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वाईएसएस आश्रम नोएडा में वाईएसएस/ एसआरएफ़ अध्यक्ष श्री श्री स्वामी चिदानन्द गिरि का सत्संग

एस एन वर्मा

नोएडा: योगदा सत्संग सोसाइटी ऑफ़ इण्डिया का नोएडा आश्रम एक शान्ति के रमणीय स्थल की भाँति नोएडा के इलेक्ट्रॉनिक सिटी के आईटी केन्द्र में स्थित है। इसी आश्रम में “क्रियायोग की रूपान्तरकारी शक्ति” विषय पर एक प्रेरणादायक आध्यात्मिक सत्संग का आयोजन किया गया। इसमें 1250 से भी अधिक भक्तों और मित्रों ने भाग लिया। वक्ता थे वाईएसएस/एसआरएफ़ के अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख, स्वामी चिदानन्द गिरि, जो कैलिफ़ोर्निया, अमेरिका-स्थित सेल्फ़-रियलाइज़ेशन फ़ेलोशिप मुख्यालय से एक माह की भारत यात्रा पर आए हुए हैं। सम्पूर्ण विश्व के वाईएसएस/एसआरएफ़ भक्तों की सुविधा के लिए इस विशेष कार्यक्रम का सीधा प्रसारण भी किया गया। स्वामीजी ने अपने सत्संग में ये प्रेरणादायक शब्द कहे :

“क्रियायोग के अभ्यास और उसके द्वारा उत्पन्न स्थिर एवं निश्चल अवस्था में अपनी चेतना को केन्द्रित करने से अन्तर्ज्ञान का विकास होना प्रारम्भ हो जाता है। क्रियायोग से प्रमस्तिष्क-मेरुदण्डीय केन्द्रों में शक्ति स्थानान्तरित होने लगती है और मेरुदण्ड और मस्तिष्क में स्थित दिव्य अनुभूति के चक्र जाग्रत होने लगते हैं।”

स्वामीजी ने कहा, “हम बैठकर ध्यान करते हैं और हमें अनुभव होता है कि हम जानते हैं कि किसी परिस्थिति में कौन से सकारात्मक कदम उठाने की आवश्यकता है। जब हम अनेक वर्षों और अनेक दशकों तक क्रिया का अभ्यास करते रहते हैं, तो हमारी आत्मा के भीतर छिपी गुप्त एवं सुप्त शक्तियाँ जाग्रत हो जाती हैं। हमारे भीतर अनेक क्षमताएँ—ज्ञान के साधन—विद्यमान हैं, जिनसे अधिकांश लोग अनभिज्ञ हैं। क्रिया से इच्छाशक्ति, सफलता प्राप्त करने की शक्ति, एकाग्रता की शक्ति, वर्तमान संसार के नकारात्मक प्रभावों का प्रतिरोध करने की शक्ति, और प्राणशक्ति एवं दिव्य जीवन के ब्रह्माण्डीय सागर का आवश्यकतानुसार प्रयोग करने की शक्ति जाग्रत होती है, जिनके फलस्वरूप शरीर, मन, और आत्मा का आरोग्य प्राप्त होता है।”

गुरुदेव श्री श्री परमहंस योगानन्द के इन शब्दों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए उन्होंने कहा, “प्राचीन काल से, भारत ने आदर्श-जीवन की एक वास्तविक कला निर्धारित की थी, जिसमें प्रत्येक मनुष्य का सम्पूर्ण एवं सन्तुलित विकास सम्मिलित था। भारत का व्यावहारिक दर्शन यह प्रदर्शित करता है कि मनुष्य की सर्वोच्च आवश्यकताऐं हैं : पहली, त्रिविध मानवीय कष्टों—भौतिक, मानसिक, और आध्यात्मिक—से स्थायी मुक्ति; और दूसरी, नित्य-नवीन-आनन्द की सकारात्मक प्राप्ति।”

स्वामी चिदानन्दजी ने कहा, “योगानन्दजी ने हमें बताया है कि उसे प्राप्त करने का मार्ग है क्रियायोग का अभ्यास। योगानन्दजी का आगमन इस सम्पूर्ण पृथ्वी ग्रह को, सम्पूर्ण वैश्विक मानवीय परिवार को न केवल ज्ञान अपितु व्यावहारिक प्रविधियों—हमारे जीवन को दिव्य बनाने हेतु व्यावहारिक प्रणालियों—के समृद्ध, शुद्ध, और जीवन्त प्रवाह में निमज्जित करने के लिए हुआ था।”

इस विशेष समारोह में स्वामी चिदानन्दजी, वाईएसएस/एसआरएफ़ के अध्यक्ष एवं आध्यात्मिक प्रमुख, ने “Autobiography of a Yogi” के हिन्दी संस्करण, “योगी कथामृत” की हार्डकवर प्रति (Hardcover) का विमोचन भी कियाl

यह पुस्तक साधक को आंतरिक जीवन के रूपांतरण की यात्रा, आध्यात्मिक खोज और रोमांच की दुनिया में ले जाती है l साथ ही असाधारण जीवन का जीवंत लेखन, प्राचीन योग-विज्ञान और ध्यान की परंपरा का गहन परिचय देती हैl

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