– विनोद कुमार

नया संसद भवन बनकर तैयार हो गया है और नए संसद भवन में संसद की कार्यवाही शुरू भी हो गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 28 मई को इसका उदघाटन किया और  19 सितंबर से इसमें लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही शुरू हो गयी। लेकिन सवाल ये है कि संसद भवन की पुरानी इमारत का क्या होगा। 

वह इमारत जहां से ढेरों कालजयी कानून पारित हुए, जहां से इतिहास रचा गया, जहां से नए राष्ट्र का निर्माण हुआ। नए संसद भवन के बाद उस पुरानी इमारत के भविष्य का क्या होगा जो खुद में करीब 96 साल का इतिहास समेटे हुए है और जो अंग्रेजी शासन और आजादी के आंदोलन से लेकर अब तक कई दौर का गवाह है।

वास्तुकला का अप्रतिम उदाहरण, करीब एक सदी तक भारत की नियति को दिशा देने के प्रतीक और अब इतिहास के पन्नों में दर्ज हो चुका ऐतिहासिक पुराना संसद भवन करीब 96 साल का इतिहास समेटे हुए है। अंग्रेजी शासन और आजादी के आंदोलन से लेकर अब तक यह भवन कई दौर का गवाह है।

भारत के लोकतंत्र के मंदिर के तौर पर पूजा जाने वाला पुराना संसद भवन बीते करीब एक शताब्दी में ब्रिटेन के साम्राज्यवादी शासन का साक्षी बना और उसके कक्षों ने स्वतंत्रता के लिए संघर्ष कर रहे क्रांतिकारियों भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त द्वारा फेंके गए बम के धमाकों की गूंज सुनी।

इस इमारत ने देश में आजादी का सवेरा होते देखा और इसे 15 अगस्त 1974 को देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के ऐतिहासिक ‘ट्राइस्ट विद डेस्टिनी’ यानी नियति से साक्षात्कार भाषण का गवाह बनने का भी सौभाग्य मिला।

संसद भवन दुनिया के उत्कृष्ट वास्तुकला का नमूना है। इसका निर्माण साल 1921 से 1927 के बीच 6 साल में किया गया था। इसको बनाने में 83 लाख रुपए खर्च हुए थे। संसद भवन का डिजाइन ब्रिटेन के मशहूर आर्किटेक्ट एडविन के लुटियन और हर्बर्ट बेकर ने तैयार किया था। लेकिन भवन की गोलाई का आकार एमपी के मुरैना स्थित चौंसठ योगिनी मंदिर से प्रेरित था। यानी भले ही वास्तुकार ब्रिटेन के थे लेकिन उन्होंने भारतीय मजदूरों के साथ मिलकर भारतीय परंपरा का निर्वाह किया था। हालांकि इसका कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नहीं है।

ड्यूक ऑफ कनॉट ने 12 फरवरी 1921 को संसद भवन की आधारशिला रखी थी। इस भवन का निर्माण अंग्रेजों ने दिल्ली में नई प्रशासनिक राजधानी बनाने के लिए किया था। संसद भवन का उद्घाटन 18 जनवरी 1927 को तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने किया था। उस समय इसे हाउस ऑफ पार्लियामेंट कहा जाता था। इसका निर्माण साल 1921 में शुरू हुआ था और 1927 में पूरा हुआ था। 19 जनवरी को केंद्रीय विधान सभा का तीसरा सत्र इसी सदन में आयोजित किया गया था। जब देश आजाद हुआ तो संविधान सभा ने इसे अपने अधिकार में ले लिया। सन् 1950 में संविधान लागू होने के बाद इसे भारतीय संसद का रूप दिया गया। 

