प्रवीण कुमार
देश की सबसे बड़ी और सबसे ताकतवर भारतीय जनता पार्टी अपने उत्कर्ष के शिखर पर है। चारों तरफ अबकी बार 400 पार के नारे से चुनावी माहौल गरमाया हुआ है। 19 अप्रैल और 26 अप्रैल को दो फेज में 190 सीटों पर चुनाव संपन्न हो चुका है। लेकिन इन दोनों चरणों में मतदान प्रतिशत में भारी गिरावट ने अबकी बार 400 पार के भाजपा के नारे पर ग्रहण लगा दिया है। अंग्रेजी अखबार द हिंदू ने अप्रैल महीने के पहले सप्ताह में सीएसडीएस-लोकनीति सर्वे के जो नतीजे प्रकाशित किए थे उसके मुताबिक, लोगों ने भ्रष्टाचार पर जो विचार जाहिर किए वे बड़े ही दिलचस्प थे। 55 फीसदी लोगों का मानना था कि पिछले पांच साल में भ्रष्टाचार बढ़ गया है। बावजूद इसके भ्रष्टाचार का मुद्दा राम मंदिर के मुद्दे की तरह चौथे नंबर पर रहा जिसे मात्र 8 फीसदी लोग सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं।
ऐसे में निश्चित तौर पर आपकी उत्सुकता यह जानने में होगी कि आखिर पहले नंबर पर लोगों में कौन सा मुद्दा घुमड़ रहा है। आपको जानकर बड़ी तसल्ली होगी कि 27 फीसदी के साथ पहले नंबर पर बेरोजगारी का मुद्दा, 23 फीसदी के साथ दूसरे नंबर पर महंगाई का मुद्दा और 13 फीसदी के साथ तीसरे नंबर पर विकास का मुद्दा आकर मौजूदा चुनाव में खड़ा हो गया है। ऐसे में बड़ा सवाल यह कि मौजूदा परिदृश्य में जिस तरीके से राजनीतिक दौर बदल गया है, भाजपा भी बदल गई है तो क्या भारतीय मतदाता भी बदल गया है? निश्चित रूप से इसका जवाब हां की तरफ ही ज्यादा लग रहा है और अगर ऐसा है तो क्या भाजपा के 370 और एनडीए के 400 पार के नारे का जो परसेप्शन गढ़ा गया है वह कहीं से पूरा होता दिख रहा है?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह द्वारा चुनाव से ठीक पहले भाजपा 370 और एनडीए 400 पार का जो टारगेट सेट किया था तो इसका मतलब इस रूप में समझिए कि भाजपा को लोकसभा की 543 सीटों में से 68 प्रतिशत सीटें जीतनी होंगी। यानी हर 3 में से 2 कुर्सी चाहिए। ये टारगेट कितना व्यवहारिक है, इसे समझने के लिए आपको आजादी के बाद से अभी तक सभी 17 लोकसभा चुनावों का विश्लेषण करना पड़ेगा। संसदीय चुनाव के इतिहास में कांग्रेस ही एक ऐसी पार्टी रही है जिसने पांच दफे लोकसभा की कुल सीटों का 68 प्रतिशत या उससे ज्यादा सीटें जीती हैं।
2024 के चुनाव में भाजपा अभी तक 432 उम्मीदवार उतार चुकी है। करीब 10 सीटों पर उम्मीदवारी तय होनी बाकी है। मतलब 424 के करीब प्रत्याशी भाजपा के होंगे। इस गणित से देखें तो भाजपा को 370 सीट जीतने के लिए 86 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट चाहिए। यानी हर 10 उम्मीदवारों में से 9 को जीतना होगा। कहते हैं कि राजनीति में ऐसी लीनियर थिंकिंग सही नहीं है। देश के अलग-अलग जोन का सामाजिक और राजनीतिक आयाम अलग-अलग होता है और ये अलग-अलग वोटिंग पैटर्न बनाता है। इसे अगर पॉलिटिकल जोन में बांटकर विश्लेषण करें तो समझना ज्यादा आसान होगा। उत्तर भारत, दक्षिणी भारत, पूर्वी भारत, पश्चिमी भारत और उत्तर पूर्व भारत इन पांच पॉलिटिकल जोन के आधार पर भाजपा के 370 पार के टारगेट को परखें कि ये कितना संभव है तो बड़े ही चौंकाने वाले परिणाम निकलकर आए।
सबसे पहले बात उत्तर भारत की कर लेते हैं। मौजूदा सीटों के लिहाज से कांग्रेस ने जब भी 370 से ज्यादा सीटें जीती हैं, उत्तर भारत में कम से कम 174 सीटें लानी पड़ी हैं। इस पैमाने पर 370 सीटों के टारगेट को पाने के लिए भाजपा को भी नॉर्थ में कम से कम 174 सीटें जीतनी होंगी। 2024 के चुनाव में भाजपा ने उत्तर में अब तक 206 उम्मीदवार उतारे हैं। 174 सीटों के लिए भाजपा उम्मीदवारों को 85 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट चाहिए होगी। 2019 में भाजपा ने यहां 208 उम्मीदवार उतारकर 87 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से 183 सीटें जीती थीं। कहने का मतलब यह कि 2024 में भाजपा को उत्तर भारत में अपनी मौजूदा सीटें बचाने की चुनौती है। अब यह कितना संभव हो पाता है ये तो 4 जून को ही पता चल पाएगा।
