मनरेगा में बदलावों को बताया गरीब विरोधी, केंद्र सरकार पर किया हमला

AMN / नई दिल्ली
कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) में हालिया बदलावों को लेकर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि मनरेगा जैसा जनहितकारी कानून ग्रामीण गरीबों, किसानों और मजदूरों के लिए जीवनरेखा रहा है, लेकिन बीते वर्षों में इसे कमजोर करने की लगातार कोशिशें की गई हैं।
सोनिया गांधी ने मनरेगा कानून के 20 वर्ष पूरे होने का उल्लेख करते हुए कहा कि वर्ष 2005 में तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व में यह कानून संसद में सर्वसम्मति से पारित हुआ था। उन्होंने कहा कि इस कानून ने करोड़ों ग्रामीण परिवारों को रोजगार का कानूनी अधिकार दिया और पलायन पर रोक लगाने में अहम भूमिका निभाई। इससे ग्राम पंचायतों को भी सशक्त बनाया गया और महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की परिकल्पना को आगे बढ़ाया गया।
उन्होंने आरोप लगाया कि पिछले 11 वर्षों में मोदी सरकार ने ग्रामीण बेरोजगारों, गरीबों और वंचित वर्गों के हितों की अनदेखी की है। कोविड-19 महामारी के दौरान जब मनरेगा गरीबों के लिए संजीवनी साबित हुआ, उस समय भी सरकार का रवैया उदासीन रहा।
सोनिया गांधी ने कहा कि हाल ही में सरकार ने मनरेगा की संरचना में बिना व्यापक विचार-विमर्श और विपक्ष को विश्वास में लिए बिना बदलाव किए हैं। उन्होंने दावा किया कि योजना से महात्मा गांधी का नाम हटाया गया है और अब रोजगार से जुड़े फैसले दिल्ली में बैठकर तय किए जाएंगे, जो जमीनी हकीकत से कटे हुए हैं।
उन्होंने कहा कि मनरेगा कांग्रेस पार्टी की नहीं, बल्कि देश और जनहित से जुड़ी योजना है। इस कानून को कमजोर करना देश के करोड़ों किसानों, श्रमिकों और भूमिहीन ग्रामीण गरीबों के हितों पर सीधा हमला है।
अपने संबोधन के अंत में सोनिया गांधी ने कहा कि जिस तरह 20 साल पहले गरीबों को रोजगार का अधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया गया था, उसी तरह अब भी मनरेगा को कमजोर करने के खिलाफ कांग्रेस पूरी ताकत से लड़ने के लिए तैयार है। उन्होंने कहा कि कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता ग्रामीण जनता के साथ खड़े हैं।
