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जामिया मिल्लिया इस्लामिया ने आज मुंशी प्रेमचंद को उनकी 140 वीं जयंती पर याद किया, जिनसे इस विश्वविद्यालय के बहुत ही क़रीबी रिश्ते थे।

यह विश्वविद्यालय का जन्मशताब्दी वर्ष है और जामिया के इतिहास की इस बहुत ही महत्वपूर्ण उपलब्धि को आज याद किया जाना चाहिए कि इसने प्रेमचंद के अध्ययन को आगे बढ़ाने और उसे सुगम बनाने के लिए प्रेमचंद आर्काइव और साहित्यिक केंद्र की स्थापना की।

मुंशी प्रेमचंद और डॉ ज़ाकिर हुसैन के बहुत घनिष्ठ संबंध थे। जामिया के इतिहास का यह भी एक दिलपस्प पहलू है कि तत्कालीन कुलपति, डा ज़ाकिर हुसैन के अनुरोध पर, मुंशी पे्रमचंद ने, जामिया में अपने रात भर के क़याम के दौरान, अपनी कालजयी कृति, “कफन“ को लिखा और उनकी इस कहानी को दिसंबर, 1935 में जामिया की पत्रिका में प्रकाशित किया गया।

दुनिया के साहित्यिक इतिहास में प्रेमचंद को यह अद्वितीय स्थान प्राप्त है कि उन्हें दो भाषा-साहित्यिक परंपराओं, उर्दू और हिंदी में अग्रणी माना जाता है। हिंदी-उर्दू सांस्कृतिक और साहित्यिक इतिहास में उनके बहुमूल्य योगदान को जीवित रखने के लिए जामिया ने वर्ष 2006 में प्रेमचंद पुरालेख और साहित्यिक केंद्र की स्थापना की ताकि आने वाली पीढ़ियों के लिए यह एक रिसोर्स सेंटर के तौर पर काम आ सके।

केंद्र की निदेशक, प्रो सबिहा ज़ैदी बताती हैं कि “इस सेंटर मकसद प्रेमचंद की विरासत और उनकी रचनाओं को एकत्र करना और संरक्षित करना है। इनमें उनकी, प्रकाशित, अप्रकाशित, पांडुलिपियां, तस्वीरें आदि शामिल हैं। यह पूरे देश में अपनी तरह का अकेला केंद्र है और अपने मकसद को पूरा करने के लिए भरसक प्रयास कर रहा है ”।

इस प्रेमचंद अध्ययन और अनुसंधान केन्द्र की विरासत में सबसे हालिया योगदान, जामिया के अंग्रेजी विभाग के कई सालों के प्रयासों से, उनकी सभी लघु कहानियों के संग्रह का अंग्रेजी में अनुवाद करके उन्हें प्रकाशित कराना है। इसमें उनकी 301 लघु कहानियों का संकल्न है।

संपादक के रूप में, प्रोफेसर एम असदुद्दीन की अगुवाई में इस विशाल कार्य में 61 अनुवादकों ने हिस्सा लिया। प्रो असदुद्दीन ने खुद भी तकरीबन , सौ कहानियों का अनुवाद किया है।

प्रो असदुद्दीन ने दुर्लभ स्रोतों से ऐसी 3 कहानियों की भी खोज की है जो पहले उपलब्ध नहीं थीं। ये नई खोजी गई कहानियां प्रेमचंद के शोध को एक नया आकार देंगी।

चार विशाल आकार के ग्रन्थों में प्रकाशित, इन अनुवादों ने प्रेमचंद के अध्ययनों में नए आयाम खोले हैं। भारत और विदेशों में इसे प्रेमचंद के प्रति, जामिया की अनूठी श्रद्धांजलि माना जाता है।

संपादक ने अपनी टीम के इस अहम कार्य को, जामिया और उसके द्वारा 100 साल से धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद, साझा संस्कृति और बहुलवाद“ को दिए गए महान योगदान को समर्पित किया है।

इस संग्रह के समर्पण पृष्ठ में लिखा है, “ जामिया मिल्लिया इस्लामिया के लिए, एक ऐसा विश्वविद्यालय जिसने 100 वर्षों के लिए साझा संस्कृति, धर्मनिरपेक्ष राष्ट्रवाद और बहुलवाद का पोषण किया है।“

मुख्य विशेषताएंः

प्रेमचंद द्वारा लिखित 301 कहानियों का अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया

कुछ कहानियाँ जैसे “दारा शिकोह का दरबार“ “जंजाल“, “सौदा-ए खाम“ और तीन भाग की कहानी “दारु-ए तल्ख़“ के दो भाग जो पहले हिंदी या उर्दू में उपलब्ध नहीं थे, उन्हें ढूंढ कर पहली बार उपलब्ध कराया गया।

इन सारे ग्रंथों को मिला लिया जाए तो उनके 3264 पृष्ठ हैं और 1500,000 शब्द।

ये चारों खंड क्लासिक और समकालीन भारत के हर पहलू के बारे में मुंशी प्रेमचंद के व्यापक नज़रिए को पेश करते हैं।

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