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प्रोफेसर डॉ. अनिल शर्मा, विभागाध्यक्ष, कार्डियोलॉजी, बॉम्बे हॉस्पिटल, मुंबई
प्रकाशित:

उच्च रक्तचाप यानी हाई ब्लड प्रेशर को अक्सर ‘साइलेंट किलर’ कहा जाता है, लेकिन अगर समय रहते इसे पहचाना और नियंत्रित किया जाए तो यह पूरी तरह से काबू में आ सकता है। यह सिर्फ एक बीमारी नहीं, बल्कि चेतावनी है कि हमारे शरीर को देखभाल की ज़रूरत है। अच्छी खबर यह है कि कुछ सरल आदतों को अपनाकर इसे न केवल नियंत्रित किया जा सकता है बल्कि जीवन की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाया जा सकता है।

भारत में उच्च रक्तचाप की स्थिति

भारत में लगभग 30% वयस्क उच्च रक्तचाप से पीड़ित हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 26.6% है, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह बढ़कर 33.8% तक पहुँच जाती है। अच्छी बात यह है कि बढ़ती जागरूकता, स्क्रीनिंग प्रोग्राम और जीवनशैली में बदलाव के माध्यम से इसे रोका और नियंत्रित किया जा सकता है।

माप में सावधानी और सटीकता ज़रूरी

ब्लड प्रेशर मापने की प्रक्रिया में सटीकता बहुत आवश्यक है। सही आकार की कफ का उपयोग, बैठने की स्थिति, दोनों हाथों में शुरुआती माप, और नियमित घरेलू मॉनिटरिंग से वास्तविक स्थिति को बेहतर समझा जा सकता है।

चार प्रकार की स्थितियाँ

रोगियों में ब्लड प्रेशर की चार आम स्थितियाँ देखने को मिलती हैं:

  1. सामान्य बीपी: दोनों जगह सामान्य (17%)
  2. सच्चा हाई बीपी: दोनों जगह ऊँचा (47%)
  3. मास्क्ड हाइपरटेंशन: क्लिनिक में सामान्य, घर पर ऊँचा (8%)
  4. व्हाइट कोट हाइपरटेंशन: क्लिनिक में ऊँचा, घर पर सामान्य (27%)

इनमें से मास्क्ड और व्हाइट कोट हाइपरटेंशन की पहचान के लिए होम या एम्बुलेटरी बीपी मॉनिटरिंग बहुत उपयोगी होती है।

दवाइयों से पहले जीवनशैली में सुधार

यदि सिस्टोलिक बीपी 120-129 और डायस्टोलिक 80-89 के बीच है तो शुरुआत में जीवनशैली में बदलाव ही पर्याप्त हो सकते हैं। नियमित व्यायाम, नमक और तले खाद्य पदार्थों से परहेज़, तनाव नियंत्रण, और वजन घटाना सबसे प्रभावशाली कदम हैं।

दवा का चयन – आपकी ज़रूरत के अनुसार

यदि जीवनशैली में बदलाव से बीपी नियंत्रित नहीं होता या जोखिम अधिक होता है, तो डॉक्टर आवश्यक दवा लिख सकते हैं। आमतौर पर डाइयूरेटिक्स, बीटा ब्लॉकर्स, एसीई इनहिबिटर्स, एआरबी, और कैल्शियम चैनल ब्लॉकर्स जैसे विकल्प उपलब्ध हैं। हर मरीज की स्थिति के अनुसार दवा का चयन किया जाता है।

विशेष परिस्थितियों में अलग रणनीति

  • गर्भावस्था में कुछ दवाएं निषेध हैं और सुरक्षित विकल्पों का ही उपयोग किया जाता है।
  • गुर्दे की बीमारी में एसीई इनहिबिटर्स लाभकारी हो सकते हैं पर इलेक्ट्रोलाइट की निगरानी जरूरी है।
  • स्ट्रोक या हार्ट अटैक के बाद विशेष ध्यान और धीमी गति से बीपी नियंत्रण किया जाता है।

मरीज की भागीदारी से ही सफलता

उपचार में सफलता मरीज की सहभागिता पर भी निर्भर करती है। नियमित दवा लेना, याददाश्त बढ़ाने के लिए दवा समय से लेना, डॉक्टर से फॉलोअप और जीवनशैली सुधार जारी रखना बेहद ज़रूरी है।


निष्कर्ष:
उच्च रक्तचाप का मतलब जीवनभर की चिंता नहीं है। यह एक चेतावनी है जिसे सही समय पर अपनाई गई जीवनशैली और चिकित्सा से पूरी तरह काबू में लाया जा सकता है। जागरूकता, समय पर माप और सकारात्मक जीवनशैली से न केवल दिल की सेहत सुधरती है, बल्कि पूरा जीवन स्वस्थ, सक्रिय और आनंददायक बनता है।

अगर आप भी उच्च रक्तचाप से जूझ रहे हैं, तो आज से ही एक नई शुरुआत करें — खुद की देखभाल से।

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