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AMN / NEW DELHI

दिल्ली के प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में आयोजित श्रद्धांजलि सभा में देश के जाने-माने पत्रकार वीरेंद्र स़ंगर को भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

सभा की अध्यक्षता वरिष्ठ पत्रकार आचार्य विष्णु गुप्त ने की।यह जानकारी देते हुए सभा के संयोजक धीरेंद्र प्रताप ने बताया कि सभा में वरिष्ठ पत्रकार देव सिंह रावत रेवती रमन पांडे सत्य प्रकाश त्रिपाठी विजय सती योगेंद्र यादव सुनील कुमार कुशाल जीना रमेश सिंह समेत अनेक लोग मौजूद थे।

सभी वक्ताओं ने स्वर्गीय वीरेंद्र सिंगर को पत्रकारिता का महान पुरोधा बताया कहा वह अपने समकालीन जगत में कलाम के बहुत बड़े सिपाही माने जाते रहे उन्होंने कहा कि उन्होंने सामाजिक जीवन पर बहुत गहराई से अध्ययन किया और किसान गरीब मजलूम राजनीति जैसे विषयों पर अनेक लेख लिखें और कई रहस्य को भी खोलने का काम किया.

इसके इलावा उनको उनके चाहने वालों ने सोशल मीडिया पर भी भावपूर्ण श्रद्धांजलि दी जा रही है

मेरठ के मलियाना और हाशिमपुरा में पीएसी ने जब मुसलमानों से लाइन लगवाकर उनको गोलियों से भून दिया था, उनमें से बचे हुए या उस घटना के चश्मदीद को दिल्ली लाकर प्रेस कांफ्रेंस वीरेंद्र सेंगर ने ही कराई थी और संतोष भारतीय जी के संपादन में निकलने वाले “चौथी दुनिया” साप्ताहिक में इस वीभत्सता पर वीरेंद्र सेंगर ने ही सबसे प्रमाणिक रिपोर्टिंग की थी। जहां तक हमें याद है, वीरेंद्र सेंगर ही थे जिन्होंने इस कांड में मारे गए लोगों की लाशें ग़ाज़ियाबाद की गंग नहर में पाए जाने की स्टोरी भी ब्रेक की थी। बेबाक और निडर वीरेंद्र सेंगर ने जब यह खबर “चौथी दुनिया” में लिखी तब पूरी दुनिया को भारत में हुए इतने भयानक नरसंहार का पता चला। कमर वहीद नकवी जी भी तब चौथी दुनिया में थे। शकरपुर से निकलने वाला चौथी दुनिया ही वह अखबार था जिसने सबसे पहले हमें ब्रेक दिया था। हमने कई स्टोरी लिखीं थीं तब। आज वीरेंद्र सेंगर जी के नहीं रहने की ख़बर निराश करने वाली है, बेहद भारी मन से विनम्र श्रद्धांजलि। –सुहैल वहीद

Pradeep Srivastava

वीरेंद्र सेंगर जी के निधन की खबर सुनकर स्तब्ध हूँ l मुझे नहीं याद है कब उनसे परिचय हुआ, कब घनिष्ठ हुए l कभी उनके साथ काम नहीं कियाl लेकिन उनके शांत और गंभीर व्यक्तित्व में कुछ था जो आप को उनके करीब पहुंचा देता l एक दो साल पहले भीम ताल के पास उन्होंने पहाड़ों के बीच एक खूबसूरत घर बनवाया था, इधर ज्यादा समय वहीं बिताते l उलाहना देने पर कहा जब चाहे आइए l मैंने एक बार यह भी कहा बहुत सही decision लिया, जलन हो रही आप से l कभी गुस्से मे नही देखा l वैचारिक स्तर पर एक जगह थे हम l खूब बाते, बहस होती l एक महीने पहले क्लब में मिले भी थे l Facebook पर हर पोस्ट पर अपनी राय देते l 2-3 महीने से नहीं दिखाई दिए l अब किसी ने बताया उनके fb में problem आ गई, contact सबसे कर रहे थे l विनोद अग्निहोत्री ने बताया दो दिन पहले उनसे फोन पर लंबी बात हुई थी l प्रसन्नचित्त थेl लेकिन कल शाम भीम ताल से ही बगैर किसी को परेशान किए खट से महाप्रयाण पर निकल चले l अच्छे लोग शायद इसतरह निकल जाते है l पर जो धरती पर उनके नाते दोस्त रह जाते है उनके दिमाग से वे नहीं निकल पाते l वीरेंद्र जी आप जहा गए वहां सकूं से रहे, पर हम लोग आपको हमेशा याद करेंगे Pradeep Srivastava

