Last Updated on: 20 November 2025 12:10 AM

लेखक: डॉ. सूर्य कांत

आज NOV 19 विश्व सीओपीडी दिवस है। ग्लोबल इनिशिएटिव फॉर क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव लंग डिज़ीज़ (GOLD) द्वारा वर्ष 2002 से प्रतिवर्ष आयोजित यह दिवस विश्वभर में सीओपीडी के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है। इस वर्ष की थीम “Short of Breath, Think COPD” है, जो यह संदेश देती है कि सांस फूलने या सांस लेने में कठिनाई जैसे शुरुआती लक्षणों को हल्के में न लेकर तत्काल चिकित्सकीय मूल्यांकन आवश्यक है।

सीओपीडी—एक सामान्य, रोके जाने योग्य और उपचार योग्य रोग

सीओपीडी एक “सामान्य, रोकथाम योग्य और उपचार योग्य बीमारी” है, फिर भी इसका बड़ा हिस्सा आज भी बिना पहचाने रह जाता है। इसका मुख्य कारण है—लक्षणों को नजरअंदाज करना और समय पर जांच न कराना।

कई मरीज खांसी, बलगम, सांस फूलने या सीढ़ियां चढ़ने में परेशानी जैसे शुरुआती संकेतों पर ध्यान नहीं देते, जिसके चलते रोग बढ़ता जाता है। गलत निदान या देर से निदान होने पर मरीजों को या तो बिल्कुल इलाज नहीं मिल पाता या फिर गलत उपचार होता है, जिससे बीमारी और गंभीर हो जाती है।

स्पाइरोमेट्री: सीओपीडी की स्वर्ण-मानक जांच

सीओपीडी का निदान करने का सबसे सटीक तरीका स्पाइरोमेट्री है। लेकिन संसाधन-सीमित ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में इसकी उपलब्धता बहुत कम है। जागरूकता के अभाव, लक्षित स्क्रीनिंग कार्यक्रमों की कमी और प्रशिक्षित तकनीशियनों की कमी के कारण भी समय पर निदान नहीं हो पाता।

पोर्टेबल स्पाइरोमीटर—नई उम्मीद, नई संभावनाएं

Advances in Respiratory Medicine जर्नल में प्रकाशित एक व्यवस्थित समीक्षात्मक अध्ययन से यह स्पष्ट हुआ है कि पोर्टेबल स्पाइरोमीटर सीओपीडी की शुरुआती पहचान में अत्यंत उपयोगी साबित हो सकते हैं।

यद्यपि इन उपकरणों से सीओपीडी का प्रचलन पारंपरिक लैब-आधारित स्पाइरोमीटरों की तुलना में थोड़ा कम पाया गया, फिर भी वे बेडसाइड डायग्नोसिस को संभव बनाते हैं, जिससे छिपे हुए मामलों का समय रहते पता लगाया जा सकता है।

विश्व स्तर पर किए गए अध्ययनों के रोचक निष्कर्ष

पोलैंड के मेड‍िकल यूनिवर्सिटी ऑफ वारसॉ के डॉ. पिओत्र जांकॉवस्की और उनकी टीम ने 8000 से अधिक शोधों का विश्लेषण कर 28 अध्ययनों को अपनी समीक्षा में शामिल किया।

मुख्य निष्कर्ष इस प्रकार रहे:

  • पोर्टेबल स्पाइरोमीटर से सीओपीडी का औसत प्रचलन 20.27% पाया गया, जबकि
  • पारंपरिक लैब स्पाइरोमीटर से 24.67% मामलों की पहचान हुई।

यानी पोर्टेबल उपकरण थोड़े कम मामलों का पता लगाते हैं, लेकिन फिर भी उच्च जोखिम वाले मरीजों की पहचान करने में पर्याप्त सटीक और व्यावहारिक हैं।

11 अध्ययनों में पोस्ट-ब्रोंकोडायलेटर जांच भी की गई, जिससे यह पुष्टि हुई कि धूम्रपान करने वालों में पोर्टेबल उपकरणों से अपरिवर्तनीय वायु मार्ग अवरोध की विश्वसनीय पहचान संभव है।

प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाओं में इनकी भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण

यह अध्ययन स्पष्ट करता है कि पोर्टेबल स्पाइरोमीटर का उपयोग:

  • लक्षित स्क्रीनिंग के लिए
  • गांवों और दूरस्थ क्षेत्रों में
  • कम लागत वाले अस्पतालों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में

बेहद लाभकारी है।
इनकी पोर्टेबिलिटी, उपयोग में सरलता और किफ़ायती कीमत इन्हें संसाधन-संकट वाले देशों—विशेषकर भारत—के लिए अत्यंत उपयोगी बनाती है।

निष्कर्ष: सीओपीडी की लड़ाई में समय पर निदान ही सबसे बड़ा हथियार

सीओपीडी आज भी दुनिया की प्रमुख मृत्यु-कारक बीमारियों में से एक है। लेकिन यदि समय रहते इसका पता चल जाए तो इसका प्रभावी प्रबंधन संभव है।

इस वर्ष की थीम “Short of Breath, Think COPD” हमें याद दिलाती है कि सांस फूलना सिर्फ थकान नहीं, बल्कि एक गंभीर रोग का संकेत भी हो सकता है।

पोर्टेबल स्पाइरोमीटर का बढ़ता उपयोग भारत में सीओपीडी की समय पर पहचान को गति दे सकता है, और इससे करोड़ों जीवन बचाने की संभावना है।

समय पर जांच, सही निदान और सटीक उपचार—यही सीओपीडी से लड़ाई के तीन प्रमुख स्तंभ हैं।

लेखक: डॉ. सूर्य कांत प्रोफेसर एवं प्रमुख, श्वास रोग विभाग, केजीएमयू, यूपी, लखनऊराष्ट्रीय उपाध्यक्ष, आईएमए–एएमएस