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Before arrest

दिल्ली के शराब घोटाला मामले में सीबीआई ने आठ घंटे की लंबी पूछताछ के बाद दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया को गिरफ्तार कर लिया है। सिसोदिया से इसके पहले भी सीबीआई कई बार पूछताछ कर चुकी है। अब इसको लेकर आम आदमी पार्टी और भारतीय जनता पार्टी आमने-सामने हैं। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने सुबह ही इस मसले पर ट्विट कर केंद्र सरकार पर हमला किया था। 

डिप्टी सीएम की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर से शराब घोटाले की चर्चा शुरू हो गई है। सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वह नई शराब नीति क्या थी जिसकी वजह से ये सारा बवाल शुरू हुआ? शराब घोटाला हुआ कैसे? भाजपा के आरोप क्या हैं? CBI की चार्जशीट में क्या है? आरोपों पर आप सरकार का क्या जवाब है?

दिल्ली की नई शराब नीति क्या थी?
17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार ने राज्य में नई शराब नीति लागू की। इसके तहत राजधानी में 32 जोन बनाए गए और हर जोन में ज्यादा से ज्यादा 27 दुकानें खुलनी थीं। इस तरह से कुल मिलाकर 849 दुकानें खुलनी थीं। नई शराब नीति में दिल्ली की सभी शराब की दुकानों को प्राइवेट कर दिया गया। इसके पहले दिल्ली में शराब की 60 प्रतिशत दुकानें सरकारी और 40 प्रतिशत प्राइवेट थीं। नई पॉलिसी लागू होने के बाद 100 प्रतिशत प्राइवेट हो गईं। सरकार ने तर्क दिया था कि इससे 3,500 करोड़ रुपये का फायदा होगा।

सरकार ने लाइसेंस की फीस भी कई गुना बढ़ा दी। जिस एल-1 लाइसेंस के लिए पहले ठेकेदारों को 25 लाख देना पड़ता था, नई शराब नीति लागू होने के बाद उसके लिए ठेकेदारों को पांच करोड़ रुपये चुकाने पड़े। इसी तरह अन्य कैटेगिरी में भी लाइसेंस की फीस में काफी बढ़ोतरी हुई।
सब अच्छा तो घोटाले के आरोप क्यों लग रहे हैं?
नई शराब नीति से जनता और सरकार दोनों को नुकसान होने का आरोप है। वहीं, बड़े शराब कारोबारियों को फायदा होने की बात कही जा रही है। भारतीय जनता पार्टी का यही आरोप है। तीन तरह से घोटाले की बात सामने आ रही है। इसे समझने के लिए हम थोड़ा आंकड़ों पर नजर डाल लेते हैं।

लाइसेंस फीस में भारी इजाफा करके बड़े कारोबारियों को लाभ पहुंचाने का आरोप
शराब ब्रिकी के लिए ठेकेदारों को लाइसेंस लेना पड़ता है। इसके लिए सरकार ने लाइसेंस शुल्क तय किया है। सरकार ने कई तरह की कैटेगिरी बनाई है। इसके तहत शराब, बीयर, विदेशी शराब आदि को बेचने के लिए लाइसेंस दिया जाता है। अब उदाहरण के लिए पहले जिस लाइसेंस के लिए ठेकेदार को 25 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता था, नई शराब नीति लागू होने के बाद उसी के लिए पांच करोड़ रुपये देने पड़े।

आरोप है कि दिल्ली सरकार ने जानबूझकर बड़े शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाइसेंस शुल्क बढ़ाया। इससे छोटे ठेकेदारों की दुकानें बंद हो गईं और बाजार में केवल बड़े शराब माफियाओं को लाइसेंस मिला। विपक्ष का आरोप ये भी है कि इसके एवज में आप के नेताओं और अफसरों को शराब माफियाओं ने मोटी रकम घूस के तौर पर दी।

सरकार बता रही फायदे का सौदा: सरकार का तर्क है कि लाइसेंस फीस बढ़ाने से सरकार को एकमुश्त राजस्व की कमाई हुई। इससे सरकार ने जो उत्पाद शुल्क और वैट घटाया उसकी भरपाई हो गई।

लाइसेंस फीस में भारी इजाफा करके बड़े कारोबारियों को लाभ पहुंचाने का आरोप  
शराब ब्रिकी के लिए ठेकेदारों को लाइसेंस लेना पड़ता है। इसके लिए सरकार ने लाइसेंस शुल्क तय किया है। सरकार ने कई तरह की कैटेगिरी बनाई है। इसके तहत शराब, बीयर, विदेशी शराब आदि को बेचने के लिए लाइसेंस दिया जाता है। अब उदाहरण के लिए पहले जिस लाइसेंस के लिए ठेकेदार को 25 लाख रुपये का भुगतान करना पड़ता था, नई शराब नीति लागू होने के बाद उसी के लिए पांच करोड़ रुपये देने पड़े।

आरोप है कि दिल्ली सरकार ने जानबूझकर बड़े शराब कारोबारियों को फायदा पहुंचाने के लिए लाइसेंस शुल्क बढ़ाया। इससे छोटे ठेकेदारों की दुकानें बंद हो गईं और बाजार में केवल बड़े शराब माफियाओं को लाइसेंस मिला। विपक्ष का आरोप ये भी है कि इसके एवज में आप के नेताओं और अफसरों को शराब माफियाओं ने मोटी रकम घूस के तौर पर दी। 

सरकार बता रही फायदे का सौदा: सरकार का तर्क है कि लाइसेंस फीस बढ़ाने से सरकार को एकमुश्त राजस्व की कमाई हुई। इससे सरकार ने जो उत्पाद शुल्क और वैट घटाया उसकी भरपाई हो गई। 

खुदरा बिक्री में सरकारी राजस्व में भारी कमी होने का आरोप
दूसरा आरोप शराब की बिक्री को लेकर है। उदाहरण के लिए मान लीजिए पहले अगर 750 एमएल की एक शराब की बोतल 530 रुपये में मिलती थी। तब इस एक बोतल पर रिटेल कारोबारी को 33.35 रुपये का मुनाफा होता था, जबकि 223.89 रुपये उत्पाद कर और 106 रुपये वैट के रूप में सरकार को मिलता था। मतलब एक बोतल पर सरकार को 329.89 रुपये का फायदा मिलता था। नई शराब नीति से सरकार के इसी मुनाफे में खेल होने दावा किया जा रहा है। 
दावा है कि नई शराब नीति में वही 750 एमएल वाली शराब की बोतल का दाम 530 रुपये से बढ़कर 560 रुपये हो गई। इसके अलावा रिटेल कारोबारी का मुनाफा भी 33.35 रुपये से बढ़कर सीधे 363.27 रुपये पहुंच गया। मतलब रिटेल कारोबारियों का फायदा 10 गुना से भी ज्यादा बढ़ गया। वहीं, सरकार को मिलने वाला 329.89 रुपये का फायदा घटकर तीन रुपये 78 पैसे रह गया। इसमें 1.88 रुपये उत्पाद शुल्क और 1.90 रुपये वैट शामिल है। 

इन सात खामियों ने भी दिल्ली सरकार की मंशा पर उठाए सवाल
जब शराब घोटाले के मामले ने तूल पकड़ा तो केंद्र सरकार ने भी इसकी जांच करवाई। मुख्य सचिव ने जांच करके एक रिपोर्ट तैयार की, जो दिल्ली के उप-राज्यपाल को दो महीने पहले भेजी गई थी। इस रिपोर्ट में भी सात बिंदुओं पर सवाल उठाए गए हैं।