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ए. अख्तर

आज के दौर में यह आम धारणा बन गई है कि नई पीढ़ी अब परिवार और बच्चों में दिलचस्पी नहीं रखती। कहा जाता है कि युवा ज़िम्मेदारियों से भागते हैं, जीवन को अकेले जीने में ज़्यादा सुकून महसूस करते हैं। मगर संयुक्त राष्ट्र की नई रिपोर्ट इस धारणा को पूरी तरह खारिज कर देती है। रिपोर्ट का कहना है कि दुनिया भर में घटती जन्म दर का कारण यह नहीं कि लोग बच्चे नहीं चाहते — बल्कि यह है कि वे बच्चे चाह कर भी नहीं कर पा रहे।

संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) द्वारा जारी ‘वैश्विक जनसंख्या स्थिति रिपोर्ट 2025’ में बताया गया है कि लाखों-करोड़ों लोग दुनिया भर में ऐसे हैं जो अपनी मर्जी से परिवार शुरू करने की क्षमता नहीं रखते। इसकी वजह आर्थिक अस्थिरता, सामाजिक दबाव, लैंगिक असमानता और भविष्य को लेकर गहरी चिंता है। यह कोई चयन नहीं, बल्कि बाध्यता बन चुकी है।

रिपोर्ट कहती है कि शादी और मातृत्व जैसे पारंपरिक निर्णय अब व्यक्तिगत पसंद का मामला नहीं रहे। जब रहने के लिए सुरक्षित घर नहीं, कामकाज में स्थायित्व नहीं और देखभाल के लिए कोई सामाजिक ढांचा नहीं, तो कोई कैसे सोच सकता है कि युवा निडर होकर संतान पैदा करने का निर्णय ले सकें?

UNFPA और YouGov द्वारा 14 देशों में किए गए एक सर्वे के अनुसार — जो दुनिया की 37% जनसंख्या का प्रतिनिधित्व करते हैं — करीब 39% प्रतिभागियों ने स्वीकार किया कि उनके पास पर्याप्त आर्थिक संसाधन नहीं हैं, इसलिए वे परिवार नहीं बढ़ा पा रहे। यह आंकड़ा बताता है कि मातृत्व या पितृत्व की इच्छा खत्म नहीं हुई है, बल्कि परिस्थिति ने उसे पीछे धकेल दिया है।

रोज़गार की अनिश्चितता, जलवायु संकट, युद्ध और समाज की अस्थिरता भी प्रमुख कारण बने हैं। कई प्रतिभागियों ने बताया कि जब उनका अपना भविष्य अधर में है, तो वे अगली पीढ़ी की जिम्मेदारी कैसे उठा सकते हैं। महिलाओं ने घरेलू कार्य और बच्चों की देखभाल के असमान बोझ को भी एक बड़ी रुकावट बताया।

इस रिपोर्ट में एक और चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि हर तीन में से एक वयस्क ने जीवन में कभी न कभी अनचाहा गर्भधारण झेला है। हर पांच में से एक व्यक्ति ने माना कि उस पर जबरदस्ती संतान पैदा करने का दबाव डाला गया। और हर चार में से एक यह कहता है कि वह अपने इच्छित समय पर बच्चा पैदा नहीं कर पाया।

रिपोर्ट उन सरकारों और नीतियों को भी चेतावनी देती है जो घटती जन्मदर के संकट को तात्कालिक उपायों से ठीक करना चाहती हैं — जैसे नकद प्रोत्साहन, कर रियायतें या मातृत्व पर जोर देना। UNFPA का कहना है कि ये कदम अक्सर सतही होते हैं और कई बार मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं, खासकर तब जब महिलाओं के शरीर को “जनसंख्या सुधार योजना” का माध्यम बना दिया जाता है।

