एस एन वर्मा
नोएडा। आज यहां योगदा आश्रम में प्रेमावतार परमहंस योगानंद के महासमाधि दिवस मनाया गया। इस अवसर पर स्वामी स्मरणानंद ने अध्यात्मिक प्रवचन देते हुए बताया कि कबीर के दोहे में जिस तरह गुरु की महिमा को वर्णातित कहा गया है,उसी तरह हमारे गुरु परमहंस की महिमा को शब्दों में नहीं लिखा जा सकता है।
स्वामी स्मरणानंद ने बताया कि कबीर ने अपने दोहे के जरिए कहा है कि गुरु की महिमा को समुद्र भर स्याही से भी नहीं लिखा जा सकता है। उन्होंने कहा कि गुरु के पास असीमित ज्ञान का भंडार होता है जिसे वह किसी किताब से नहीं बल्कि अंतरज्ञान से प्राप्त करते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु जी ने बाइबिल,रुबियत और गीता पर भाष्य लिख कर यह अवगत करा दिया है वे सार्वभौमिक धर्म के जानकार हैं। उनका गीता और बाइबिल पर लिखा भाष्य अद्भूत है , अतुलनीय है। उन्होंने बताया कि धर्म ग्रंथों पर भाष्य लिखते समय गुरु जी सीधे ईश्वर के संपर्क में होते थे।
स्वामी स्मरणानंद ने बताया कि महात्मा बुद्ध से एक व्यक्ति ने पूछा कि जो वे बोल रहे हैं वो शास्त्रों में नहीं लिखा है।इस पर महात्मा बुद्ध ने जबाब दिया कि अगर शास्त्र में नहीें लिखा है तो उसका संशोधन कर उसमें इस बात को जोड़ दे। असल में गुरु मनुष्य के रूप में साझात ईश्वर ही होता है। वो जो बोलते हैं वह सब ईश्वर उनसे बोलवाते है।
उन्होंने बताया कि गुरु परमहंस योगानंद की विशेषता थी कि वे अपना ज्ञान किसी जाति,धर्म,संप्रदाय या देश तक सीमित नहीं रखते थे बल्कि उनका ज्ञान पूरे संसार कि लिए होता था। गुरु जी हर विषय पर लोगों को ज्ञान दिया। स्वास्थ्य, मेमोरी,शरीर संरचना आदि सब पर लिखा है। उन्होंने पूरे संसार को ज्ञान का भंडार दिया है।
उन्होंने बताया कि गुरु आनंद, करुणा,प्रेम व दया के प्रतिमूर्ति थे। उन्होंने कठिनाइयों को झेलते हुए भी लाखों लाख लोगों के अध्यात्मिकता केा जगाने का काम किया। वे आज भी अपने शिष्यों को हर तरह से मदद कर रहे है। विपत्तियों में अपने भक्तों की सहायता कर रहे हैं।
एक दृष्टांत के जरिए स्वामी जी ने बताया कि एक विदेशी भक्त मां आनंदमयी से विदा लेते समय उन्हें आर्शीवाद देने को कहा इस पर मां हंसने लगी। विदेशी भक्त ने मां से हंसने का कारण पूछा तो मां ने बताया कि उसे अपने गुरु योगानंद का आर्शीवाद प्राप्त है इसलिए उसे मेरी आशीर्वाद की जरूरत नहीं है।
उन्होंने कहा कि गुरु जी बोल गए हैं कि जो साधक योगदा की प्रविधियों का सही ढंग से अभ्यास और पाठ का अध्ययन कर उसके अनुरूप जीवन बीताता है उसे योगदा के सभी गुरुओं का आर्शीवाद मिलता रहता है।
मृणालिनी मां को याद करते हुए स्वामी स्मरणानंद ने बताया कि मां बोली थी कि गुरु की प्रति भक्ति एकाएक नहीं आती है। उसके लिए साधना व ध्यान करना पड़ता है।
समारोह की शुरुआत और अंत स्वामी वासुदेवानंद के कर्णप्रिय व मधुर वाणी में गाय भक्तिमय भजन से हुआ। इस मौके पर स्वामी अमरानंद,स्वामी नित्यानंद व स्वामी अलोकानंद की गरिमामय उपस्थिति से भक्तगणों ने आनंद और आर्शीवाद को प्राप्त किए। सभी साधकों ने दिव्य गुरुदेव को पुष्पाजलि अर्पित किए । समारोह के उपरांत योगदा आश्रम के स्वामियों ने अपने कर कमलों से बड़ी संख्या में आए भक्तों मंे प्रसाद वितरण किया।