Last Updated on December 30, 2025 1:58 pm by INDIAN AWAAZ

जाकिर हुसैन / ढाका
बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री, तीन बार देश की सत्ता संभालने वाली नेता, बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की प्रमुख और दक्षिण एशिया की सबसे प्रभावशाली लोकतांत्रिक हस्तियों में शामिल बेगम खालिदा जिया का मंगलवार तड़के लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया। वह 80 वर्ष की थीं। बीएनपी के अनुसार, “पूर्व की अडिग नेता” के रूप में विख्यात खालिदा जिया का निधन सुबह करीब 6 बजे ढाका के एवरकेयर अस्पताल में उपचार के दौरान हुआ।
बीएनपी ने अपने आधिकारिक फेसबुक पेज पर बयान में कहा, “खालिदा जिया का इंतकाल फज्र की नमाज़ के तुरंत बाद सुबह लगभग 6:00 बजे हुआ। हम उनकी आत्मा की मग़फिरत के लिए दुआ करते हैं और सभी से उनके लिए प्रार्थना करने की अपील करते हैं।”
पार्टी के मुताबिक, उनकी नमाज़-ए-जनाज़ा बुधवार (31 दिसंबर) को ज़ुहर की नमाज़ के बाद राजधानी के मणिक मिया एवेन्यू में अदा की जाएगी। अंतिम संस्कार से जुड़े अन्य कार्यक्रमों की जानकारी बाद में दी जाएगी।
स्वास्थ्य की स्थिति और इलाज
डॉक्टरों के अनुसार, खालिदा जिया पिछले कई दिनों से गंभीर हालत में थीं। 12 दिसंबर की रात उनकी तबीयत अचानक बिगड़ने पर उन्हें वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा गया। उनके इलाज की निगरानी कर रहे मेडिकल बोर्ड के प्रमुख और कार्डियोलॉजिस्ट प्रोफेसर डॉ. शाहाबुद्दीन तालुकदार ने बताया, “उनकी सांस लेने में तकलीफ बढ़ गई थी, ऑक्सीजन का स्तर गिर गया था और कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर बढ़ गया था।” उन्होंने कहा कि इससे पहले उन्हें हाई-फ्लो नेज़ल कैनुला और बाइपैप सपोर्ट दिया जा रहा था, लेकिन हालत में सुधार न होने पर “फेफड़ों और अन्य महत्वपूर्ण अंगों को आराम देने” के लिए उन्हें एलेक्टिव वेंटिलेटर पर शिफ्ट किया गया।
खालिदा जिया को 23 नवंबर को दिल और फेफड़ों में संक्रमण के कारण एवरकेयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां बाद में उन्हें निमोनिया भी हो गया। वह लंबे समय से कई गंभीर बीमारियों से जूझ रही थीं, जिनमें उन्नत लिवर सिरोसिस, मधुमेह, गठिया और किडनी, फेफड़ों व हृदय से जुड़ी पुरानी जटिलताएं शामिल थीं। उनके इलाज की देखरेख बांग्लादेश, ब्रिटेन, अमेरिका, चीन और ऑस्ट्रेलिया के विशेषज्ञों से बने एक बहुराष्ट्रीय मेडिकल बोर्ड ने की। इस महीने की शुरुआत में बेहतर इलाज के लिए उन्हें विदेश ले जाने की कोशिश की गई, लेकिन नाजुक हालत के कारण यह योजना रद्द कर दी गई।
उनके अंतिम क्षणों में परिवार के सदस्य उनके पास मौजूद थे, जिनमें बड़े बेटे और बीएनपी के कार्यवाहक चेयरमैन तारिक रहमान, बहू डॉ. जुबैदा रहमान, पोती ज़ाइमा रहमान, छोटी बहू शर्मिला रहमान सिथी, बड़ी बहन सलीना इस्लाम, छोटे भाई शमीम इस्कंदर और बीएनपी के महासचिव मिर्ज़ा फ़ख़रुल इस्लाम आलमगीर सहित पार्टी के वरिष्ठ नेता शामिल थे।
