भारत ने फिर कहा है कि सिंधु जल समझौते के मामले में तथाकथित मध्यस्थता अदालत का गठन समझौते के प्रावधानों का उल्लंघन है। विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा है कि स्थायी मध्यस्थता अदालत ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कहा है कि अवैध रूप से गठित तथाकथित मध्यस्थता अदालत ने व्यवस्था दी है कि वह किशनगंगा और रातले पनबिजली परियोजनाओं के मामले पर विचार करने में पूरी तरह सक्षम है। भारत ने जोर देकर कहा है कि इन परियोजनाओं से जुड़े मतभेद पर तटस्थ विशेषज्ञ पहले से ही विचार कर रहा है। तटस्थ विशेषज्ञ की कार्रवाई ही समझौते की कार्रवाई के अनुरूप है। इस समझौते में समान मुद्दों पर समानांतर कार्रवाई का कोई प्रावधान नहीं है।

भारत समझौते से जुड़े तटस्थ विशेषज्ञ की कार्वाइयों में भाग ले रहा है। पिछली बैठक इस वर्ष 27 और 28 फरवरी को हेग में हुई थी। अगली बैठक सितम्बर में होनी है। विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत को ऐसी किसी भी अवैध और समानांतर कार्रवाइयों में भाग लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता, जिसका समझौते में उल्लेख नहीं है। मंत्रालय ने कहा कि सिंधु जल समझौते में बदलाव के संबंध में भारत, पाकिस्तान के संपर्क में है। हाल का यह घटनाक्रम दर्शाता है कि ऐसा बदलाव क्यों इतना आवश्यक है।