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प्रवीण कुमार

भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 से 24 जून 2023 तक चार दिन के अमेरिका दौरे पर रहेंगे। चूंकि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने पीएम मोदी को स्टेट विजिट के तौर पर आमंत्रित किया है, लिहाजा पीएम मोदी के पिछले 7 अमेरिकी दौरों की तुलना में यह दौरा बेहद खास माना जा रहा है। इससे पहले 1963 में तत्कालीन राष्ट्रपति सर्वपल्ली राधाकृष्णन और 2009 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह स्टेट विजिट पर अमेरिका गए थे। मालूम हो कि भारत और अमेरिका समेत दुनिया की तमाम बड़ी अर्थव्यवस्था वाले देश मंदी के दौर से गुजर रहे हैं। ऊपर से चीन की साम्राज्यवादी नीति परेशानी की सबब बना हुआ है। भारत के लिए चीन का मुद्दा काफी अहम है। अमेरिका को भी लगता है कि चीन से निपटना है तो यह बिना भारत के साथ आए नहीं होगा। ऐसे में चीन को लेकर अमेरिकी हित से भारत अगर अपना हित साध पाया तो पीएम मोदी का यह अमेरिकी दौरा निश्चित तौर पर ऐतिहासिक माना जाएगा।     


डेमोक्रेसी, डायवर्सिटी और आजादी का जिक्रअमेरिका रवाना होने से पहले पीएम मोदी ने ट्वीट कर कहा- भारत-अमेरिका के बीच गहरे संबंध हैं और हर क्षेत्र में हमारी भागीदारी लगातार बढ़ी है। अमेरिका गुड्स एंड सर्विसेज में हमारा सबसे बड़ा ट्रेड पार्टनर है। इसके अलावा, साइंस, टेक्नोलॉजी, हेल्थ और डिफेंस के क्षेत्र में भी हम सहयोगी हैं। दोनों देश इंडो-पैसिफिक को फ्री और ओपन बनाने की तरफ भी साथ मिलकर काम कर रहे हैं। मोदी ने आगे कहा- राष्ट्रपति बाइडेन और दूसरे यूएस लीडर्स के साथ मेरी बातचीत दोनों देशों के बीच बाइलेट्रल रिलेशन को और आगे लेकर जाएगी। मुझे विश्वास है कि अमेरिका की मेरी यात्रा डेमोक्रेसी, डायवर्सिटी और आजादी के मूल्यों पर आधारित हमारे संबंधों को और मजबूत करेगी। हम वैश्विक चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एक साथ मजबूती से खड़े हैं।

मोदी पर बाइडेन की मेहरबानी के मायने पीएम मोदी ने अपने ट्वीट में जो भी बातें कहीं वह बेहद सामान्य सी बात है। औपचारिक ट्वीट में देश और दुनिया को इतना बताना और जताना पड़ता है कि आखिर हमारी यात्रा का मकसद क्या है। चूंकि पीएम मोदी पहली बार अमेरिकी राष्ट्रपति की तरफ से स्टेट विजिट के तौर पर न्यौते गए हैं लिहाजा व्हाइट हाउस के साउथ लॉन में ऑफिशियल वेलकम होगा। 21 तोपों की सलामी दी जाएगी। इस दौरान 7 हजार से ज्यादा इंडियन अमेरिकन कार्यक्रम में शिरकत करेंगे। पीएम मोदी दूसरी बार अमेरिकी संसद को संबोधित करेंगे। और अंत में अमेरिकी राष्ट्रपति के स्टेट डिनर में शामिल होंगे। इससे पहले पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को भी जब तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने स्टेट विजिट के तौर पर आमंत्रित किया था तो कुछ इसी तरह की औपचारिकता पूरी की गई थी। लेकिन मौजूदा वक्त में इस बात का परीक्षण करना गलत नहीं होगा कि डेमोक्रेट के तौर जो बाइडेन भारत के दक्षिणपंथी नेता और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इतनी उम्मीद भरी नजरों से क्यों देख रहे हैं? आखिर पीएम मोदी पर जो बाइडेन इतनी मेहरबानी क्यों दिखा रहे हैं?   