राजनीतिक जीवन और विरासत
पूर्व राष्ट्रपति और सेना प्रमुख जनरल ज़ियाउर रहमान (बीर उत्तम) की पत्नी खालिदा जिया तीन दशकों से अधिक समय तक बांग्लादेश की राजनीति में एक प्रभावशाली शख्सियत रहीं। उन्होंने दो कार्यकालों में प्रधानमंत्री पद संभाला—पहला 1991 से 1996 तक और दूसरा 2001 से 2006 तक—जब उन्होंने बीएनपी को चुनावी जीत दिलाई। वह बांग्लादेश सरकार की अगुवाई करने वाली पहली महिला और किसी मुस्लिम बहुल देश में निर्वाचित होकर प्रधानमंत्री बनने वाली दूसरी महिला थीं।

खालिदा जिया का जन्म 1945 में जलपाईगुड़ी में हुआ, जो उस समय ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत का हिस्सा था (अब पश्चिम बंगाल, भारत)। वह एक साधारण बंगाली मुस्लिम व्यापारी परिवार से थीं और उन्होंने औपचारिक उच्च शिक्षा प्राप्त नहीं की। 15 वर्ष की उम्र में एक पाकिस्तानी सेना अधिकारी से विवाह के बाद उन्होंने लंबे समय तक निजी जीवन जिया। 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान, जब उनके पति स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल हुए, खालिदा जिया अपने बच्चों के साथ छिपकर रहीं और बाद में युद्ध की समाप्ति तक पाकिस्तानी सेना की हिरासत में रहीं। 1981 में ज़ियाउर रहमान की हत्या के बाद उनका सक्रिय राजनीतिक जीवन शुरू हुआ।
शुरुआत में एक अप्रत्याशित नेता मानी जाने वाली खालिदा जिया जल्द ही सैन्य शासक हुसैन मुहम्मद इरशाद के खिलाफ बीएनपी के प्रतिरोध का केंद्र बन गईं। सत्ता से समझौता न करने के उनके रुख ने उन्हें “अडिग नेता” की पहचान दिलाई, जो उनके पूरे राजनीतिक करियर में बनी रही।
1991 के ऐतिहासिक चुनावों में जीत के बाद उन्होंने वर्षों की सैन्य शासन व्यवस्था के बाद संसदीय लोकतंत्र बहाल किया। अपने पहले कार्यकाल में उन्होंने संसदीय प्रणाली को पुनर्स्थापित किया, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए कार्यवाहक सरकार की व्यवस्था लागू की और अपेक्षाकृत उदार राजनीतिक माहौल को बढ़ावा दिया, जिसमें प्रेस और शैक्षणिक स्वतंत्रता को विस्तार मिला।
हालांकि उनकी छवि रूढ़िवादी रही और उन्होंने जमात-ए-इस्लामी जैसे इस्लामी दलों के साथ गठबंधन किया, फिर भी उनके नेतृत्व में महिलाओं के अधिकारों के विस्तार से जुड़े कई अहम सुधार लागू हुए। उनकी सरकार ने आठवीं कक्षा तक लड़कियों की शिक्षा अनिवार्य की और छात्रवृत्ति शुरू की, बाल विवाह के खिलाफ सख्त रुख अपनाया और घरेलू हिंसा के मामलों के लिए विशेष ट्रिब्यूनल की स्थापना की—जिन्हें समर्थकों ने एक रूढ़िवादी समाज में परिवर्तनकारी कदम बताया।
अवामी लीग की नेता और बांग्लादेश के संस्थापक राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान की बेटी शेख हसीना के साथ उनकी प्रतिद्वंद्विता ने देश की राजनीति को लंबे समय तक परिभाषित किया। शुरुआत में दोनों एक साथ सार्वजनिक मंच साझा करती थीं, लेकिन बाद में यह रिश्ता कड़वे व्यक्तिगत और राजनीतिक संघर्ष में बदल गया, जिससे सड़कों पर टकराव वाली राजनीति को बढ़ावा मिला।
