प्रवीण कुमार

ग्लोबल ट्रेड वॉर में चीन ने अमेरिका को बड़ा झटका देकर पूरी दुनिया में खलबली मचा दिया है। खबर है कि चीन ने चिप बनाने में बड़े स्तर पर इस्तेमाल होने वाली दो धातुओं के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया है। ऐसा कहा जा रहा है कि इन दोनों धातुओं का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रिक व्हीकल्स और हाई-टेक इंडस्ट्री करती है। राष्ट्रीय सुरक्षा का हवाला देते हुए चीनी सरकार ने ऐलान किया है कि आगामी 1 अगस्त से गैलियम (gallium) और जर्मेनियम (germanium) के निर्यात पर अंकुश लगाया जाएगा। चीन के इस एक फैसले से भारत समेत दुनिया के बहुसंख्यक देशों की चिंता बढ़ गई है।

दरअसल, ये खबर ऐसे वक्त में आई हैं जब भारत समेत दुनिया के तमाम देश सेमीकंडक्टर चिप के लिए चीन पर अपनी निर्भरता को कम करने की दिशा में काम कर रहे थे। यूरोप के एक औद्योगिक संगठन क्रिटिकल रॉ मटीरियल एलायंस (CRMA) का कहना है कि चीन का ये ऐलान काफी मायने रखता है क्योंकि वैश्विक स्तर पर चीन जर्मेनियम उत्पादन में लगभग 60 प्रतिशत और गैलियम उत्पादन में लगभग 80 प्रतिशत हिस्सेदारी रखता है। इस प्रतिबंध से भारत के दूरसंचार, सेमीकंडक्टर और रक्षा उद्योग पर गहरा असर पड़ सकता है।

बीजिंग का कहना है कि इस अहम फैसले के बाद अब इन दोनों धातुओं को चीन से बाहर भेजने के लिए निर्यातकों को लाइसेंस के लिए आवेदन करना होगा और विदेशी खरीददारों और उनके साथ हुए सौदे का पूरा विवरण चीन की सरकार को देना होगा। जानकारों का कहना है कि यह चीन, अमेरिका और यूरोपीय देशों के बीच छिड़े टेक्नोलॉजी वॉर का नतीजा है। न्यूज वेबसाइट कैक्सिन ने कस्टम डाटा का हवाला देते हुए कहा है कि साल 2022 में चीन के गैलियम उत्पादों के शीर्ष आयातक जापान, जर्मनी और नीदरलैंड थे। जबकि जर्मेनियम उत्पादों के शीर्ष आयातक जापान, फ्रांस, जर्मनी और अमेरिका थे।

अमेरिका इन दोनों धातुओं की लगभग आधी सप्लाई सीधे चीन से हासिल करता है। चीन ने पिछले साल अमेरिका को 23 मीट्रिक टन गैलियम की सप्लाई दी थी। आंकड़े बताते हैं कि चीन हर साल करीब 600 मीट्रिक टन जर्मेनियम का उत्पादन करता है। चूंकि अमेरिका ने अत्याधुनिक चिपों और उन्हें बनाने की तकनीक के चीन तक जाने का रास्ता बंद कर दिया था। इसके साथ ही उसने अपने सहयोगियों जापान और नीदरलैंड्स को भी इस बात के लिए मना लिया था कि वह चीन को चिप बनाने वाले उपकरणों की सप्लाई सीमित कर दे। ऐसे में चीन के प्रतिबंधों को जवाबी कार्रवाई के रूप में भी देखा जा रहा है। इसे क्रिया की प्रतिक्रिया के तौर पर दुनिया देख रही है।

भारत की बात करें तो इन दोनों धातुओं के लिए हमारा देश मुख्य रूप से आयात पर निर्भर हैं। देश में गैलियम या जर्मेनियम का कोई प्राथमिक स्रोत नहीं है। मौजूदा वक्त में इसकी जरूरत चीन से आयात के जरिए ही पूरी की जाती है। स्वभाविक सी बात है, आयात पर निर्भरता को देखते हुए इन दोनों धातुओं के निर्यात पर चीन के प्रतिबंधों से भारत प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित होगा। गैलियम का इस्तेमाल सेमीकंडक्टर, इलेक्ट्रॉनिक सर्किट बोर्ड, एलईडी डिवाइसेज, विशेष तरह के थर्मामीटर और बैरोमीटर सेंसर को बनाने में किया जाता है। जबकि जर्मेनियम का इस्तेमाल ऑप्टिकल फाइबर, सोलर सेल, कैमरा और माइक्रोस्कोप लेंस, इन्फ्रारेड नाइट विजन सिस्टम आदि को बनाने में किया जाता है। चीन के प्रतिबंधों से इन उत्पादों को देश में ही बनाने की भारत की योजना बाधित होगी। इसके अलावा निकट भविष्य में चीन के इस प्रतिबंध से चिप पर आधारित उपकरणों के आयात पर भी प्रभाव पड़ सकता है।

कुल मिलाकर चीन का यह दुस्साहसी कदम एक खतरनाक रास्ता अख्तियार करता जा रहा है। दरअसल चीन को यह अच्छे से पता है कि किस नस को दबाने से अमेरिका को दर्द होगा और फिर उस दर्द का असर किन-किन देशों पर पड़ेगा। पड़ोसी देश होने के नाते चीन की नजर इस बात पर भी रहती है कि उसके फैसले से भारत को कितना दर्द होगा। निश्चित तौर पर गैलियम और जर्मेनियम को लेकर चीन का ताजा प्रतिबंध भारत की चिंता बढ़ाने वाला है।


(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)