Sheetal P Singh

बड़ी हृदयविदारक सूचना है। हम लोगों के पत्रकारिता में अग्रज रहे भाई वीरेंद्र सेंगर जी नहीं रहे। आज दो बजे के आसपास नौकुचियाताल स्थिति आवास पर उनकी तबियत बिगड़ी और फिर संभल न सकी। भाभी जी नोएडा में थीं और पता चला अब रास्ते में हैं! शब्दहीन हूं, भाई शेष नारायण सिंह के बाद ये दूसरे अग्रज हैं जिनसे सदा संबल और साहस मिला और जिनका साथ छूट गया। हाशिमपुरा के नरसंहार का उन्होंने पर्दाफाश किया था तब वीर बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। Sheetal P Singh

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जीवन का कोई भरोसा ही नहीं है:

आज दिल्ली लौटा और फेसबुक देखा तो स्तब्ध रह गया. वीरेंद्र सेंगर के निधन की खबर से गहरा धक्का लगा. देश विदेश के मुद्दों पर उनसे लगतार संवाद रहता था. मित्रों की पोस्ट्स देख रहा हूं तो अहसाह हो रहा है कि कितना सक्रीय थे वीरेंद्र जी.कुछ महीने पहले अचानक उन्हे अपने अपार्टमेंट में देखा. किसी का इंतजार कर रहे थे. अग्राह कर के उन्हे घर ले आया और फिर दो घंटे बाते होती रहीं. रिपोर्टिंग के दिनों में उनसे रोज़ ही मुलाकात होती थी.बड़ा हौसला और समझ मिलती थी वीरेंद्र जी से. स्मृतियों में हमेशा जीवित रहेंगे वीरेंद्र सेंगर जी. विनम्र श्रद्धांजलि Prashant Tandon

Habib Akhtar

मरना तो है एक दिन हम सबको, लेकिन हालात ऐसे बना दिए गए हैं कि वक्त से पहले हम सब मर रहे हैं। गला घुट रहा है जीवनदायनी हवाओं पर जानलेवा हवाओं का हमला जारी है। अल्लाह आपकी रूह को सुकून दे। साथी वीरेंद्र सेंगर आप हमारी यादों में हमेशा बने रहोगे।

Umakant Lakhera

देश के बड़े पत्रकार, राजनीतिक टिप्पणीकार, हम में कईयों से सीनियर रहे वीरेंद्र सेंगर के आकस्मिक निधन से बहुत स्तब्ध हूं। हिंदी पत्रकारिता ने एक बेहद जानकर , जांबाज और जुझारू पत्रकार खो दिया। कम बोलना, ज्यादा लिखना और विनम्रता उनमें कूट कूट कर भरी थी। उनसे मेरी निकटता 1987 में पहली बार पश्चिमी उत्तरप्रदेश में किसान आंदोलन और रैलियों में मुलाकातों से शुरू हुई। जब 1988 में दिल्ली आया तो चौथी दुनिया हो या संडे मेल के दौर में लगातार भेंट और खबरों पर चर्चाएं जमकर होती थीं। राजनीतिक पत्रकारिता में दशकों बिताने के बावजूद उन्होंने किसी राजनेता से कोई निजी फायदा नहीं उठाया। एकदम निडरता से बेदाग जीवन जिया। उत्तर प्रदेश के हरेक अंचल की सियासत की जानकारियां उनकी उंगलियों पर होती थी। देश की माटी और जमीन से जुड़ी उनकी पत्रकारिता हमेशा याद रहेगी। मित्रों से उनका स्नेहिल व्यवहार और उनकी यादें सदैव जीवंत रहेंगी।उनके जाने से पैदा हुए शून्य को कभी भर पाना बेहद कठिन होगा! विनम्र श्रंद्धाजलि और कोटि कोटि नमन! Umakant Lakhera