1996 में चुनावी विश्वसनीयता को लेकर व्यापक विरोध प्रदर्शनों के बाद खालिदा जिया सत्ता से बाहर हुईं, लेकिन 2001 में इस्लामी दलों को शामिल करने वाले गठबंधन के साथ फिर से प्रधानमंत्री बनीं। उनके दूसरे कार्यकाल पर भ्रष्टाचार के आरोप, बढ़ती उग्रवाद की घटनाएं, राजनीतिक हिंसा और अल्पसंख्यकों पर हमलों की छाया रही। इसी दौरान रैपिड एक्शन बटालियन (RAB) का गठन हुआ, जिसे बाद में कथित फर्जी मुठभेड़ों के लिए व्यापक आलोचना का सामना करना पड़ा।
2007 में सेना समर्थित कार्यवाहक सरकार ने राजनीतिक संकट के बीच खालिदा जिया और शेख हसीना दोनों को गिरफ्तार किया। रिहाई के बाद उन्होंने 2008 का चुनाव लड़ा, लेकिन बीएनपी को करारी हार मिली। इसके बाद के वर्षों में अवामी लीग की मजबूत पकड़ के चलते खालिदा जिया धीरे-धीरे राजनीतिक रूप से हाशिये पर चली गईं।
2018 में अनाथालय कोष के दुरुपयोग से जुड़े एक भ्रष्टाचार मामले में उन्हें जेल भेजा गया, जिसे बीएनपी ने हमेशा राजनीतिक रूप से प्रेरित बताया। जेल में उनकी सेहत तेजी से बिगड़ी। 2020 में शेख हसीना सरकार ने मानवीय आधार पर उनकी सजा निलंबित कर दी, लेकिन उन्हें व्यावहारिक रूप से नजरबंद रखा गया और इलाज के लिए विदेश जाने की अनुमति बार-बार खारिज की गई।
2024 के जन आंदोलन के बाद, जिसके चलते शेख हसीना सत्ता से बेदखल हुईं और देश छोड़कर चली गईं, बांग्लादेश की राजनीति में बड़ा बदलाव आया। अंतरिम सरकार ने खालिदा जिया के खिलाफ मामलों को तेजी से समाप्त किया और इसी वर्ष जनवरी में सुप्रीम कोर्ट ने उनकी 10 साल की सजा रद्द करते हुए उन्हें बरी कर दिया। उन्हें इलाज के लिए लंदन जाने की अनुमति मिली, जहां उनकी मुलाकात अपने बेटे तारिक रहमान से हुई, जो 17 साल के निर्वासन के बाद 25 दिसंबर को बांग्लादेश लौटे थे।
अपने अंतिम सार्वजनिक बयानों में खालिदा जिया ने अपनी पुरानी प्रतिद्वंद्वी पर हमला करने से परहेज किया—यह उस दौर के विपरीत था जब उन्हें तीखे व्यक्तिगत हमलों का सामना करना पड़ा था। कमजोर स्वास्थ्य और व्हीलचेयर तक सीमित होने के बावजूद, उन्होंने निजी तौर पर एक और चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी।
खालिदा जिया की विरासत जटिल लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण है। एक राष्ट्रवादी प्रतीक के रूप में उन्होंने सैन्य शासन का डटकर विरोध किया, लोकतांत्रिक विमर्श की जगह को विस्तृत किया और एक रूढ़िवादी राजनीतिक मंच से महिलाओं के अधिकारों को आगे बढ़ाया। वह ऐसे समय में दुनिया से विदा हुईं जब बांग्लादेश एक और निर्णायक राजनीतिक संक्रमण के मुहाने पर खड़ा है। अक्सर कठोर और रहस्यमय मानी जाने वाली खालिदा जिया अपने पीछे दृढ़ता, अटूट विश्वास और लोकतंत्र की ओर देश की उथल-पुथल भरी यात्रा पर एक स्थायी छाप छोड़ गई हैं।
