
रिपोर्ट: अनवरुल होदा | स्थान: पटना, 29 जून 2025
पटना का ऐतिहासिक गांधी मैदान 29 जून को इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया, जब देश के कोने-कोने से आए **लाखों लोगों ने शांतिपूर्ण लेकिन दृढ़ संकल्प के साथ केंद्र सरकार द्वारा लाए गए विवादित वक़्फ़ अधिनियम 2025 के ख़िलाफ़ अपनी आवाज बुलंद की। यह विरोध सिर्फ एक सभा नहीं था, बल्कि धार्मिक स्वतंत्रता और संविधान की रक्षा में एकजुट भारत के मुसलमानों का ऐलान था।
विरोध का नेतृत्व और उद्देश्य
इस ऐतिहासिक सम्मेलन का आयोजन इमारत-ए-शरीअत (बिहार, झारखंड, ओडिशा और पश्चिम बंगाल) के तत्वावधान में हुआ, जिसका नेतृत्व अमीर-ए-शरीअत मौलाना अहमद वली फैसल रहमानी साहब ने किया। उन्होंने मंच से शपथ दिलाई:
“जब तक यह काला क़ानून वापस नहीं लिया जाता, हमारी यह संघर्षशील मुहिम जारी रहेगी।”
वक़्फ़ अधिनियम 2025 को न केवल धार्मिक अधिकारों का हनन बताया गया, बल्कि इसे संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 25, 26 और 300A का खुला उल्लंघन करार दिया गया।
देशव्यापी भागीदारी और प्रतिनिधित्व
इस जनसैलाब में केवल बिहार ही नहीं, बल्कि उत्तर प्रदेश, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल, दिल्ली, मध्य प्रदेश, केरल, महाराष्ट्र आदि से भारी संख्या में लोग शामिल हुए। महिलाएं, छात्र, बुज़ुर्ग, किसान, व्यापारी, मज़दूर — हर वर्ग के लोग इस मंच पर एकजुट दिखाई दिए।

धार्मिक और राजनीतिक हस्तियों का समर्थन
मंच पर कई प्रतिष्ठित धार्मिक हस्तियाँ मौजूद थीं, जिनमें जनाब सरवर चिश्ती साहब (सज्जादा नशीन, अजमेर शरीफ), जनाब यासीन अली उस्मानी बदायूंनी साहब (सचिव, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड) और मौलाना अरशद मदनी साहब के विशेष प्रतिनिधि शामिल थे। देशभर के दर्जनों उलमा-ए-किराम और मशाइख की उपस्थिति ने इस आंदोलन को राष्ट्रीय स्वरूप प्रदान किया।
राजनीतिक मोर्चे पर, बिहार विधानसभा में विपक्ष के नेता श्री तेजस्वी यादव कई सांसदों और विधायकों (राजद) के साथ मौजूद रहे। लोकसभा में विपक्ष के नेता श्री राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे के समर्थन संदेश कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष द्वारा पढ़े गए। सीपीआई (एमएल) के राष्ट्रीय महासचिव श्री दीपांकर भट्टाचार्य सहित विभिन्न दलों के नेता और विधायक भी उपस्थित थे।
आंदोलन की निरंतरता और संवैधानिक चिंताएँ
सभा के अंत में, मौलाना फैसल रहमानी साहब ने उपस्थित लोगों को वक़्फ़ की हिफ़ाज़त और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा की शपथ दिलाई। उन्होंने स्पष्ट किया कि यह आंदोलन का अंत नहीं, बल्कि एक निर्णायक मोड़ है, और यह तब तक जारी रहेगा जब तक वक़्फ़ अधिनियम 2025 वापस नहीं लिया जाता। उन्होंने लोगों से एकजुट, सतर्क और संगठित रहने का आह्वान किया।
इस विरोध की सबसे ख़ास बात इसकी स्वाभाविकता थी — किसी विशेष वक्ता के नाम की घोषणा या कोई प्रचार नहीं किया गया था। लोग केवल अपने दर्द, अपमान और संवैधानिक चिंता को व्यक्त करने के उद्देश्य से स्वतः स्फूर्त ढंग से एकत्र हुए थे।
वक़्फ़ अधिनियम 2025 पर सवाल
विरोधियों का कहना है कि वक़्फ़ अधिनियम 2025 समुदाय के धार्मिक अधिकारों और संपत्ति के प्रबंधन से वंचित करता है, और यह संविधान के अनुच्छेद 13, 14, 25, 26 और 300A का उल्लंघन करता है। उनका यह भी तर्क है कि यह अधिनियम कई सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसलों के भी प्रतिकूल है।
पटना से देश को यह स्पष्ट संदेश गया है कि भारत का मुस्लिम समाज और उसके संवैधानिक समर्थक अन्याय के खिलाफ चुप नहीं रहेंगे। अब सरकार से संवाद, पारदर्शिता और सुधार के साथ प्रतिक्रिया देने की अपेक्षा है। यह मात्र एक विरोध प्रदर्शन नहीं, बल्कि एक लोकतांत्रिक जागृति थी, और इस आवाज़ को सुना जाना चाहिए।
धार्मिक व राजनीतिक नेतृत्व की भागीदारी
मंच पर देश के प्रमुख उलेमा और मशायख मौजूद थे —
अजमेर शरीफ के सज्जादा नशीन सरवर चिश्ती, अल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के मौलाना यासीन बदायूंनी, मौलाना अबुल कलाम शम्सी, मौलाना आमिर रशादी, जमीयत, जमात-ए-इस्लामी, इमामिया काउंसिल के प्रतिनिधियों सहित कई धर्मगुरुओं ने इस क़ानून को पूरी तरह ख़ारिज कर दिया।
वहीं तेजस्वी यादव (पूर्व उप मुख्यमंत्री), पप्पू यादव, इमरान प्रतापगढ़ी, तारीक अनवर, दिग्विजय सिंह, दीपांकर भट्टाचार्य, और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे व राहुल गांधी का समर्थन संदेश सभा में पढ़ा गया। सभी नेताओं ने कहा कि यह क़ानून अल्पसंख्यकों की संपत्ति पर हस्तक्षेप और संविधान के ढांचे पर हमला है।
भावनात्मक अपील और राष्ट्रीय संदेश
इस सभा की सबसे बड़ी विशेषता यह रही कि यह स्वतःस्फूर्त थी — न कोई बड़े प्रचार, न किसी नाम का प्रदर्शन। लोग केवल एक मक़सद के साथ आए थे — अपने वक़्फ़, अपनी आस्था और अपने संविधान की रक्षा के लिए।
अंत में अमीर-ए-शरीअत ने दुआ करवाई और कहा:
“यह आंदोलन एक नई शुरुआत है — जब तक इंसाफ़ नहीं मिलेगा, हम पीछे नहीं हटेंगे।”
पटना से उठी यह आवाज़ अब पूरे देश में गूंज रही है:
- यह सिर्फ़ विरोध नहीं, संविधान और न्याय के प्रति जनजागरूकता की लहर है।
- यह संदेश है कि मुसलमान संविधान के तहत अपने अधिकारों के लिए शांतिपूर्ण तरीके से लड़ेंगे।
- अब सरकार की बारी है कि वह संवाद, पारदर्शिता और इंसाफ के रास्ते पर चले।