–
प्रवीण कुमार

साल 2010 में आयोजित हुए कॉमनवेल्थ गेम्स (CWG Games) को लेकर जिस बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार और मनी लॉन्ड्रिंग के आरोप आयोजन समिति के प्रमुख और अन्य लोगों पर लगे थे, वह अब आखिरकार न्यायिक दृष्टि से समाप्त हो चुका है। दिल्ली की राउज एवेन्यू कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) की क्लोजर रिपोर्ट को स्वीकार करते हुए यह स्पष्ट कर दिया कि मामले में मनी लॉन्ड्रिंग के कोई ठोस सुबूत नहीं मिले हैं। इस तरह से करीब डेढ़ दशक से चले आ रहे एक राजनीतिक और कानूनी विवाद का अंत हो गया है।
दरअसल, कॉमनवेल्थ गेम्स 2010 का आयोजन दिल्ली में हुआ था और यह आयोजन शुरू से ही विवादों में घिरा रहा। अधिक लागत, अनुबंधों में अनियमितता, और गुणवत्ता से जुड़ी शिकायतों के बीच नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्ट में घोटाले की आशंका जताई गई थी। इसके बाद केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) ने एक दर्जन से अधिक मामले दर्ज किए। प्रमुख नामों में आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी और महासचिव ललित भनोट शामिल थे।
CBI ने आरोप लगाया था कि आयोजन समिति ने कुछ ठेके गेम्स वर्कफोर्स सर्विस और प्रोजेक्ट एंड रिस्क मैनेजमेंट सर्विसेज कंपनियों को दिए जिनसे 30 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। इन आरोपों के आधार पर 2011 में सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार किया गया और वह करीब 9 महीने तक तिहाड़ जेल में रहे भी। लेकिन CBI को बाद में भ्रष्टाचार का कोई ठोस सबूत नहीं मिला जिसके चलते जनवरी 2014 में उसने क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की।
कॉमनवेल्थ घोटाले की टाइमलाइन
वर्ष/तिथि | घटना विवरण |
---|---|
अक्टूबर 2010 | दिल्ली में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन, कई तरह की अनियमितताओं और भ्रष्टाचार के आरोप लगते हैं |
2010 के अंत | CAG रिपोर्ट में सरकारी खर्चों और ठेके देने की प्रक्रिया में अनियमितताएं उजागर |
अप्रैल 2011 | CBI ने सुरेश कलमाड़ी को आयोजन समिति (OC) प्रमुख पद से हटाया और गिरफ्तार किया |
जनवरी 2012 | हाईकोर्ट ने सुरेश कलमाड़ी को 9 महीने जेल में रहने के बाद ज़मानत दी |
जनवरी 2014 | CBI ने भ्रष्टाचार के मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की, कहा कोई पुख्ता सबूत नहीं |
2015 के बाद | ED ने मनी लॉन्ड्रिंग के एंगल से जांच शुरू की |
अप्रैल 2025 | कोर्ट ने ED की क्लोजर रिपोर्ट स्वीकार की, सभी आरोपियों को मनी लॉन्ड्रिंग से बरी किया |
इसी भ्रष्टाचार के आधार पर प्रवर्तन निदेशालय ने भी मनी लॉन्ड्रिंग की जांच शुरू की थी, लेकिन अब कोर्ट ने इसमें भी स्पष्ट कर दिया है कि ED की जांच में भी मनी लॉन्ड्रिंग का कोई प्रमाण नहीं मिला। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब मूल भ्रष्टाचार का मामला ही खत्म हो चुका है तो उससे उत्पन्न मनी लॉन्ड्रिंग का मामला भी आगे नहीं बढ़ाया जा सकता।
मामले के कानूनी निष्कर्ष के बाद राजनीतिक बयानबाज़ी तेज हो गई है। कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने इस फैसले के बाद भारतीय जनता पार्टी (BJP) और आम आदमी पार्टी (AAP) पर तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि इन दलों ने सत्ता में आने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित की छवि को जानबूझकर धूमिल किया। पवन खेड़ा ने मांग की कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अरविंद केजरीवाल को इस मामले में जनता से माफी मांगनी चाहिए।
मालूम हो कि कॉमनवेल्थ घोटाला इंडियन पॉलिटिक्स और मीडिया के लिए एक ‘नरेटिव टूल’ बन गया था। विशेषकर 2011 के बाद के वर्षों में जब भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चरम पर था, तो यह मामला उसके प्रतीक के रूप में देखा गया। अन्ना हजारे के आंदोलन और आम आदमी पार्टी के गठन के पीछे इस प्रकार के मामलों ने जनाक्रोश को बढ़ावा दिया। ऐसे में, इस फैसले से यह भी सवाल उठता है कि क्या उस समय का मीडिया ट्रायल और जनदबाव निष्पक्ष जांच और न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव डाल रहे थे?
इस मामले में कोर्ट ने तटस्थ और तथ्यों पर आधारित रुख अपनाया। स्पेशल जज संजीव अग्रवाल ने स्पष्ट किया कि जब दोनों प्रमुख जांच एजेंसियों (CBI और ED) को कोई प्रमाण नहीं मिला तो अदालत के पास भी कोई आधार नहीं था कि वह जांच को आगे बढ़ाए। इससे न्यायपालिका की निष्पक्षता और तथ्यों पर आधारित निर्णय की पुष्टि होती है।
बहरहाल, कॉमनवेल्थ घोटाले के मामले में कानूनी रूप से अब अंतिम मुहर लग चुकी है। यह न सिर्फ एक लंबे मुकदमेबाजी का अंत है, बल्कि राजनीतिक विमर्श के उस अध्याय का भी पटाक्षेप है, जिसने पिछले एक दशक से अधिक समय तक भारतीय राजनीति को प्रभावित किया। यह घटना एक सबक भी देती है कि जांच और अभियोजन को सिर्फ आरोपों और जनदबाव के आधार पर नहीं, बल्कि ठोस प्रमाणों पर आधारित होना चाहिए। साथ ही, राजनीतिक दलों और मीडिया को भी ज़िम्मेदारी से पेश आना चाहिए, ताकि न्याय व्यवस्था पर अनावश्यक दबाव न बने।