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शिक्षा का अधिकार ऐक्ट को बहाना बनाकर मदरसों को बंद और समाप्त करने की साजिश हो रही हैः- जमीअत उलमा-ए-हिंद; मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर जमीअत उलमा-ए-हिंद पहुंची सुप्रीम कोर्ट

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नई दिल्ली,


उत्तराखंड सरकार ने पिछले दिनों बाल अधिकार से संबंधित रष्ट्रीय आयोग (एन.सी.पी.सी.आर.) की सिफारिश को आधार बना कर मदरसों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है। इसके खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद सुप्रीम कोर्ट पहंुच गई है। इस संबंध में मंगल 25 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में याचिका की सुनवाई हो सकती है। एन.सी.पी.सी.आर. ने केन्द्र और राज्यों को निर्देश दिया था कि कथित रूप से शिक्षा का अधिकार ऐक्ट से संबंध न रखने वाले सभी मदरसों को बंद करा दिए जाए, इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट आॅफ इंडिया में बच्चों के अधिकार से संबंधित राष्ट्रीय आयोग ने अदालत में एक शपतपत्र भी दाखिल किया था जिसमें कथित रूप से उसने यह भी कहा था कि मदरसों में बच्चों को उचित शिक्षा नहीं दी जा रही है और यह बच्चों के अधिकार के खिलाफ है, आगे यह भी कहा गया था कि मदरसों में बच्चों को न केवल उचित शिक्षा बल्कि स्वस्थ वातावरण और विकास के अच्छे अवसर से भी वंचित रखा जा रहा है।


स्पष्ट हो कि उत्तर प्रदेश में मदरसों को जो नोटिस जारी किए गए उनमें तथ्यों की उपेक्षा करते हुए दलील दी गई कि मुफ्त और अनिवार्य बाल शिक्षा अधिकार ऐक्ट 2009 के अंतर्गत अगर मदरसा मान्यता प्राप्त नहीं है तो उसे बंद किया जाए और छात्रों को नज़दीकी सरकारी विद्यालय में दाखिल कर दिया जाए, इसके बाद ही सरकारी अधिकारियों ने उत्तराखंड में बड़े स्तर पर मदरसों के खिलाफ फिर कार्रवाई शुरू कर दी है। अब तक इस कार्रवाई में बिना पूर्व सूचना के बहुत से मदरसों को ज़बरदस्ती बंद करवा दिया गया हालाँकि यह कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का उल्लंघन है। उल्लेखनीय है कि जब उत्तरप्रदेश में इस प्रकार की कार्रवाई की गई थी तो जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इस साजिश को विफल बनाने के लिए मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर सुप्रीम कोर्ट में एक अहम याचिका, जिसका नंबर डब्लयू.पी. (सी) 000660/2024 है, 4 अक्तूबर 2024 को दाखिल की थी जिसमें उन सभी दावों को चुनौती दी गई थी जिसके बाद जब चीफ जस्टिस वी.आई. चन्द्रचूड़ के नेतृत्व में जस्टिस जे.पी. पारदी वाला और जस्टिस मनोज मिश्रा पर आधारित एक बैंच ने उन सभी नोटिसों पर रोक लगा दी जो विभिन्न राज्यों विशेष रूप से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मदरसों को जारी किए गए थे। इसमें कहा गया है कि अदालत की ओर से अगला नोटिस जारी किए जाने तक की अवधि के दौरान इस संबंध में अगर कोई नोटिस या आदेश केन्द्र या राज्यों की ओर से जारी होता है तो इस पर भी नियमानुसार रोक जारी रहेगी।


इसलिए उत्तराखंड में मदरसों के खिलाफ इस असंवैधानिक कार्रवाई पर आज जमीअत उलमा-ए-हिंद ने मौलाना अरशद मदनी के निर्देश पर उतरखंड में मकतबों और मदरसों, जो केवल मुस्लिम समुदाय के बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने के माध्यम हैं, के कार्यों में अनावश्यक हस्तक्षेप और उन्हें लगातार भयभीत करने के हवाले से सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई है जिसमें कहा गया है कि हमारे मदरसे और मकतब जो शुद्ध रूप से गैर-सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक धार्मिक शिक्षा संस्थाएं हैं, लम्बे समय से बिना किसी सरकारी हस्तक्षेप के अपने मकतब और मदरसे चला रहे हैं। लेकिन अचानक पहली मार्च 2025 से अब तक सरकारी अधिकारी हमारे मदरसों में आरहे हैं और हमसे कह रहे हैं कि हमें यह मकतब और मदरसे बंद करने होंगे। जब हमने उनसे किसी नोटिस या सरकारी आदेश के बारे में पूछा तो उन्होंने हमें कुछ भी उपलब्ध नहीं किया। केवल मौखिक रूप से निर्देश दिया कि उत्तर प्रदेश मदरसा एजूकेशन बोर्ड दोहरादून से गैर-मान्यता प्राप्त मदरसों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है, इसके बाद उन्होंने बिना किसी नोटिस के हमारे मदरसों को सील कर दिया और हमें किसी भी प्रकार का स्पष्टिकरण या आपत्ति करने का अवसर नहीं दिया। याचिका में यह भी कहा गया है कि गैर-मान्यता प्राप्त होने का अर्थ केवल यह है कि हमने अपने मकतबों और मदरसों का उत्तर प्रदेश मदरसा एजूकेशन बोर्ड दोहरादून से पंजीकरण नहीं करवाया। हमने उत्तर प्रदेश मदरसा एजूकेशन बोर्ड ऐक्ट 2016 की समीक्षा की है, इसमें कहीं भी यह नहीं लिखा है कि गैर-मान्यता प्राप्त मकतबों/मदरसों को अपने बच्चों को धार्मिक शिक्षा देने की अनुमति नहीं है। दूसरे शब्दों में इस कानून के अंतर्गत मदरसा/मकतब का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है। इसके अलावा छात्रों के माता-पिता और अभिभावक भी इस असंवैधानिक हस्तक्षेप के कारण परेशान हैं क्योंकि उनके बच्चों को उनकी इच्छा के अनुसार धार्मिक शिक्षा जारी रखने की अनुमति नहीं दी जा रही, जो कि उनके अधिकारों का भी उल्लंघन है।


इस याचिका में अदालत से यह निवेदन किया गया है कि भारतीय संविधान की धाराओं और माननीय सुप्रीम कोर्ट के 21 अक्तूबर 2024 के आदेश की रोशनी में कृपया इन मकतबों और मदरसों को शीघ्र पुनः खोलने का आदेश प्रशासन को दें और प्रशासन को यह भी आदेश दें कि वो मकतबों और मदरसों के कार्यों में हस्तक्षेप न करे, क्योंकि संबंधित सरकारी अधिकारियों का यह कार्य न्यायालय की अवमानना के समान है, और यह न्याय के उद्देश्यों का लगातार लल्लंघन है और कानून के शासन के खिलाफ है। वकील आॅन रिकार्ड फुज़ैल अय्यूबी ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दाखिल की है।

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