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नई दिल्ली
केंद्र की मोदी सरकार आखिरकार जाति जनगणना कराने को तैयार हो गई है। यह कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी की एक प्रमुख मांग रही है, जिसका मकसद आंकड़ों के आधार पर सामाजिक न्याय सुनिश्चित करना है। इसे इस तरह से भी कह सकते हैं कि आखिरकार राहुल गांधी की जिद्द के सामने मोदी सरकार ने घुटने टेक दिए।
मालूम हो कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी जाति जनगणना को लेकर मोदी सरकार को लगातार घेर रहे थे। पिछले साल 25 अगस्त को राहुल ने एक्स पर लिखा था- ”मोदी जी, अगर आप जाति जनगणना को रोकने के बारे में सोच रहे हैं तो आप सपना देख रहे हैं। कोई शक्ति अब इसे रोक नहीं सकती! हिन्दुस्तान का ऑर्डर आ चुका है। जल्द ही 90% भारतीय जाति जनगणना का समर्थन और मांग करेंगे। ऑर्डर अभी लागू कीजिए, या आप अगले प्रधानमंत्री को ये करते देखेंगे।”
इससे पहले भी जाति जनगणना की मांग को लेकर दबाव बनाते हुए राहुल गांधी ने ‘संविधान सम्मान सम्मेलन’ में कहा था, ”देश के 90 प्रतिशत लोग व्यवस्था से बाहर हैं। जातिगत जनगणना मेरे लिए राजनीति नहीं, ये मेरा मिशन है। 90 प्रतिशत लोग व्यवस्था के बाहर बैठे हैं। उनके पास स्किल और ज्ञान तो हैं, लेकिन उनकी पहुंच नहीं है, यही कारण है कि हमने जातिगत जनगणना की मांग उठायी है। कांग्रेस के लिए जातिगत जनगणना नीति निर्माण की बुनियाद है।”

दरअसल, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने 25 अगस्त 2024 को कांग्रेस पार्टी के उस ट्वीट को रिट्वीट किया था जिसमें पार्टी ने जाति जनगणना पर मूड ऑफ द नेशन सर्वे के आंकड़े बताए थे। सर्वे के अनुसार, हर बीतते वक्त के साथ देश में जातिगत जनगणना की मांग बढ़ती जा रही है। सर्वे के अनुसार, देश के 74 प्रतिशत लोगों का कहना था कि देश में जातिगत जनगणना होनी ही चाहिए।
बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में सरकार ने यह फैसला लिया। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि जाति जनगणना, राष्ट्रीय जनगणना में ही शामिल होगी। हालांकि जनगणना कब से शुरू होगी, इस बारे में सरकार ने कुछ नहीं कहा है। लेकिन ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि जनगणना इसी साल सितंबर में शुरू की जा सकती है। निश्चित रूप से इसे पूरा होने में एक साल से अधिक का वक्त लग सकता है। लिहाजा जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 के मध्य तक आएंगे।
जातियों की गिनती के लिए मोदी सरकार को अब एक्ट में संशोधन करना होगा। जनगणना एक्ट 1948 में सिर्फ एससी-एसटी की गणना का ही प्रावधान है। ओबीसी की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे ओबीसी की तमाम जातियों के आंकड़े भी सामने आएंगे। याद हो तो मनमोहन सिंह सरकार के दौरान साल 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने करवाया था। हालांकि इस सर्वेक्षण के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए।
जाति जनगणना का इतिहास
देश में 1931 में जब जाति जनगणना हुई तो कुल जातियों की संख्या 4,147 थी और फिर जब 2011 में जनगणना हुई तो देश में 46 लाख जातियों की संख्या निकली। हालांकि, 2011 की जनगणना के आंकड़े उजागर नहीं किए गए। तीन साल पहले ही केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक केस के सिलसिले में इन आंकड़ों का जिक्र किया था।
1872 से 1931 तक जितनी बार जनगणना हुई, उसमें जातिवार आंकड़े भी दर्ज किए गए। 1901 में जातीय जनगणना हुई तो 1,646 अलग-अलग जातियों की पहचान की गई। उसके बाद 1931 में यह संख्या बढ़कर 4,147 हो गई। 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट का आधार भी यही संख्या थी। 1941 में भी जाति जनगणना हुई, लेकिन आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए।
आजादी के बाद 1951 में जब पहली जनगणना हुई तो ब्रिटिश शासन वाली जनगणना के तरीके में बदलाव कर दिया गया और जातिगत आंकड़ों को सिर्फ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति तक सीमित कर दिया गया। साल 1961, 1971, 1981, 1991, 2001 में जो भी जनगणना हुई, उसमें सरकार ने जातिगत जनगणना से दूरी बनाए रखी। 2011 की जनगणना में पहली बार जाति आधारित आंकड़े (सामाजिक आर्थिक जातिगत) एकत्र किए गए, लेकिन यह डेटा कभी सार्वजनिक नहीं किया गया।