ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक हिंदी भाषी साधकों में क्रियायोग की फैलेगी लहर, हो रहा है साकार गुरुदेव का सपना
सच्चिदानंद वर्मा
नोएडा। सेक्टर 62 स्थित योगदा आश्रम में हर्षोउल्लास के साथ भक्तिमय वातावरण में गुरुदेव योगानंद का जीवनोत्सव मनाया गया।इस अवसर पर योगदा सत्संग के आत्मसाक्षात्कार के हिंदी में नए पाठमाला का विमोचन भी किया गया। इस ऐतिहासिक क्षण को पूरे विश्व के योगदा साधकों को स्टृीम लाइन के माध्यम से रूबरू कराया गया।
स्वामी ईश्वरानंद द्वारा हिंदी में नए पाठमाला के विमोचन के इस आध्यात्मिक कार्यक्रम की शुरुआत स्वामी ललितानंद , स्वामी आद्यानंद और स्वामी ईश्वरानंद द्वारा दीप प्रज्ज्वलित करके की गयी। तदुपरांत अध्यक्ष स्वामी चिदानंद के संदेश को स्वामी ललितानंद ने अंग्रेजी में तथा स्वामी आद्यानंद ने हिंदी में पढ कर कार्यक्रम से जुड़े साधकों को सुनाया।
हिंदी में नए पाठमाला के विमोचन के उपरांत योगदा सत्संग सोसायटी के उपाध्यक्ष स्वामी ईश्वरानंद ने इसके ऐतिहासिक महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि अनेक भक्तों व संन्यांसियों की 3 सालों की कड़ी मेहनत के बाद अंग्रेजी के नए पाठमाला के लगभग 15 लाख अ्रंग्र्रजी के शब्दों का हिंदी में अनुवाद किया जा सका है। उन्होंने इस ऐतिहासिक कार्य को पूर्ण करने में अपना सहयोग देनेवाले भक्तों व संन्यांसियों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वे सब कोटि कोटि के धन्यवाद के पात्र है। उन्होंने कहा कि इन पाठमालाओं के माध्यम से हिंदी भाषी साधको ंमें किं्रया योग की लहर फैलेगी और गुरु योगानंद का सपना पूरा होगा। गुरुदेव ने कहा था कि भविष्य में योगदा के साधको द्वारा विश्व भर के लोगों में शांति व सदभाव और भाइचारा की जागरूकता फैलेगी।
हिंदी पाठमाला के बारे में जानकारी देते हुए स्वामी ईश्वरानंद ने बताया कि इस पाठमाला में 18 मूल पाठ हैं तथा क्रिया के अलग से 10 पाठ है। हिंदी के नए पाठमाला के 100 अनुपूरक पाठ भी हैं जिसे साधक स्वेछा से मंगवा कर पढ़ सकते हैं।
उन्होंने इसके इतिहास के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि गुरुदेव द्वारा प्रदत शिक्षाओं की नींव सन 1861 मंे ही पड़ गयी थी जब महावतार बाबा जी से लाहिड़ी महाशय की भेंट हुई थी। तब यह क्रिया योग की शिक्षा लाहिड़ी महाशय को बाबाजी द्वारा मिला फिर लाहिड़ी महाशय से उनके शिष्य स्वामी युक्तेश्वर जी को प्राप्त हुई जिनके द्वारा योगानंद प्रशिक्षित हुए और फिर यह शिक्षा ईश्वर प्राप्ति के इच्छुक विश्व के साधको को योगानंद द्वारा मिलने लगी और यह सिलसिला अभी तक जारी है।
स्वामी ईश्वरानंद ने बताया कि सन 1920 से 1934 तक योगानंद ने अपना जो भी प्रवचन दिया उसका प्रिटेंड कॉपी उपलब्ध नहीं है। लेकिन संघमाता दयामाता के आश्रम में 1931 में आगमन के बाद कुछ सालों के बाद के गुरु जी के भाषणों व प्रवचनों की प्रिंटेड कॉपी उपलब्ध है। दयामाता ने वर्ष 1934 से गुरु जी के प्रवचनों को शार्टहैंड द्वारा नोट करने लगी।गुरु जी ने महसूस किया लोग उनकी शिक्षाओं कोे सुन तो लेते हैं लेकिन बाद में वे भूल जातेे हैैं।इसलिए गुरु ने लोगों को सतत जागरण के लिए अपनी शिक्षाओं को पाठ के रूप में तैयार करना शूरू किया।उन्होंने सन 1935 से अंग्रेजी में पाठों को भक्तो के घर तक भेजने का प्रबंध किया।यह सिलसिला 2019 तक चलता रंहा। तत्कालिन अध्यक्ष मृणालिनी माता द्वारा वर्ष 2017 में कुछ संशोधन के साथ नए पाठ तैयार किए गए। गुरु ने पाठों के संशोधन का कार्य मृणालिनी माता को सौंपा था। मृणालिनी अपना पूरा जीवन इस कार्य में लगा दिया।
उन्हेांने बताया कि गुरु जी की अनेक पुस्तकें सभी लोगों के लिए उपलब्ध हैं। लेकिन पाठमाला उन्हीं को दी जाती है जो योगदा में प्रवेश पाता है। उन्होंने बताया कि योगदा के पाठ अत्यंत ही पवित्र हैं और ज्ञान संपदा से भरा हुआ है। पाठमाला भारतीय दर्शन का सार है और किसी भी धार्मिक ग्रंथ या उपनिषद से कम महत्वपूर्ण नहीं है। पाठकों की सुविधा के लिए ये पाठमाला डिजिटल फार्म में भी उपलब्ध है।
कार्यक्रम का संचालन विवके अत्रे ने किया।
कार्यक्रम के दूसरे भाग में कास्मिक भजन , ध्यान और नोेएडा आश्रम के प्रभारी स्वामी आद्यानंद का सत्संग भी हुआ। सत्सग में स्वामी आद्यानंद ने योगानंद के जन्मोत्सव के महत्व पर प्रकाश डालतेे हुए दयामाता की बातों को उद्धृत करते हुए कहा कि गुरु के आविर्भाव की वर्षगांठ हमसभी के लिए गुरु के प्रति भक्ति और आभार प्रगट करने का अवसर का दिन है। गुरु का धरती पर अवतरण हम सबके उद्धार के लिए ही हुआ था। आज के दिन हमें उनके प्रति कृतज्ञता प्रगट करने का दिन है।