भारत और अमेरिका के केंद्र में है चीन दरअसल, पीएम मोदी का ये दौरा कितना अहम है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पीएम के अमेरिका रवाना होने से पहले 15 दिन के अंदर दो बड़े अमेरिकी नेता भारत का दौरा कर चुके हैं। एक ओर जहां अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन ने राजनाथ सिंह से मुलाकात की। वहीं, नेशनल सिक्योरिटी एडवाजर जेक सुलिवन भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल और विदेश मंत्री एस जयशंकर से मिले। अमेरिका के रक्षा मंत्री तो यहां तक बता गए कि दोनों देशों के बीच कई अहम मुद्दों पर डील हुई हैं जिसकी घोषणा पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर की जाएगी। अगर आप ध्यान दें तो जो दो बड़े अमेरिकी नेता का भारत दौरा हुआ उसमें दोनों नेता रक्षा और सुरक्षा से जुड़े हैं और मौजूदा वक्त में भारत-अमेरिका के बीच रक्षा और सुरक्षा पर जो भी बात होती है उसके केंद्र में भारत का पड़ोसी और दुश्मन देश चीन है जो अमेरिका की आंखों में भी बार-बार खटक रहा है। मतलब यह कि चीन के मुद्दे को लेकर भारत और अमेरिका की चिंता लगभग एक जैसी हैं। एक तरफ जहां एलएसी और हिंद महासागर में चीन की दखलंदाजी का भारत विरोध करता है।वहीं, अमेरिका ताइवान और साउथ चाइना सी में चीन की घुसपैठ की कोशिशों का विरोध करता है। ऐसे में चीन से निपटने के लिए दोनों देशों को एक-दूसरे के साथ की जरूरत है।

ट्रेड सरप्लस को बरकरार रखना भी अहम व्यापार की बात करें तो वित्त वर्ष 2022-2023 में भारत और अमेरिका के बीच बाइलैट्र्ल ट्रेड 128 बिलियन डॉलर पार कर चुका है। यानी इस दौरान भारत और अमेरिका ने 10 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा का व्यापार किया। भारत के लिए अमेरिका गिने-चुने देशों में से एक है जिनके साथ भारत का ट्रेड सरप्लस है। कहने का मतलब यह कि भारत अमेरिका को ज्यादा सामान बेचता है और वहां से कम सामान खरीदता है। 2021-22 में भारत का अमेरिका के साथ 32.8 अरब डॉलर का ट्रेड सरप्लस था। मौजूदा दौर में भारत इस ट्रेड सरपलस को बरकरार रखना चाहता है। इसको लेकर भी पीएम मोदी की यह यात्रा काफी खास मानी जा रही है। इसके अलावा पीएम के इस दौरे पर भारत को दुनिया का सबसे एडवांस्ड एमक्यू-9 ड्रोन और फाइटर जेट के इंजन बनाने की 11 टेक्नोलॉजी अमेरिका से मिलने की संभावना है। शायद अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन इसी अहम डील की बात अपनी भारत यात्रा में कह गए हैं जिसकी घोषणा पीएम मोदी के अमेरिका दौरे पर की जा सकती है।

कुल मिलाकर देखा जाए तो पीएम मोदी की बेहद खास माने जा रहे अमेरिकी दौरे के केंद्र में पहला मसला चीन है और दूसरा जो पीएम मोदी अपने ट्वीट में डेमोक्रेसी, डायवर्सिटी और आजादी की बात कह गए हैं। इसमें कोई शक नहीं कि चीन को लेकर अमेरिका की अपनी चिंता है और भारत की अपनी। चीन के खिलाफ साथ आने की गुंजाइश तभी बनेगी जब दोनों की अपनी-अपनी चिंताएं दूर होने का सटीक समाधान निकल पाए। तय मानिए, दोनों देश चीन को लेकर किसी भी मसले पर हाथ मिलाते हैं तो इसका ज्यादा नुकसान भारत को ही झेलना पड़ेगा। ज्यादा मुश्किलों का सामना भारत को ही करना पड़ेगा क्यों कि चीन भारत का पड़ोसी है। वह अपनी सेना को तो सीमा पार घुसाता ही है, साथ ही पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका, यहां तक कि नेपाल तक को भारत के खिलाफ भड़काता रहता है। इससे निपटना भारत के लिए बड़ी चुनौती है। इस लिहाज से पीएम मोदी जिस डेमोक्रेसी, डायवर्सिटी और आजादी की बात कर रहे हैं वह भी फंसता दिख रहा है। ऐसे में देखना होगा कि चीन को लेकर पीएम मोदी अमेरिका से कितना और किस तरह का मोलभाव कर पाते हैं। चीन को लेकर कूटनीतिक और स्ट्रैटजिक तौर पर भारत अगर अमेरिका के साथ कोई डील कर पाता है तो निश्चित तौर पर पीएम मोदी का यह दौरा ऐतिहासिक तौर पर सफल माना जाएगा। 

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।)