आजमगढ़ के सरायमीर में ‘तहफ़्फ़ुज़-ए-मदारिस’ सम्मेलन में मदरसों की हिफाज़त और संविधान की रक्षा का संकल्प

AMN NEWS / सरायमीर (आजमगढ़),
— जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने 1 जून की रात आजमगढ़ के सरायमीर में आयोजित ‘तहफ़्फ़ुज़-ए-मदारिस’ (मदरसे की रक्षा) सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “मदरसे हमारी दुनिया नहीं, हमारा मज़हब हैं। यह हमारी पहचान हैं, और हम इस पहचान को मिटने नहीं देंगे।”
इस सम्मेलन का उद्देश्य देश में मदरसों को लेकर बढ़ती सरकारी सख्ती के खिलाफ रणनीति तैयार करना और धार्मिक संस्थाओं की हिफाज़त को लेकर कानूनी व लोकतांत्रिक लड़ाई को आगे बढ़ाना था। मौलाना मदनी ने कहा कि यह कोई साधारण बैठक नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक बैठक है जो मौजूदा हालात में मदरसों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए बुलाई गई है।
इतिहास को मिटाने की कोशिश नाकाम होगी
मौलाना मदनी ने कहा कि आज जिन मदरसों को गैरकानूनी बता कर बंद किया जा रहा है, वही मदरसे कभी देश की आज़ादी की पहली आवाज़ बने थे। उन्होंने याद दिलाया कि 1803 में जब ब्रिटिश हुकूमत ने पूरे भारत पर कब्जा कर लिया था, तब शाह अब्दुल अज़ीज़ मुहद्दिस देहलवी ने दिल्ली के मदरसा रहीमिया से फतवा जारी कर कहा था कि अब देश गुलाम हो चुका है, और इसे आज़ाद कराना धार्मिक फ़र्ज़ है।
उन्होंने 1857 की क्रांति का भी ज़िक्र किया, जिसमें हज़ारों उलेमा ने कुर्बानी दी थी। “32,000 उलेमा को सिर्फ दिल्ली में शहीद कर दिया गया था। यह इतिहास है, जिसे कोई मिटा नहीं सकता,” मौलाना ने जोर देकर कहा।
सरकारी कार्रवाई पर सवाल
मौलाना मदनी ने कहा कि आज यूपी से लेकर असम और उत्तराखंड तक मदरसों और मस्जिदों पर कार्यवाही सिर्फ धार्मिक आधार पर हो रही है। यह भारत के धर्मनिरपेक्ष और लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि यह एक सोची-समझी साजिश है, जिसके तहत बहुसंख्यक समाज को अल्पसंख्यकों के खिलाफ भड़काकर सत्ता हासिल की जा रही है।
कानूनी और लोकतांत्रिक रास्ते से लड़ाई
मौलाना मदनी ने स्पष्ट किया कि हमारी लड़ाई सरकार से है, जनता से नहीं। उन्होंने बताया कि जमीअत उलमा-ए-हिंद ने इस लड़ाई के लिए एक लीगल पैनल और आर्किटेक्ट पैनल बनाया है, जो मदरसों और मस्जिदों के निर्माण से संबंधित समस्याओं को सुलझाने में मदद करेगा।
उन्होंने कहा कि ज़मीन का वैधानिक उपयोग सुनिश्चित करना बेहद ज़रूरी है और निर्माण से पहले भूमि की स्थिति की पुष्टि कर लेनी चाहिए। उन्होंने जोर दिया कि हमें किसी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए; ज़मीन हमारी होनी चाहिए और उसे वक्फ़ के नाम पर दर्ज किया जाना चाहिए।