Anil Attri

देश के ज़रूरी मसलों पर हस्तक्षेप करने वाली कलम का इस तरह थम जाना मन को दुःखी कर गया. वीरेंद्र सेंगर जी से मिलना तो पहले भी यहाँ-वहाँ हुआ था. लेकिन ठीक से पहली बार उनसे अमर उजाला के कार्यालय में मिलना हुआ. यह मुलाक़ात भाई अरविंद कुमार सिंह ने कारवाई थी. तब सेंगर जी ब्यूरो प्रमुख थे. शाम का समय था और वह बहुत व्यस्त थे. उनके हाथ में एजेंसी की ख़बरों का बंडल था. बावज़ूद इसके वह बोले कि कुछ देर में फ्री हो जाऊँगा तब तक चाय पियो. उस दिन हमारी देर रात तक बातें हुईं थीं और मुझे उस दिन अरविंद जी ने घर छोड़ा था. मैं अरविंद जी की तरह उन्हें भी दादा कहकर बुलाने लगा था. सच कहूँ तो पहली बार जब मिला तो मुझे वह कड़क स्वभाव के लगे लेकिन जब कुछ और बार मिलना हुआ, तो जाना कि वह भीतर से बहुत विनम्र स्वभाव के हैं. मेरे मुंबई शिफ्ट होने के बाद उनसे कोई मुलाक़ात हुई हो, मुझे याद नहीं. हाँ, सोशल मीडिया और फोन पर बात हो जाती थी. अक्सर पोस्ट पर उनके कमेन्ट आते थे. कुम्भ पर लिखी एक पोस्ट के बाद उन्होंने विशेष तौर पर फोन किया था. फेसबुक पर उनकी सक्रियता अच्छी लगती थी.

कई बार निजी रिश्तों के अलावा यह भी मायने रखता है कि आप किस व़क्त कहाँ खड़े होते हैं. और, वह हमेशा साहस, निडरता और बेबाकी के साथ उस ज़मीन पर खड़े मिले, जहाँ एक पत्रकार को खड़े होना चाहिए. दुःखी मन से आपकी स्मृतियों को नमन. 🙏🏼

Ram Dutt Tripathi

यह तो बिलकुल अप्रत्याशित आघात है. फ़ोन पर कुछ देख रहा था , अचानक फ़्लैश दिखा , वीरेंद्र सेंगर नहीं रहे . इधर-उधर बहुत खोजने पर पता चला नैनीताल के पास नौकुचियाताल में घर पर ही हार्ट अटैक हुआ. संभवतः घर पर अकेले ही थे . और वहीं अंतिम सॉंस ली .कई दशक का साथ था . मुझे अमृत प्रभात से खींचकर वही संडे मेल ले गये . उनसे और रीता जी से एक तरह का पारिवारिक संबंध था.शानदार और शालीन पत्रकार थे . बहुत अच्छे कॉंटैक्ट थे . राजनीति और समाज की गहरी समझ थी .होली से अब तक दो तीन बार फ़ोन पर बात हुई. आग्रह कर रहे थे कि कुछ दिन आकर उनके साथ रहूँ . जाने का प्लान बन रहा था , उससे पहले ही वह चले गये .ईश्वर उनकी आत्मा को शॉति और सद्गति दे. उनकी पत्नी और बेटी पर क्या गुजर रही होगी सोचकर कॉंप जाता हूँ. राम दत्त त्रिपाठी

