
नीलम जीना
बाल यौन शोषण के शिकार बच्चों को न्याय दिलाने और उन्हें सामाजिक मुख्यधारा में वापस लाने के लिए “सपोर्ट पर्सन” की भूमिका अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण हो गई है। पिछले वर्ष 2023 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने ऐतिहासिक फैसले में सभी पॉक्सो मामलों में पीड़ित बच्चों के लिए सपोर्ट पर्सन की नियुक्ति को अनिवार्य कर दिया था। लेकिन इस आदेश के अमल में सबसे बड़ी बाधा बनी – प्रशिक्षित और संवेदनशील पेशेवरों की कमी।
यही चुनौती अब एक अवसर में बदल रही है। भारत में पहली बार ‘द सेंटर फॉर लीगल एक्शन एंड बिहेवियर चेंज फॉर चिल्ड्रन’ (सी-लैब) ने सपोर्ट पर्सन की भूमिका निभाने के लिए एक विशेष प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम की शुरुआत की है। यह 10 सप्ताह का कोर्स न सिर्फ कानून और प्रक्रियाओं की समझ देगा, बल्कि बाल मनोविज्ञान, संवाद कौशल और संवेदनशील सहयोग की भी व्यावहारिक ट्रेनिंग प्रदान करेगा।
बाल अधिकारों की सुरक्षा की दिशा में महत्वपूर्ण कदम
सुप्रीम कोर्ट के आदेश का मूल उद्देश्य स्पष्ट है—सुनवाई की प्रक्रिया के दौरान बच्चों को बार-बार मानसिक पीड़ा से बचाना, उन्हें न्याय प्रणाली से परिचित कराना और उनके आत्मविश्वास को बनाए रखना। पॉक्सो कानून के तहत दर्ज मामलों में वर्ष 2019 से 2022 के बीच 300% वृद्धि हुई है, जिससे यह स्पष्ट है कि देश में प्रशिक्षित सपोर्ट पर्सन की भारी कमी है। वर्तमान में 2.39 लाख बच्चे पॉक्सो मामलों में न्याय की प्रतीक्षा कर रहे हैं।
सी-लैब की निदेशक डॉ. संगीता गौड़ बताती हैं, “हमारे हजारों बच्चे अदालतों के चक्कर काट रहे हैं या अपने घरों में डर के साये में जी रहे हैं। उनके पास मार्गदर्शन के लिए कोई नहीं है। यही वह शून्य है जिसे यह कोर्स भरने का प्रयास कर रहा है।”
सपोर्ट पर्सन: केवल सहायता नहीं, संवेदनशील संवाददाता
एक सपोर्ट पर्सन पीड़ित बच्चे और उसके परिवार के साथ जांच से लेकर अदालत की कार्यवाही और पुनर्वास तक हर स्तर पर साथ होता है। वह कानूनी सलाह देता है, मेडिकल सहयोग दिलवाता है और भावनात्मक सहारा भी प्रदान करता है। अदालत, थाना और अस्पताल जैसे स्थान बच्चों के लिए डरावने अनुभव हो सकते हैं—यहाँ सपोर्ट पर्सन उन्हें सुरक्षा, सहानुभूति और विश्वास का वातावरण देने का कार्य करता है।
“न्याय सिर्फ अदालत के फैसले तक सीमित नहीं है। बच्चे की गरिमा, उसका आत्म-सम्मान और उसका भावनात्मक स्वास्थ्य भी उतना ही महत्वपूर्ण है। सपोर्ट पर्सन पर्दे के पीछे वह अहम कड़ी है जो इस पूरी प्रक्रिया को बच्चों के लिए आसान बनाती है,” कहते हैं भुवन ऋभु, जस्ट राइट्स फॉर चिल्ड्रेन संस्था के संस्थापक, जिन्हें इस कोर्स के पहले व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया।
कोर्स की प्रमुख विशेषताएं
सी-लैब का यह कोर्स ऑनलाइन और कक्षा शिक्षण का मिश्रण है, जिसमें फील्ड वर्क, केस स्टडी, व्यावहारिक मूल्यांकन और असाइनमेंट शामिल हैं। इसके पाठ्यक्रम में शामिल हैं:
- बाल अधिकार और संरक्षण की बुनियादी जानकारी
- पॉक्सो कानून और कानूनी प्रक्रियाएं
- बच्चों से संवाद के कौशल
- मनोवैज्ञानिक प्राथमिक सहायता
- पुनर्वास और मुआवजे की प्रक्रिया
- ट्रॉमा से उबरने में सहयोग की विधियाँ
साथ ही, यह कोर्स कानून, मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक कार्य के क्षेत्रों के अनुभवी विशेषज्ञों द्वारा पढ़ाया जाएगा।
कौन ले सकता है इस कोर्स में प्रवेश?
इस पाठ्यक्रम में वे लोग प्रवेश ले सकते हैं जो पहले से बाल अधिकारों, बाल कल्याण, सामाजिक कार्य या कानूनी सहायता के क्षेत्र में कार्यरत हैं, या इस दिशा में भविष्य में काम करना चाहते हैं। यह कोर्स विशेष रूप से उन लोगों के लिए डिजाइन किया गया है जो बच्चों की भलाई के लिए कार्यरत हैं, चाहे वे स्वयंसेवी संगठन से जुड़े हों, बाल कल्याण समिति के सदस्य हों, या एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में काम करना चाहते हों।
सी-लैब: बच्चों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध
सी-लैब, इंडिया चाइल्ड प्रोटेक्शन की परिकल्पना है—एक अग्रणी संगठन जो बाल यौन शोषण, ट्रैफिकिंग, साइबर अपराधों में शोषण और बाल विवाह जैसे मुद्दों पर काम करता है। यह संगठन नीति निर्माण, सामुदायिक हस्तक्षेप और संस्थागत प्रशिक्षण के माध्यम से बच्चों के अधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करने में जुटा है।
भारत में यौन शोषण पीड़ित बच्चों की सुरक्षा और पुनर्वास की दिशा में यह कोर्स एक मील का पत्थर साबित हो सकता है। केवल कानून बनाना ही पर्याप्त नहीं होता, उनके क्रियान्वयन के लिए जमीनी स्तर पर दक्ष और संवेदनशील मानव संसाधन का होना अनिवार्य है। सी-लैब का यह प्रशिक्षण कार्यक्रम न सिर्फ सुप्रीम कोर्ट के आदेश का प्रभावी अनुपालन सुनिश्चित करेगा, बल्कि हजारों बच्चों को गरिमा के साथ न्याय पाने का रास्ता भी दिखाएगा।