उस दौर में संसद भवन के निर्माण में 83 लाख रुपए खर्च हुए थे। इस भवन का आकार गोलाकार है जो अशोक चक्र का प्रतीक है। यह गोलाकार इमारत एक तरह से “निरंतरता” का प्रतिनिधित्व करती है। संसद भवन 6 एकड़ में फैला है। इसमें 12 दरवाजे हैं। इसमें से 5 दरवाजे के सामने द्वार मंडप बने हुए हैं। पहली मंजिल पर खुला बरामदा है जिसमें पीले रंग के 144 खंभों की कतार है। हर खंभे की ऊंचाई 27 फुट है। संसद भवन में लॉन, जलाशय, फव्वारे और सड़कें बनी हुई हैं। पूरा परिसर सजावटी लाल पत्थर की दीवारों और लोहे के जंगलों और दरवाजों से घिरा हुआ है। इस संसद भवन की वास्तुकला पर भारतीय परंपराओं की गहरी छाप है।

संसद भवन का निर्माण अंग्रेजों ने किया था। इसके निर्माण में 6 साल का वक्त लगा था। लेकिन जरूरत के हिसाब से आजादी के बाद इसमें बदलाव भी किया गया। संसद भवन 566 मीटर व्यास में बना था। लेकिन जब ज्यादा जगह की जरूरत पड़ी तो साल 1956 में संसद भवन में 2 और मंजिलें जोड़ी गईं।

संसद भवन के केंद्र बिंदु में सेंट्रल हॉल का विशाल वृत्ताकार ढांचा है। इस गुंबद का व्यास 98 फुट और इसकी ऊंचाई 118 फुट है। केंद्रीय कक्ष के तीन तरफ लोकसभा, राज्यसभा और ग्रंथालय के तीन कक्ष हैं। उनके बीच सुंदर बगीचा है, जिसमें हरी घास और फव्वारे हैं। इन तीनों कक्षों के चारों तरफ एक चार मंजिला वृत्ताकार इमारत बनी हुई है। इसमें मंत्रियों, संसदीय समितियों के सभापतियों और पार्टी के ऑफिस हैं। संसद भवन के भूमि तल पर गलियारे की बाहरी दीवार को अनेक भित्ति-चित्रों से सजाया गया है।

संसद भवन में एक लाइब्रेरी है जिसका निर्माण 2002 में किया गया। इसका डिजाइन देश के चोटी के आर्किटेक्ट राज रावल ने बनाया। जहां देश की समृद्ध लोकतांत्रिक विरासत के 2500 सालों को दर्शाया गया। संसद भवन का केंद्रीय कक्ष इस नए परिसर के करीब है। ये लाइब्रेरी 10 एकड़ में बनाई गई है। इसमें 15 लाख से अधिक पुस्तकें हैं। 

संसद भवन दिल्ली के बीचों बीच स्थित है। यह भवन इंडिया गेट के पास और राष्ट्रपति भवन से करीब 750 मीटर की दूरी पर स्थित है।

लेकिन सवाल यह है कि नये संसद भवन के बन जाने और वहां संसद की कार्यवाही शुरू हो जाने के बाद अब पुराने संसद भवन का क्या होगाॽ इस बारे में मार्च 2021 में केंद्रीय आवास एवं शहरी विकास मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने राज्यसभा में कहा था कि जब संसद की नई इमारत बनकर तैयार हो जाएगी, तो पुरानी इमारत की मरम्मत करनी होगी और वैकल्पिक तौर पर इसका इस्तेमाल करना होगा। लेकिन पुरानी संसद भवन का क्या इस्तेमाल किया जाएगा, इस पर कोई व्यापक विचार नहीं किया गया।

सरकार के मुताबिक, पुराने संसद भवन को ढहाया नहीं जाएगा। इसे संरक्षित रखा जाएगा क्योंकि यह देश की पुरातात्विक संपत्ति है। संसद से जुड़े कार्यक्रमों के आयोजन के लिए इस इमारत का इस्तेमाल किया जाएगा। 

2022 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पुरानी संसद भवन को संग्रहालय में तब्दील किया जा सकता है। यह सेंट्रल विस्टा के पुनर्विकास प्रोजेक्ट के तहत केंद्र सरकार की योजना है। संसद भवन को संग्रहालय में तब्दील होने के बाद विजिटर्स लोकसभा चैंबर में बैठ भी सकते हैं।