
आर. सूर्यामूर्ति
भारत का निर्यात क्षेत्र वर्षों के सबसे बड़े झटके का सामना कर रहा है। वॉशिंगटन ने भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त 25% शुल्क लगाने की घोषणा की है, जिससे कुल आयात शुल्क 50% तक पहुंच जाएगा। यह फैसला 27 अगस्त से लागू होगा।
भारतीय निर्यात संगठनों के महासंघ (FIEO) ने मंगलवार को चेतावनी दी कि इस कदम से अमेरिका को जाने वाले भारत के 55% निर्यात (लगभग 48 अरब डॉलर मूल्य) प्रतिस्पर्धा खो देंगे। इसके चलते ऑर्डर रद्दीकरण, फैक्ट्री बंदी और बड़े पैमाने पर रोजगार संकट पैदा हो सकता है।
“हमारे निर्यातकों को वियतनाम, मैक्सिको, चीन और बांग्लादेश जैसे देशों के मुकाबले 30–35% की लागत असमानता झेलनी पड़ेगी। यदि सरकार ने तुरंत हस्तक्षेप नहीं किया तो भारत अमेरिकी बाजार में अपनी स्थिति खो देगा,” FIEO के अध्यक्ष एस.सी. रल्हन ने कहा।
37 अरब डॉलर का व्यापार घाटा
ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) के आकलन के अनुसार, भारत के 86.5 अरब डॉलर के निर्यात का दो-तिहाई हिस्सा अब 50% शुल्क के दायरे में आएगा। इससे FY2026 में निर्यात 43% तक घटकर 49.6 अरब डॉलर रह सकता है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 37 अरब डॉलर कम है।
हालांकि दवाइयाँ, एपीआई और इलेक्ट्रॉनिक्स (27.6 अरब डॉलर मूल्य) शुल्क-मुक्त रहेंगे, लेकिन वस्त्र, रत्न एवं आभूषण, झींगा, कालीन, हस्तशिल्प और फर्नीचर जैसे श्रम-आधारित क्षेत्रों को सबसे ज्यादा नुकसान होगा। GTRI का अनुमान है कि इन श्रेणियों में निर्यात 70–80% तक गिर सकता है।
प्रभावित क्षेत्र
- वस्त्र व परिधान: 10.8 अरब डॉलर का निर्यात अब 64% शुल्क के दायरे में। तिरुपुर, नोएडा, बेंगलुरु और लुधियाना की यूनिटें उत्पादन रोक रही हैं।
- रत्न व आभूषण: 10 अरब डॉलर का व्यापार 52% शुल्क झेलेगा। सूरत, मुंबई SEEPZ और जयपुर में बड़े पैमाने पर रोजगार संकट।
- समुद्री खाद्य (झींगा): 2.4 अरब डॉलर का निर्यात 60% शुल्क के दायरे में। आंध्र प्रदेश व विशाखापट्टनम की झींगा फार्मिंग बुरी तरह प्रभावित होगी।
- कालीन व हस्तशिल्प: भदोही, श्रीनगर, जोधपुर और मुरादाबाद के शिल्प उद्योग 40–60% अमेरिकी हिस्सेदारी खो सकते हैं।
- चमड़ा व फुटवियर: आगरा, कानपुर और तमिलनाडु की इकाइयाँ ऑर्डर के स्थानांतरण से जूझ रही हैं।
कृषि निर्यात जैसे बासमती चावल, मसाले और चाय भी खतरे में हैं, जिससे पाकिस्तान, थाईलैंड और केन्या को मौका मिलेगा।
आर्थिक असर
GTRI का अनुमान है कि इस झटके से FY2026 में भारत की जीडीपी वृद्धि दर 6.5% से घटकर 5.6% रह सकती है। हालांकि सेवाओं का निर्यात 10% बढ़कर 421.9 अरब डॉलर होने की उम्मीद है, जिससे कुल निर्यात (वस्तु + सेवा) 839.9 अरब डॉलर तक पहुंच सकता है।
लेकिन रोजगार पर असर गहरा होगा। “तिरुपुर, सूरत, भदोही, जोधपुर और आंध्र के तटीय क्षेत्रों में लाखों रोजगार दांव पर हैं,” एक वरिष्ठ व्यापार अर्थशास्त्री ने कहा।
FIEO की मांगें
FIEO ने सरकार से राहत पैकेज की मांग की है, जिसमें शामिल हैं:
- एमएसएमई के लिए ब्याज सब्सिडी व निर्यात ऋण सहायता।
- ऋण पर एक साल की मोहलत और 30% तक स्वचालित क्रेडिट विस्तार।
- PLI योजनाओं का विस्तार और लॉजिस्टिक ढांचे में सुधार।
- यूरोपीय संघ, खाड़ी, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के साथ तेज एफटीए समझौते।
- ‘ब्रांड इंडिया’ को वैश्विक स्तर पर मजबूत करने और गुणवत्ता प्रमाणन पर जोर।
भारत के सामने रणनीतिक विकल्प
विशेषज्ञों का मानना है कि भारत को तात्कालिक राहत और दीर्घकालिक रणनीति दोनों पर समान रूप से काम करना होगा। GTRI के सह-संस्थापक अजय श्रीवास्तव ने 15,000 करोड़ रुपये का ब्याज सब्सिडी फंड, हब क्षेत्रों में वेतन सहायता और झींगा व आभूषण उद्योगों के लिए लक्षित क्रेडिट लाइनों का सुझाव दिया। साथ ही भारत को मैक्सिको, यूएई और अफ्रीका जैसे टैरिफ-न्यूट्रल क्षेत्रों में उत्पादन आधार बनाने और उच्च मूल्य वाले निर्यात पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत बताई।
राजनयिक बातचीत को भी अहम बताया जा रहा है। “अमेरिकी शुल्क घरेलू राजनीति से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन भारत को संवाद का रास्ता अपनाना चाहिए। चुप्पी की कीमत बहुत भारी होगी,” एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा।
अमेरिका का यह कदम भारत के निर्यात लचीलेपन की परीक्षा है। श्रम-प्रधान उद्योगों पर तात्कालिक दबाव है, लेकिन सेवाओं और विविधीकृत बाजारों के चलते व्यापक निर्यात इंजन अब भी मजबूत है।
“अगले कुछ महीने निर्णायक होंगे,” रल्हन ने चेताया। “अगर हमने अभी कदम नहीं उठाए, तो प्रतिस्पर्धी अपनी पकड़ मजबूत कर लेंगे और भारत को खोया बाजार वापस पाने में सालों लगेंगे।”
