
HEALTH DESK
स्तनपान केवल एक मातृ प्रवृत्ति नहीं, बल्कि शिशु के स्वास्थ्य, विकास और जीवन-रक्षा का सबसे शक्तिशाली साधन है। जन्म के बाद के नाज़ुक महीनों में यह बच्चे का पहला “टीका” बनकर उसके शरीर में रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित करता है और उसे दस्त, निमोनिया जैसी घातक बीमारियों से बचाता है, जो आज भी दुनिया भर में लाखों बच्चों की जान ले लेती हैं।
लेकिन इसके सिद्ध और अनेकों लाभों के बावजूद, दुनिया इस दिशा में पीछे है। छह महीने से कम आयु के केवल 48% शिशु ही पूर्ण रूप से स्तनपान कर पाते हैं, जबकि विश्व स्वास्थ्य सभा (WHA) ने वर्ष 2030 तक 60% का लक्ष्य निर्धारित किया है। यह कमी माताओं की इच्छा या कोशिश की कमी के कारण नहीं, बल्कि एक जटिल वास्तविकता का नतीजा है — कमजोर और संसाधन-विहीन स्वास्थ्य प्रणालियां, प्रशिक्षित स्वास्थ्यकर्मियों की कमी, और माताओं को समय पर सहयोग न मिलना।
अनेक देशों में, नई माताएं अस्पताल से बिना किसी स्पष्ट मार्गदर्शन के घर लौटती हैं — न उन्हें सही स्तनपान तकनीक सिखाई जाती है, न यह बताया जाता है कि पूरक आहार कब शुरू किया जाए। आंकड़े बताते हैं कि सिर्फ हर पांचवां देश ही अपने डॉक्टरों और नर्सों को शिशु और छोटे बच्चों के पोषण पर व्यवस्थित प्रशिक्षण देता है। बाकी जगह माताएं, विशेषकर पहली बार मां बनने वाली महिलाएं, इस महत्वपूर्ण सफ़र में लगभग अकेली रह जाती हैं।
कई स्वास्थ्य प्रणालियां, विशेषकर निम्न-आय वाले देशों में, या तो संसाधनों की कमी से जूझ रही हैं, या बिखरी और असंगठित हैं। नतीजा यह कि प्रमाण-आधारित, सतत और गुणवत्तापूर्ण स्तनपान सहयोग अधिकांश माताओं की पहुंच से बाहर है।
इस उपेक्षा की कीमत सिर्फ स्वास्थ्य के मोर्चे पर ही नहीं, अर्थव्यवस्था पर भी भारी पड़ती है। शोध से साबित है कि स्तनपान पर लगाया गया हर 1 डॉलर, 35 डॉलर का आर्थिक लाभ लौटाता है — बेहतर स्वास्थ्य, कम चिकित्सा खर्च और अधिक उत्पादकता के रूप में। इसके बावजूद, इस दिशा में निवेश बेहद कम है और राजनीतिक प्राथमिकता सीमित।
विश्व स्तनपान सप्ताह के अवसर पर, जिसका विषय है “स्तनपान को प्राथमिकता दें: सतत सहयोग प्रणाली बनाएं”, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और यूनिसेफ ने सरकारों, स्वास्थ्य प्रशासकों और साझेदारों से ठोस कदम उठाने का आह्वान किया है। उनका आग्रह है कि:
- समान, गुणवत्तापूर्ण मातृत्व एवं नवजात देखभाल में स्तनपान को अनिवार्य सेवा के रूप में शामिल किया जाए।
- राष्ट्रीय बजट में स्तनपान कार्यक्रमों के लिए पर्याप्त धन आवंटित किया जाए।
- गर्भावस्था से लेकर प्रसव और प्रसवोत्तर देखभाल तक, सभी मातृ एवं शिशु स्वास्थ्य सेवाओं में स्तनपान परामर्श और सहायता को जोड़ा जाए।
- सभी स्वास्थ्यकर्मियों को प्रशिक्षित किया जाए ताकि वे सामान्य परिस्थितियों से लेकर आपातकालीन और मानवीय संकटों में भी माताओं का सहयोग कर सकें।
- समुदाय-आधारित स्वास्थ्य प्रणालियों को सशक्त किया जाए, ताकि प्रत्येक मां को दो वर्ष और उससे अधिक समय तक आसानी से स्तनपान सहयोग उपलब्ध हो सके।
- अंतरराष्ट्रीय स्तन-दूध विकल्प विपणन संहिता को हर स्वास्थ्य सुविधा और प्रणाली में सख़्ती से लागू किया जाए, ताकि व्यावसायिक हस्तक्षेप से स्तनपान की रक्षा हो सके।
स्तनपान को बढ़ावा देना केवल स्वास्थ्य नीति का हिस्सा नहीं, बल्कि नैतिक जिम्मेदारी और आर्थिक बुद्धिमत्ता दोनों है। एक मज़बूत और अच्छी तरह वित्तपोषित स्वास्थ्य प्रणाली, जो स्तनपान को प्राथमिकता दे, यह सुनिश्चित करती है कि कोई भी मां या बच्चा पीछे न छूटे। WHO और यूनिसेफ ने देशों को सहयोग देने और ऐसे सशक्त स्वास्थ्य तंत्र विकसित करने के अपने संकल्प को दोहराया है, जो आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की नींव रखें।