अब आते हैं पूर्वी भारत में। कांग्रेस ने जब भी 68 प्रतिशत सीटें जीतीं हैं तो पूर्वी भारत में कम से कम 29 सीटों पर जीत हासिल की है। मतलब यह कि भाजपा को इस इलाके में 29 सीटें जीतनी ही होंगी। 2024 के चुनाव के लिए पूर्वी जोन में पार्टी ने 63 उम्मीदवार उतारे हैं। 29 सीटों पर जीत दर्ज करने के लिए भाजपा को 46 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से चुनाव लड़ना होगा। 2019 में भाजपा ने 63 उम्मीदवार उतारकर 41 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से 26 सीटों पर जीत हासिल की थी। मतलब यह कि पार्टी को यहां थोड़ा पुश करना होगा।
अब दक्षिण भारत आते हैं। मौजूदा सीटों के लिहाज कांग्रेस को जब भी 370 सीटें मिली हैं तो दक्षिण भारत में उसने कम से कम 71 सीटें जीती हैं। इस पैमाने पर 370 सीटों के टारगेट के लिए भाजपा को भी दक्षिणी दुर्ग में कम से कम 71 सीटों पर जीत हासिल करनी होगी। 2024 के लिए भाजपा ने यहां 89 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं और यहां 71 सीटें जीतने के लिए भाजपा को 80 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से परफॉर्म करना होगा। 2019 के चुनाव में भाजपा ने 90 उम्मीदवार उतारे थे। 32 प्रतिशत के स्ट्राइक रेट से भाजपा को 29 सीटों पर जीत मिली थी और वो भी तब जब कर्नाटक में उसकी सत्ता थी। अब जबकि कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है और इस परिस्थिति में 2019 के मुकाबले 2024 में भाजपा को यहां ढाई गुना सीटें बढ़ानी होंगी।
पश्चिमी भारत की बात करें तो मौजूदा सीटों के लिहाज से कांग्रेस ने जब भी 370 से ज्यादा सीटें यहां जीती हैं तो उसे पश्चिम भारत में कम से कम 42 सीटें लानी पड़ी हैं। इस हिसाब से 370 सीटों के टारगेट के लिए भाजपा को भी कम से कम 42 सीटें जीतनी होंगी। 2024 के लिए पार्टी ने यहां से 56 उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। इस इलाके में 42 सीटें जीतने के लिए 75 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट से भाजपा को चुनाव लड़ना होगा। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 55 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और 92% स्ट्राइक रेट के साथ 55 सीटों पर जीत हासिल की थी। इसका मतलब भाजपा को इस जोन में 2019 के प्रदर्शन को दोहराना होगा।
पूर्वोत्तर भारत में कांग्रेस ने जब भी 370 सीटों पर जीत हासिल की है, तो उसे कम से कम 11 सीटें जीतनी पड़ी हैं। भाजपा को भी 370 सीटों के लिए कम से कम 11 सीटें यहां से निकालनी होंगी। अब तक पार्टी ने 18 उम्मीदवारों की घोषणा की है। अगर भाजपा को इस इलाके में 11 सीटें जीतनी हैं तो 62 प्रतिशक के स्ट्राइक रेट से चुनाव जीतने होंगे। पार्टी ने 2019 में इस इलाके में 20 सीटों पर चुनाव लड़ा था। तब उसने 70 प्रतिशत की स्ट्राइक रेट के साथ 14 सीटों पर जीत दर्ज की थी। मतलब यह कि 2024 में भाजपा को यहां भी 2019 की परफॉर्मेंस को बरकरार रखने होंगे।
