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एस एन वर्मा

हम किस युग में जी रहे हैं?मानव जीवन का क्या कोई मूल्य नहीं रह गया है? हमारा देश तरक्की कर रहा है। स्मार्ट सिटी बन रहा है। लेकिन हम हृदय विहीन होते जा रहे हैं। नगरों में हो रही सीवर सफाई के दौरान सफाई कर्मचारियों की मौतों पर हम ओंठ सिले बैंठे हैं।पिछले महीने राज्यसभा में बताया गया कि सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 2019 से 2023 के बीच कुल 377 लोगों की जानें गई। सफाई कर्मचारी आंदोलन संगठन के अनुसार पिछले छह महीने में देश में सीवर और सेप्टिक टैंकों की सफाई के दौरान 43 मौतें हुई हैं। लेकिन सरकारें चुप हैं। इन मौतों को रोकी जा सकती थी, अगर सरकार उच्चतम न्यायालय के आदेशों का नगर निगम और स्थानीय निकायों से सख्ती से पालन करवा सकती।उदारणतः 40 साल पहले एनसीआर में सीवर सफाई के दौरान जहरीली गैसों से कमर्चारियों की मौतें होती थी,वो आज भी हो रही हैं जबकि इन वर्षाे के दौरान ऐसी मौतों को रोकने के लिए कई प्रावधान बनाए गए। अत्याधुनिक मशीनें,उपकरण,रोबोट आदि इस काम के लिए निर्माण किए गए। लेकिन सीवर सफाई के दौरान हो रही मौतों का सिलसिला थम नहीं रहा है।

सफाई कर्मचारी आंदोलन संगठन के अनुसार सरकार इन मौतों पर चुप है।जबकि यह सरासर मानवाधिकार का उल्लंघन है।सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का खिल्ली उड़ा रही है। प्रभावित कर्मचारी दलित समुदाय के होते हैं ।प्रशासन इसे दुर्घटना मात्र मान कर अपने उत्तरदायित्व से मुँह मोड़ लेता है। स्थानीय निकायों व नगर निगमो पर सरकार लगाम कसने में विफल रही है। जबकि कोर्ट का निर्देश है कि सीवर की खतरनाक सफाई के लिए किसी मजदूर को ना लगाया जाए,बिना सेफ्टी के सीवर लाइन में मजदूर को न उतारा जाए।कानून का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ सख्त सजा का प्रावधान हो।लेकिन जमीनी स्तर पर ऐसा कुछ लागू होता दिख नहीं रहा।

कानून के मुताबिक, सफ़ाई एजेंसियों को सफ़ाई कर्मचारियों को मास्क, दस्ताने जैसे सुरक्षात्मक उपकरण देना ज़रूरी है। हालांकि, नगरों में ठेके पर काम करा रही एजेंसियां ऐसा नहीं करतीं और कर्मचारियों को बिना किसी सुरक्षा के सीवरों में उतरना पड़ता है। सुप्रीम कोर्ट की 2013 की गाइडलाइन में सीवर सफाई के लिए 45 प्रकार के सुरक्षा उपकरण मुहैया कराए जाने की बात की गई है, लेकिन वह मात्र कागजों तक ही सीमित रह गयी है। केंद्र सरकार यहां तक कह रही है कि हम रोबोट ला रहे हैं । रोबोट के जरिए जमीन से 8 मीटर नीचे मैनहोल, स्लज और ब्लॉकेज की सफाई की जा सकेगी. इस रोबोट में एक स्वचालित कैमरा भी लगा हुआ होगा , जिससे बाहर बैठकर ही लोग सीवर सफाई का कार्य संचालित कर सकेंगे।लेकिन तबतक न जाने कितनी मौतें हो चुकी होंगी। आंकड़े बताते हैं कि सीवर सफाई के दौरान पिछले दिनों में मौतों का आंकड़ा लगातार बढ़ रहा है। पिछले पांच सालों के सरकारी आंकड़ों के अनुसार सीवर सफाई के दौरान 2019 में 117 मौतें, 2020 में 22 मौतें, 2021 में 58 मौतें, 2022 में 66 मौतें, 2023 में 9 मौतें दर्ज की गईं। ज्यादातर मौतों में ठेकेदार स्थानीय प्रशासन के साथ मिलकर रिपोर्ट दर्ज होने ही नहीं देते। सीवर सफाई के दौरान मरने वालों में उत्तर प्रदेश नम्बर वन पर है. उत्तर प्रदेश में 15 साल में 700 सफाई कर्मी या मजदूर की मौत सेफ्टी टैंकों के अंदर सीवरेज की जहरीली गैस की चपेट में आने से हो चुकी है.

हकीकत यह है कि सफाईकर्मियों के पास हैंड ग्लब्स तक नहीं होता। आक्सीजन सिलेंडर और अन्य सुरक्षा उपकरण तो दूर की बात है। वर्ष 2013 में संसद ने मैनुअल स्कैवेंजर्स और उनके पुनर्वास के रूप में रोज़गार का निषेध अधिनियम बनाया। इस अधिनियम के अंतर्गत यह प्रावधान है कि सीवर लाइनों या सेप्टिक टैंकों की सफ़ाई के लिए किसी भी व्यक्ति को सीवर में खतरनाक तरीके से उतारना या शामिल करना गैरकानूनी है।

कानून यह भी कहता है कि जो कर्मचारी सीवर में उतरेगा उसका 10 लाख का बीमा होना चाहिए. कर्मचारी से काम की लिखित स्वीकृति जरूरी है. सफाई से दो घंटे पहले सीवर का ढक्कन खोला जाना चाहिए ताकि जहरीली गैस बाहर निकल जाएं. ऑक्सीजन सिलेंडर, मास्क जीवन रक्षक उपकरण के साथ ही कर्मचारी को किसी प्रशिक्षित सुपरवाइजर की निगरानी में. सीवर में उतारना चाहिए ।

(लेखक स्वतंत्र पत्रकार व स्तंभकार हैं)

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