मुसलमानों पर संगठित हमले, असम बना सबसे बड़ा निशाना

अंदलीब अख़्तर / नई दिल्ली
जमीयत उलमा-ए-हिंद (JUH) की कार्यकारिणी समिति की एक अहम बैठक दिल्ली मुख्यालय में अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की अध्यक्षता में हुई। बैठक में देश की मौजूदा स्थिति पर गहरी चिंता व्यक्त की गई, विशेषकर असम में चल रहे मुस्लिम परिवारों के बड़े पैमाने पर बेदखली अभियान को लेकर। जमीयत ने इसे “संविधान और कानून के राज पर सीधा हमला” करार दिया।
असम में बुलडोज़र कार्रवाई पर निशाना
मौलाना मदनी ने कहा कि असम में पचास हज़ार से अधिक मुस्लिम परिवारों को घरों से उजाड़ा जा रहा है, जबकि ये बस्तियाँ दशकों पुरानी हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि यदि ये बस्तियाँ अवैध थीं, तो अब तक सरकारों ने वहाँ स्कूल, बिजली और अन्य सुविधाएँ क्यों उपलब्ध कराईं? “सच्चाई यह है कि सिर्फ मुस्लिम बहुल क्षेत्रों को निशाना बनाया जा रहा है और मुख्यमंत्री ने खुद स्वीकार किया है कि कार्रवाई केवल मुसलमानों पर हो रही है,” उन्होंने कहा।
जमीयत ने आरोप लगाया कि यह केवल बेदखली नहीं बल्कि नागरिक अधिकारों को छीनने की साजिश है। मुख्यमंत्री का बयान कि बेदखल परिवारों को मतदाता सूची से हटा दिया जाएगा, इसी का प्रमाण है। मौलाना मदनी ने सवाल किया, “क्या किसी मुख्यमंत्री का फरमान संविधान से बड़ा है? क्या कोई राज्य सरकार नागरिकों से मतदान का अधिकार छीन सकती है?”
मुसलमानों पर व्यवस्थित हमले
बैठक में यह भी कहा गया कि असम ही नहीं, पूरे देश में मुसलमान कई मोर्चों पर निशाने पर हैं। मस्जिदों-मदरसों पर हमले, नफ़रत फैलाने वाली बयानबाज़ी और योजनाबद्ध भेदभाव लगातार बढ़ रहा है। मौलाना मदनी ने कहा, “आज देश फासीवाद की गिरफ़्त में है। मुसलमानों को सुनियोजित तरीक़े से हाशिये पर धकेला जा रहा है।”
उन्होंने कहा कि नफ़रत को देशभक्ति का रूप दिया जा रहा है और हिंसा फैलाने वालों को क़ानून से बचाया जा रहा है। यह केवल मुसलमानों के लिए ही नहीं, बल्कि भारत की गंगा-जमुनी तहज़ीब और लोकतंत्र के लिए भी ख़तरा है।
कानूनी लड़ाई ही रास्ता
जमीयत उलमा-ए-हिंद ने दोहराया कि वह सड़कों पर टकराव की राजनीति नहीं करती, बल्कि न्यायपालिका के ज़रिए संघर्ष करती है। “हमारी लड़ाई किसी व्यक्ति या संगठन से नहीं, बल्कि सरकार से है। सरकार का दायित्व है कि हर नागरिक की सुरक्षा करे, और जब वह इसमें विफल होती है तो हमें अदालत का दरवाज़ा खटखटाना पड़ता है,” मौलाना मदनी ने कहा।
असम के मामले पर जमीयत ने घोषणा की कि वह जल्द ही सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेगी। इस संबंध में असम से आए जमीयत और एएएमएसयू (ऑल असम माइनॉरिटी स्टूडेंट्स यूनियन) के प्रतिनिधि दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट के वकीलों से सलाह-मशविरा कर रहे हैं।
मौलाना मदनी ने याद दिलाया कि एनआरसी प्रक्रिया के दौरान भी जमीयत की कानूनी लड़ाई ने लाखों मुसलमानों को ‘विदेशी’ घोषित होने से बचाया। उन्होंने कहा, “आज भी बेदखली का अभियान, मुसलमानों को असम से बाहर धकेलने की उसी साज़िश का हिस्सा है।”
न्यायपालिका से गुहार
जमीयत ने भारत के मुख्य न्यायाधीश से अपील की है कि असम की बेदखली पर स्वत: संज्ञान लें और जिम्मेदार अधिकारियों, यहाँ तक कि मुख्यमंत्री के खिलाफ भी कार्रवाई करें। जमीयत का कहना है कि यह सिर्फ मुसलमानों का मुद्दा नहीं है, बल्कि भारत की लोकतांत्रिक विश्वसनीयता का सवाल है।
जमीयत ने स्पष्ट किया कि वह सरकारी भूमि पर अवैध कब्ज़े का समर्थन नहीं करती, लेकिन मुस्लिम बस्तियों को चुन-चुनकर तोड़ा जाना असली मंशा को उजागर करता है। “हम किसी भी सरकार को नागरिकों को दूसरे दर्जे का बनाने नहीं देंगे,” मौलाना मदनी ने कहा।
बैठक में फिलिस्तीन में इज़राइल की बर्बर कार्रवाई की भी निंदा की गई, लेकिन मुख्य चिंता भारत के मुसलमानों और असम की स्थिति को लेकर रही।
मौलाना मदनी ने कहा, “यह केवल मुसलमानों की लड़ाई नहीं है, यह संविधान और न्यायपालिका की परीक्षा है। हमें यक़ीन है कि इंसाफ़ ज़रूर होगा।”