इस पूरे विश्लेषण के बाद 370 सीटें जीतने के लिए भाजपा के सामने जो बड़ी चुनौतियां हैं उसे भी ध्यान में रखना होगा। पहली बात यह कि कांग्रेस ने जब भी 370 का माइलस्टोन हासिल किया है तो देश के पांचों रीजन में एक सिमेट्री में सीटें जीती हैं। यानी किसी भी इलाके का ग्राफ एकदम नीचे नहीं रहा। 2014 और 2019 का ग्राफ देखें तो भाजपा के साथ ऐसा नहीं है। वह उत्तर, उत्तर पूर्व और पश्चिमी भारत में तो बहुत ही मजबूत स्थिति में है, लेकिन दक्षिण और पूर्वी भारत में इसका ग्राफ काफी नीचे है। कहने का मतलब यह कि देश के कुछ इलाकों में तो भाजपा 90 प्रतिशत तक सीटें जीत चुकी है, लेकिन कुछ इलाकों की 100 सीटें ऐसी हैं, जहां इसका जीतना बेहद मुश्किल है। भाजपा इस मुश्किल को कैसे आसान बनाती है, 370 पार के नारे का भविष्य इसपर ही तय होगा।
दूसरी बात यह कि कांग्रेस ने जब भी 370 का माइलस्टोन हासिल किया है, उसे समाज के हर वर्ग और समुदाय के वोट मिले हैं। यह तथ्य सर्वविदित है कि देश में मुस्लिम समुदाय भाजपा का वोटर नहीं है। एक बात और कि भारत में हर राज्य का अपना अलग मिजाज होता है, अपनी धार्मिक मान्यताएं होती है, अपनी संस्कृति होती है और अलग-अलग खान-पान होता है। भाजपा अगर खानपान और कपड़े से मतदाताओं की पहचान करेगी और हर जगह सनातन धर्म की बात करेगी तो स्वभाविक तौर पर कई वर्ग और समुदाय उसे वोट देने से परहेज करेंगे। भाजपा के लिए इस चुनौती से निपटना आसान नहीं होगा। एक अंतिम बात यह कि भाजपा ने 2019 के चुनाव में उत्तर भारत के 10 राज्यों में एकतरफा जीत हासिल की थी। इनमें गुजरात, दिल्ली, उत्तराखंड, बिहार, छत्तीसगढ़, राजस्थान, मध्यप्रदेश, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश और झारखंड शामिल हैं। 370 सीटों के टारगेट को पाने के लिए पार्टी के लिए जितना जरूरी जीती सीटों पर अपने प्रदर्शन को दोहराना है, उतना ही जरूरी नई सीटों पर काबिज होना भी है।
बहरहाल, अभी तक हमने इस शोधपरक आलेख में जो भी बात की वह आंकड़ों की बुनियाद पर किया गया एक विश्लेषण था जो इस बात को साबित करता है कि हकीकत से कोसों दूर 370 या फिर 400 पार का नारा भाजपा के लिए चुनाव जीतने का एक शिगूफा भर है। ये आंकड़े और चुनावी तथ्य इस बात की तस्दीक करते हैं कि मौजूदा वक्त में भाजपा 370 पार का मतलब जिताने होंगे हर 10 में से 9 उम्मीदवार जो इस चुनावी गणित में होता दिख नहीं रहा है। अब चलते चलते बात थोड़ी राजनीतिक शुचिता की दृष्टि से भी कर लें तो इस चुनाव को समझने में आसानी होगी। कहते हैं कि भाजपा मतलब एक ऐसी पार्टी जो पहले कभी सामूहिक नेतृत्व वाली पार्टी हुआ करती थी, लंबे कालखंड तक जिस पार्टी का नेतृत्व अटल और आडवाणी की जोड़ी के हाथों में था जिसमें कहा जाता था कि अटल पार्टी की आवाज थे तो आडवाणी उसका दिमाग। फिर नेपथ्य से नागपुर में बैठे आरएसएस के रणनीतिकार कमान संभाला करते थे। लेकिन बात अब उससे कहीं आगे निकल चुकी हैं। पार्टी में एक ऐसा लक्षण साफतौर पर देखा जा सकता है जो उसे भाजपा की मूल प्रस्तावना से बिलकुल अलग ही दिशा में ले जाता है और वह है सर्वशक्तिमान व्यक्तित्व की पूजा का।
अपनी याददाश्त पर थोड़ा जोर डालेंगे तो चुनावी गहमागहमी में इस बात का अहसास आप जरूर कर पाएंगे कि इंदिरा गांधी के बाद नरेंद्र मोदी पहले ऐसे नेता हैं जिन्होंने पूरे देश में ‘लैंपपोस्ट’ चुनाव करवाने की क्षमता को विकसित किया है कि ‘ये बिजली का खंभा हमारा उम्मीदवार है, इसे वोट दो!’ मोदी की इस दंभी क्षमता ने भाजपा के लिए बेहद प्रतिकूल परिस्थिति पैदा कर दी है क्योंकि पार्टी के संस्थापक नेताओं (अटल-आडवाणी-जोशी) ने साल 1980 में इंदिरा कांग्रेस से उलट जो छवि भारतीय जनता पार्टी की गढ़ी थी यह उसके विपरीत है। और यही वजह है कि 2024 के संसदीय चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह की जोड़ी द्वारा गढ़ा गया अबकी बार भाजपा 370 पार तथा अबकी बार एनडीए 400 पार का नारा आंखों के सामने धूल-धूसरित होता दिख रहा है।
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)