पटना |

जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नज़दीक आ रहे हैं, प्रदेश का राजनीतिक माहौल गरमाता जा रहा है। एनडीए और महागठबंधन दोनों के स्टार प्रचारक आज पूरे राज्य में सक्रिय रहे। जगह-जगह बड़ी रैलियाँ हुईं और मतदाताओं को लुभाने के लिए विकास, जातीय जनगणना, रोज़गार और पलायन जैसे मुद्दों पर वादों की झड़ी लगाई गई।

सबसे तीखा हमला भाजपा के स्टार प्रचारक और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की ओर से देखने को मिला। उन्होंने समस्तीपुर में एनडीए प्रत्याशियों के समर्थन में विशाल जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और कांग्रेस बिहार के विकास की बात करने का नैतिक अधिकार नहीं रखते। उन्होंने आरोप लगाया कि “लालू प्रसाद का परिवार चारा घोटाला, बाढ़ राहत घोटाला और ज़मीन के बदले नौकरी घोटाले जैसे अनेक भ्रष्टाचार मामलों में घिरा हुआ है।” शाह ने विपक्षी गठबंधन को “ठगबंधन” करार दिया और कहा कि कांग्रेस स्वयं 12 लाख करोड़ रुपये से अधिक के घोटालों में लिप्त रही है।

बाद में दरभंगा और बेगूसराय की सभाओं में भी अमित शाह ने कहा कि केवल भाजपा-जद(यू) गठबंधन ही बिहार को स्थिरता और प्रगति की राह पर आगे बढ़ा सकता है। उन्होंने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की ‘डबल इंजन सरकार’ को बिहार के विकास की गारंटी बताया।

वहीं, जद(यू) अध्यक्ष और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राजगीर की रैली में युवाओं को बड़ा वादा किया। उन्होंने कहा कि यदि फिर से सत्ता में आए, तो उनकी सरकार पांच साल में एक करोड़ नौकरियाँ देगी। नीतीश ने कहा, “रोज़गार और शिक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकताएँ रहेंगी। हमने पहले भी कौशल विकास और महिला सशक्तिकरण के कार्यक्रमों से बिहार की तस्वीर बदली है।”

दूसरी ओर, महागठबंधन ने भी आज अपना प्रचार अभियान और तेज़ किया। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता राहुल गांधी ने दरभंगा के लोम में रैली कर कहा कि बिहार के युवाओं को अब परिवर्तन चाहिए, खोखले नारे नहीं। उन्होंने कहा कि गठबंधन ने अति पिछड़ा वर्गों (EBCs) के लिए विशेष घोषणा पत्र तैयार किया है जिसे पूरी तरह लागू किया जाएगा। राहुल गांधी ने एनडीए पर महँगाई, बेरोज़गारी और पलायन जैसे मुद्दों की अनदेखी का आरोप लगाया।

राजद नेता और महागठबंधन के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार तेजस्वी प्रसाद यादव ने मधेपुरा के सिंहेश्वर में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि “मेरे 17 महीने के कार्यकाल में पाँच लाख युवाओं को सरकारी नौकरी मिली थी। नीतीश कुमार को बिहार बदलने के लिए 20 साल मिले, मुझे बस एक मौका दीजिए, मैं बिहार की तस्वीर बदल दूँगा।”

दोनों गठबंधनों के नेताओं के बीच आरोप-प्रत्यारोप और वादों के बीच बिहार की सियासत अब चरम पर पहुँच चुकी है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि इस बार मुकाबला कड़ा है, और युवा रोजगार, ग्रामीण विकास तथा जातीय समीकरण चुनाव परिणाम को निर्णायक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

जैसे-जैसे रैलियाँ, रोड शो और सोशल मीडिया प्रचार तेज़ हो रहा है, बिहार का मतदाता तमाम वादों और दृष्टिकोणों के बीच अपना फैसला तय कर रहा है। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि जनता स्थिरता को चुनती है या बदलाव को — क्योंकि बिहार की इस बार की जंग सिर्फ़ सत्ता की नहीं, भविष्य की दिशा तय करने की है।