इसके बजाय, यह आवश्यक है कि सरकारें लोगों को सच में विकल्प दें — ताकि वे स्वयं तय कर सकें कि कब और कितने बच्चे चाहिए, या फिर बिल्कुल नहीं चाहिए। रिपोर्ट यह भी कहती है कि यदि परिवार शुरू करना एक वास्तविक विकल्प बनाना है, तो समाज को मातृत्व/पितृत्व अवकाश, सुरक्षित नौकरी, स्वास्थ्य सेवाएं, सस्ते आवास और संतुलित घरेलू जिम्मेदारियों जैसे क्षेत्रों में ठोस निवेश करना होगा।

UNFPA ने यह भी सुझाया है कि यदि घटती जनसंख्या और श्रमिकों की कमी को लेकर वाकई चिंता है, तो प्रवासन (migration) को समस्या नहीं बल्कि समाधान के रूप में अपनाया जाए। साथ ही, कामकाज के स्थानों पर ऐसी नीतियां बनें जो पिता को बच्चों की परवरिश में सक्रिय भूमिका निभाने की छूट दें और मांओं को काम से बाहर न धकेलें।

यह रिपोर्ट एक सीधा सवाल उठाती है — क्या हम एक ऐसी दुनिया बना पाए हैं जहां हर इंसान को यह तय करने की स्वतंत्रता हो कि वह कब और कैसे परिवार शुरू करना चाहता है? शायद नहीं। और जब तक यह स्वतंत्रता सिर्फ सिद्धांतों तक सीमित रहेगी, तब तक प्रजनन दर में गिरावट कोई रहस्य नहीं बल्कि एक चेतावनी रहेगी।

जब सपनों पर बोझ भारी पड़ जाए

UNFPA और YouGov द्वारा किए गए एक अंतरराष्ट्रीय सर्वे में चौंकाने वाली बातें सामने आईं:

  • 39% लोगों ने कहा कि आर्थिक तंगी ही उन्हें संतान पैदा करने से रोक रही है।
  • 21% ने भविष्य की अनिश्चितता, खासतौर से रोज़गार को बड़ा कारण बताया।
  • 19% ने युद्ध, जलवायु परिवर्तन और सामाजिक अस्थिरता को दोषी ठहराया।
  • महिलाओं का कहना है कि घरेलू कामकाज का असमान बोझ उन्हें सीमित परिवार के लिए मजबूर करता है।

इतना ही नहीं, हर तीन में से एक वयस्क ने कभी न कभी अनचाहा गर्भधारण झेला है, और हर पाँच में से एक व्यक्ति पर संतान पैदा करने का दबाव डाला गया — भले ही वह तैयार न हो।


जन्मदर की नहीं, “चुनाव की आज़ादी” की है चिंता

UNFPA की यह रिपोर्ट स्पष्ट करती है कि असली संकट कम होती जन्मदर नहीं, बल्कि यह है कि लोगों को यह तय करने की आज़ादी ही नहीं मिल रही कि वे कब और कितने बच्चे चाहते हैं

इसलिए वह सरकारों को आगाह करती है — कैश प्रोत्साहन, या जनसंख्या बढ़ाने के लिए दबाव डालना एक खतरनाक रास्ता है। इससे न सिर्फ नतीजे नहीं मिलते, बल्कि यह मानवाधिकारों का उल्लंघन भी हो सकता है।


क्या करने की ज़रूरत है?

रिपोर्ट की सिफ़ारिशें सीधी और स्पष्ट हैं:

मातृत्व-पितृत्व अवकाश को व्यापक और पूर्ण वेतन वाला बनाया जाए
आवास, स्वास्थ्य सेवाएं और सम्मानजनक रोज़गार की व्यवस्था हो
प्रजनन अधिकारों पर लगे प्रतिबंध हटाए जाएं
पिता और माता दोनों को बराबरी से परिवार की जिम्मेदारियां निभाने के अवसर दिए जाएं
प्रवासन (migration) को श्रमिकों की कमी का समाधान माना जाए, न कि समस्या


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