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प्रयागराज, 31 मई — भारत के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई ने कहा कि “चाहे वह न्यायपालिका हो या कार्यपालिका, यह हमारी मूलभूत जिम्मेदारी है कि हम इस देश के अंतिम नागरिक तक न्याय पहुँचाएं, जिसे इसकी सबसे अधिक आवश्यकता है।”

मुख्य न्यायाधीश शनिवार को इलाहाबाद उच्च न्यायालय परिसर में नव-निर्मित बहु-स्तरीय पार्किंग और अधिवक्ता कक्षों के उद्घाटन समारोह में बोल रहे थे। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, केंद्रीय विधि मंत्री अर्जुन राम मेघवाल और उच्चतम न्यायालय के कई न्यायाधीश भी उपस्थित रहे।

भारत की आज़ादी के 75 वर्षों के सफर पर प्रकाश डालते हुए न्यायमूर्ति गवई ने संविधान की महत्ता को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि “संविधान के लागू होने के बाद इन वर्षों में न्यायपालिका और कार्यपालिका ने मिलकर ऐसे अनेक कानून बनाए हैं जिन्होंने सामाजिक और आर्थिक समानता को आगे बढ़ाने में अहम भूमिका निभाई है।”

वर्तमान वैश्विक स्थिति का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा, “आज हमारे आस-पास के देशों में अनेक समस्याएँ चल रही हैं, वहीं भारत लगातार प्रगति के पथ पर अग्रसर है। यह हमारे संविधान की शक्ति का प्रमाण है, जिसने देश को अनेक संकटों से उबारा है।”

संविधान निर्माण के समय हुई बहसों का ज़िक्र करते हुए उन्होंने कहा, “जब संविधान का अंतिम मसौदा संविधान सभा के सामने रखा गया था, तब कुछ लोगों ने इसे अधिक संघीय तो कुछ ने अधिक एकात्मक बताया।” इस पर बाबा साहब डॉ. भीमराव अंबेडकर ने स्पष्ट कहा था कि “भारत का संविधान न तो पूर्णतः संघीय है, न ही पूर्णतः एकात्मक। यह इस प्रकार रचा गया है कि यह देश को शांति और युद्ध—दोनों कालों में एकजुट और सशक्त बनाए रखेगा।”

यह आयोजन न केवल न्यायिक अवसंरचना के विस्तार का प्रतीक था, बल्कि यह संविधान में निहित मूल्यों — समानता, न्याय और एकता — को पुनः स्मरण कराने वाला भी अवसर बना, जो आज भी भारत के लोकतांत्रिक ढांचे की नींव बने हुए हैं।

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