
डॉ. दीपांजन चटर्जी
भारत में हृदयगति रुकना (Cardiac Arrest) एक गंभीर स्वास्थ्य चुनौती बनी हुई है, जहां इससे बचने की दर चिंताजनक रूप से कम है। लेकिन अब ईसीपीआर (Extracorporeal Cardiopulmonary Resuscitation) और वीए-ईसीएमओ (Veno-Arterial Extracorporeal Membrane Oxygenation) जैसी अत्याधुनिक तकनीकें पारंपरिक उपचार पद्धति को बदल रही हैं और मरीजों को बचाने की नई आशा जगा रही हैं।
पारंपरिक सीपीआर (CPR) का लक्ष्य मस्तिष्क तक रक्त संचार बनाए रखना होता है जब तक कि हृदय स्वयं से धड़कना शुरू न कर दे (ROSC)। लेकिन यदि 30 मिनट के भीतर यह नहीं होता, तो सीपीआर बंद कर दी जाती है। 15 मिनट के बाद रोगी के ठीक होने की संभावना मात्र 2% रह जाती है। पारंपरिक सीपीआर सामान्य हृदय क्रिया का केवल 25% ही रक्त प्रवाह बना पाता है, जिससे अंगों को ऑक्सीजन की कमी होती है। इस अवधि को “लो-फ्लो ड्यूरेशन” कहा जाता है। इससे भी पहले का समय, जब सीपीआर शुरू नहीं हुआ होता, उसे “नो-फ्लो ड्यूरेशन” कहा जाता है — और यही सबसे खतरनाक समय होता है।
ईसीपीआर इन सीमाओं को पीछे छोड़ता है। जब पारंपरिक सीपीआर असफल हो जाए, तो ईसीएमओ टीम को 10 मिनट के भीतर सक्रिय करना चाहिए। यह समय रहते न केवल मस्तिष्क और अंगों तक रक्त पहुंचाने में मदद करता है, बल्कि हार्ट अटैक जैसी स्थितियों की पहचान और उपचार में भी सहायक होता है। अगर मरीज की स्थिति न सुधरे, तो ईसीएमओ से स्थायी हृदय सहायता प्रणाली या ट्रांसप्लांट की ओर बढ़ा जा सकता है।
ईसीपीआर के लिए उपयुक्त मरीज वही होते हैं, जिनकी उम्र 70 वर्ष से कम हो, कार्डिएक अरेस्ट देखा गया हो, सीपीआर 5 मिनट के भीतर शुरू हुआ हो, प्रारंभिक रिदम VT/VF या PEA हो, लो-फ्लो अवधि 60 मिनट से कम हो और सीपीआर के दौरान ETCO₂ स्तर 10 से ऊपर हो।
गंभीर जिगर, गुर्दे, न्यूरोलॉजिकल या कैंसर जैसी स्थितियों से मुक्त मरीजों में बेहतर नतीजे मिलते हैं। हालांकि, भारत में ईसीपीआर के उपयोग को लेकर आर्थिक बोझ, परिवार की धारणा और नैतिक दुविधाएं एक बड़ी चुनौती हैं। इसलिए, परिवार को संभावित नतीजों और खर्चों की पूरी जानकारी देना आवश्यक है।
बाहर के अस्पतालों में कार्डिएक अरेस्ट के मामलों में ईसीपीआर शुरू करना और भी जटिल होता है, जबकि अस्पताल के अंदर यह अपेक्षाकृत आसान होता है — बशर्ते वित्तीय पहलुओं और परिणामों पर पारदर्शी बातचीत हो।
ईएलएसओ (ELSO) रजिस्ट्री के अनुसार, वयस्कों में ईसीपीआर से जीवित रहने की दर लगभग 30%, बच्चों में 41%, और नवजातों में 43% है। यद्यपि हर मरीज की रिकवरी अलग होती है, ‘रेस्क्यू स्कोर’ जैसे उपकरण संभावनाएं आंकने में मदद करते हैं।
निष्कर्षतः, ईसीपीआर भारत में हृदयगति रुकने की स्थिति में एक क्रांतिकारी तकनीक के रूप में उभर रही है। लेकिन इसके प्रभाव को व्यापक बनाने के लिए प्रशिक्षण, बुनियादी ढांचे और नीति-स्तर की योजनाओं में सुधार जरूरी है—ताकि हर मरीज को जीवन की दूसरी मौका मिल सके।
डॉ. दीपांजन चटर्जी, निदेशक, ईसीएमओ एवं प्रत्यारोपण कार्यक्रम (हृदय व फेफड़ा) व प्रमुख, कार्डियो-पल्मोनरी क्रिटिकल केयर विभाग, मेडिका सुपरस्पेशलिटी हॉस्पिटल, कोलकाता
