सुधीर कुमार
आगामी चुनाव में नीतीश कुमार के बगैर क्या बीजेपी बिहार का किला फतह कर पाएगी ? ये सवाल तमाम चुनाव पंडिंतों से लेकर राजनीतिक गलिआरों में बहस का मुद्दा बना हुआ है ! गौरतलब है , कि पिछले पच्चीस वर्षों में ऐसा दो बार हुआ है जब नीतीश कुमार और बीजेपी का बिहार के चुनावी अखाड़े में आमना सामना हुआ , २०१४ के आम चुनाव में बीजेपी ने नीतीश कुमार को चित करते हुए , तब के अपने सहयोगी राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिलकर बिहार की चालीस लोकसभा सीट में से ३१ सीटों को झटक लिया , जिसमे बीजेपी ने २२ सीटें जीती , जबकि रामविलास पासवान की लोजपा ६ सीट , उपेंद्र कुशवाहा की समता पार्टी तीन सीट पर कब्ज़ा जमा लिया , जबकि नीतीश कुमार अँधेरे में तीर चलाते हुए दो सीट पर सिमट गए!
इसके एक साल बाद राज्य के विधान सभा चुनाव में नीतीश कुमार और बीजेपी की एक बार फिर भिड़ंत हुई , लेकिन इस बार नीतीश कुमार ने लालू यादव की लालटेन की रौशनी में तीर निशाने पर मारा और बीजेपी की अगुआई वाली एनडीए को ५७ सीट पर ही रोक दिया !

लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में नीतीश और बीजेपी फिर एक बार साथ आए और दोनों के गठजोड़ ने ४० में से 39 सीट जीतकर , विपक्षी पार्टियों का बोरिया बस्तर गुल कर दिया , परन्तु २०२१ के विधानसभा चुनाव के बाद बीजेपी और नीतीश कुमार के बीच एकबार फिर विवाद पैदा हो गया और नीतीश कुमार लालू यादव के खेमे में चले गए और विपक्षी पार्टी के गठबंधन इंडिया का चेहरा बनने की जुगत लगाने लगे , लेकिन फिलहाल उन्हें वहां मनमाफिक सफलता नहीं मिल रही है , ऐसे में अब कयास लगाए जा रहे है , कि क्या नीतीश फिर पलटी मारेंगे यही वजह है कि नीतीश कुमार पर बीजेपी सॉफ्ट बनी हुई है !
बीजेपी के लिए नीतीश क्यों है जरुरी लोकसभा का चुनाव देहरी पर खड़ा है , कांग्रेस की अगुआई वाली इंडिया गठबंधन ,बीजेपी को मध्य प्रदेश ,कर्नाटक , महाराष्ट ,राजस्थान ,हरियाणा और दिल्ली में चुनौती पेश कर सकता है , , ऐसे में बीजेपी नहीं चाहती की सत्ता की हैट्रिक में कोई अड़चन आए , यही वजह है कि पिछले दिनों जब अमित साह बिहार के दौरे पर थे , तो उन्होंने पहले की तरह इस बार नहीं कहा, कि नीतीश कुमार के लिए बीजेपी के दरवाज़े बंद हमेशा के लिए बंद हो चुके है , जिसके बाद अटकलों का बाजार गर्म हो गया !