Masoom Moradabadi 

صحافی ہوتو ایسا

معصوم مرادآبادی

یہ مئی 1987 کا واقعہ ہے۔ یہی رمضان کا مہینہ تھا۔ مغربی اترپردیش کا شہر میرٹھ جو اپنی قینچیوں کے لیے دنیا بھر میں مشہورتھا، اچانک ایک اور حوالے سے دنیا کے نقشے پر ابھر آیا۔ ملک میں رام جنم بھومی کا خونی آندولن چل رہا تھا۔ میرٹھ ان اوّلین شہروں میں سے ایک تھا جو اس کی آگ میں بری طرح جھلس اٹھے۔ فرقہ وارانہ فساد نے میرٹھ کو لہولہان کردیا۔درجنوں افراد ہلاک ہوگئے اور کروڑوں کی املاک جلاکر راکھ کردی گئیں۔لوگ کرفیو کے دوران ہی سحروافطار کررہے تھے۔ 22/مئی کو پی اے سی کے جوانوں نے اچانک مسلم محلہ ہاشم پورہ پردھاوا بول دیا۔ تلاشی کے نام پر چالیس مسلم نوجوانوں کو گرفتار کرکے ٹرک میں بھرا گیا اوررات کی تاریکی میں غازی آباد کے قریب جنگلوں میں لے جاکرسبھی کو گولیوں سے بھون دیاگیا۔ یہ سب کچھ خاکی وردی پہنے قانون کے محافظوں نے کیا تھا۔سبھی چالیس نوجوانوں کی لاشیں گنگا نہر میں بہادی گئیں۔ کسی طرح اس قتل عام کی اطلاع فرض شناس پولیس آفیسر وبھوتی نارائن رائے تک پہنچی۔ وہ اس وقت غازی آباد کے پولیس کپتان تھے۔ وہ اس قتل عام کی تہہ تک پہنچ گئے اور انھوں نے اس کی تمام گرہیں کھول دیں اور وہ پہلا صحافی جس نے دنیا کے اس سب سے بڑے حراستی قتل عام کو اپنی بے باک اور بے لاگ رپورٹنگ سے بے نقاب کیا اس کا نام ویریندر سینگر تھا۔ تمام حقائق کے ساتھ ویریندر سینگر نے اس کی نہایت تفصیلی رپورٹ ہندی ہفتہ وار ”چوتھی دنیا“ میں شائع کردی۔ یہ صحافتی دیانتداری اور ایمانداری کی نادر مثال تھی۔ میں نے اس رپورٹ کا اردو ترجمہ کرکے شائع کیا اور ویریندر بھائی کو اس کی ایک کاپی پہنچائی۔ وہ اردو میں اپنی رپورٹ دیکھ کر بہت خوش ہوئے اور ان سے دوستی ہوگئی۔ 1987سے ہم دونوں ایک دوسرے کے دوست تھے۔ لیکن یہ دوستی کل شام اچانک ٹوٹ گئی۔ اس طرح کہ ویریندر بھائی کی زندگی کی ڈورٹوٹ گئی اور وہ وہاں چلے گئے جہاں سے کوئی واپس نہیں آتا۔بلاشبہ ہاشم پورہ کے قاتلوں کو کیفر کردار تک پہنچانے میں جہاں وبھوتی نارائن رائے کی انتھک جدوجہد کا دخل تھا تو وہیں ہاشم پورہ قتل عام کو دنیا کے سامنے اجاگر کرنے کاکریڈٹ ویریندر سینگر کو جاتا ہے۔

ویریندر بھائی سے سیکڑوں ملاقاتوں اورباتوں کو یاد کرتا ہوں تو بہت سی باتیں یاد آتی ہیں۔ وہ نہایت سنجیدہ اور کم گو انسان تھے۔ طمانیت ہر وقت ان کے چہرے پر مچلتی رہتی تھی۔ جب بھی ملتے بہت تپاک سے ملتے۔ کبھی پریس کلب میں اور کبھی پارلیمنٹ کے کوریڈور میں ان کا نیاز حاصل ہوتا تھا۔ کل شام جب ان کے اچانک انتقال کی خبر ملی تو دھچکا سا لگا۔ ایسا محسوس ہوا کہ ایماندارانہ اور بے باکانہ صحافت کا ایک دور ختم ہوگیا۔ آج کے دور میں ویریندر بھائی کی معنویت اس لیے زیادہ تھی کہ آج ہندی کے بیشتر صحافی گھٹنوں کے بل چل رہے ہیں۔ ویریندر بھائی جیسے صحافی انگلیوں پر بھی نہیں گنے جاسکتے۔ان کی ہر رپورٹ گہری چھان بین اور تحقیق پر مبنی ہوتی تھی اور کوئی بھی اسے رد نہیں کرسکتا تھا۔

