन उत्सर्जन होता है। इस सवाल पर सुनक बेहद नाराज हो गए थे। तब उन्होंने मुट्ठी भींचते हुए कहा था- मैं अपने वक्त का सबसे सही इस्तेमाल करना चाहता हूं। अच्छा होगा आप इस मसले पर सवाल करने से ज्यादा, इसके समाधान पर बात करें। हालांकि ये पहली बार नहीं था जब सुनक के लग्जरी लाइफ स्टाइल पर सवाल उठे हों। उनके वित्त मंत्री रहते भी वे कई बार अपनी लग्जरी लाइफस्टाइल को लेकर आलोचनाओं का शिकार हुए थे। साल 2020 में 20 हजार रुपए के कॉफी मग संग स्पॉट वाली घटना को कौन भूल सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो सुनक ने साल 2022 में एक हफ्ते के भीतर प्राइवेट जेट से यात्रा के लिए 5 करोड़ रुपए से ज्यादा सरकारी पैसा खर्च किया था। विपक्ष कई मौकों पर इस मुद्दे को उठाता रहा है कि ब्रिटेन की जनता महंगाई की मार झेल रही है और ऋृषि सुनक आम जनता के पैसों पर लग्जरी लाइफ जी रहे हैं।  सुनक की पत्नी अक्षता नारायण मूर्ति को ब्रिटेन का बिल गेट्स कहा जाता है। अक्षता का नाम ब्रिटेन की सबसे अमीर महिलाओं में शुमार होता है। संडे टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2023 में सुनक और अक्षता की संपत्ति में 1200 करोड़ रुपए का इजाफा हुआ। इसके साथ उनकी कुल संपत्ति बढ़कर 68 हजार करोड़ रुपए की हो गई। सुनक और अक्षता ब्रिटेन के किंग चार्ल्स से भी अमीर हैं।

अक्षता मूर्ति आईटी कंपनी इंफोसिस के संस्थापक नारायण मूर्ति और सुधा मूर्ति की बेटी हैं। अक्षता के पास इंफोसिस में 0.91 प्रतिशत की हिस्सेदारी है। इसकी कीमत लगभग 4.5 हजार करोड़ रुपए है। लेबर पार्टी ने सुनक और अक्षता की संपत्ति में हुए इजाफे को इस चुनाव में अहम मुद्दा बनाया था। लेबर पार्टी अक्षता मूर्ति पर टैक्स चोरी का आरोप भी लगाती रही है। सुनक के प्रधानमंत्री बनने के दौरान भी उन पर ये आरोप लगा था। दरअसल, अक्षता मूर्ति ने ऋृषि सुनक से शादी के बाद भी भारत की नागरिकता नहीं छोड़ी है। इसके चलते उन्हें ब्रिटेन के बाहर होने वाली कमाई पर कोई टैक्स नहीं देना पड़ता है। इस मुद्दे को लेकर सुनक की पार्टी के अंदर भी कई दफे सवाल उठे। पिछले साल अक्षता मूर्ति की संपत्ति और टैक्स चोरी का मुद्दा ब्रिटिश संसद में उठा था। हालात इस कदर प्रतिकूल हो गए थे कि सुनक को इससे जुड़े सवालों का संसद में जवाब देना पड़ा था। द गार्जियन के मुताबिक, सुनक की रोजमर्रा की जिंदगी में लोगों को उनकी अमीरी की झलक दिखती रही। इससे लोगों के मन में ये संशय बना रहा कि सुनक उनकी परेशानियों और जीवन की मुश्किलों को समझ नहीं पाए। जो उनकी हार में बड़ी वजह बनी। (लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

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