ویریندر بھائی نے صحافت کی اعلیٰ قدروں کی پاسداری کی اور ہمیشہ سچائی اور ایمانداری کا دامن تھامے رکھا۔انھیں ہندی کا سب سے بڑا صحافی کہا جائے تو بے جا نہیں ہوگا۔ ویریندر سینگر نے اپنا صحافتی سفرہندی روزنامہ ’امراجالا‘ سے شروع کیا تھا۔ پھر وہ ’چوتھی دنیا“ میں آئے اور پھر ”سنڈے میل“میں۔ وہ بولتے کم تھے اور لکھتے زیادہ تھے۔ ان کی ہر رپورٹ اور تحریر منفرد ہوتی تھی۔ چار دہائیوں سے زیادہ کے اپنے صحافتی کیریر میں ملک کے نامور سیاست دانوں سے ان کے قریبی تعلقات رہے، لیکن انھوں نے ان تعلقات کو کبھی کسی ذاتی فائدے کے لیے استعمال نہیں کیا۔ ان کی اہلیہ ریتا بھدوریا حکومت ہند کی اعلیٰ افسر تھیں، مگر وہ خود نہایت سادہ زندگی بسر کرتے تھے۔ آخری دنوں میں وہ نینی تال منتقل ہوگئے تھے اور سوشل میڈیا پر اکثر ان کی چونکانے والی تحریریں نظر آتی تھیں۔ وہ نہ جانے کیسے فیس بک پر میری اردو تحریریں پڑھ کر اس پر ردعمل ظاہر کرتے تھے۔ یہ آخری تحریر ہے جس پر مجھے ان کا کوئی ردعمل نہیں مل سکے گا۔ بلاشبہ ویریندر بھائی بہترین خوبیوں کے انسان تھے۔ ان کی صحافت ہی نہیں ان کی شخصیت اور کردار بھی آئینے کی طرح شفاف تھا۔

الوداع!ویریندر سینگر، الوداع

Malick Asgher Hashmi

तब मैं अमर उजाला के गुरुग्राम ब्यूरो में था। एक दिन हमारे कार्यकारी संपादक ने फोन कर कहा कि आप तुरंत से पेशतर दिल्ली ऑफिस पहुंचे। उस समय अमर उजाला का दफ्तर आश्रम के पास एक कॉलोनी में था। अमर उजाला के लोग उसे गेस्ट हाऊस कहते थे। गेस्ट हाऊस पहुंचने पर हमारे सामने खड़े एक अच्छे कद काठी के शख्स से कार्यकारी संपादक ने मिलाया… इनसे मिलो। यह हैं वीरेंद्र सेंगर… अमर उजाला के नेशनल ब्यूरो हेड। फिर बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ। वह बोले, तुम्हारे बारे में हरियाणा सरकार से किसी ने शिकायत की है कि तुम ऊंचे पांयचे का पजामा पहनते हो । दाढ़ी रखते हो और मेवात में जाकर मुसलमानों को सरकार के खिलाफ भड़काते हो।

जवाब में मैने कहा, मै ने आज तक ऊंचे पांयचे का पजामा नहीं पहना है। दाढ़ी मैं रखता नहीं। हां, रिपोर्टिंग के सिलसिले में कभी कभी मेवात जरूर जाता हूं। बेबाकी से लिखता हूं, इसलिए मेरा वहां जाना कुछ लोगों को शायद पसंद नहीं। हो सकता है उन्होंने मेरे खिलाफ झूठी शिकायत सरकार को भेजी हो ?

उस समय ओमप्रकाश चौटाला की सरकार थी। वीरेंद्र जी की सरकार में अच्छी पैठ थी। मेरा जवाब सुनकर मेरे कार्यकारी संपादक भी बोले, वीरेंद… मैं हाशमी से परिचित हूं। शिकायत में जैसा बताया गया, वैसा न तो इसका हुलिया है और न ही स्वभाव। लगता है ,कोई इसे फंसाने और उजाला से हटवाने की फिराक में है।

इसपर वीरेंद्र सेंगर जी ने मेरे कंधे पर हाथ रख कर आश्वाशन दिया कि सीएम साहब से मिलकर इस मसले को निपटता हूं।

वीरेंद्र सेंगर जी से वह मेरी पहली मुलाकात थी। एक अखबार में होने के कारण बाद में मेरी उनसे कई मुलाकातें हुईं। वह मेरे वरिष्ठ थे। इसलिए उनसे कभी घुलमिलकर तो बातें नहीं हुईं। मगर उनके प्रयासों से मेरे सिर पर मंडराता खतरा अवश्य टल गया। जब भी मिलते, एक ही बात कहते चिंता मत करो। सब ठीक हो गया। मगर पत्रकारिता सावधानी से करो, जज्बाती होकर नहीं। उनकी बातें आज भी मेरे मन मस्तिष्क के बैंक खाते में दर्ज हैं, मगर अफसोस वीरेंद्र जी हमारे बीच नहीं रहे। विनम्र श्रद्धांजलि!!!!

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