भारत में परिवार एक पवित्र संस्था है, लेकिन पीढ़ियों के बीच की खाई गहराती जा रही है। INBO रिपोर्ट एक आईना भी है और एक रास्ता भी—जो हमें दिखाता है कि कैसे हम इस खामोश दूरी को पाट सकते हैं और रिश्तों को नए सिरे से जोड़ सकते हैं।

Staff Reporter / New Delhi
विश्व बुज़ुर्ग दुर्व्यवहार जागरूकता दिवस (15 जून) की पूर्व संध्या पर HelpAge India द्वारा जारी की गई एक क्रांतिकारी रिपोर्ट ‘इंडिया इंटरजनरेशनल बॉन्ड्स – INBO’ ने शहरी भारत के बदलते पारिवारिक रिश्तों की एक भावनात्मक और यथार्थपूर्ण तस्वीर पेश की है।
यह रिपोर्ट केवल आंकड़ों की बात नहीं करती—यह उस भावनात्मक धड़कन को पकड़ती है, जहां पीढ़ियाँ एक ही छत के नीचे तो रहती हैं, लेकिन अक्सर जज़्बातों के स्तर पर बेहद दूर होती हैं।
यह राष्ट्रीय अध्ययन इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में प्रस्तुत किया गया, जिसमें देश के 10 बड़े शहरों—मेट्रो और नॉन-मेट्रो जैसे दिल्ली, मुंबई, कानपुर, मदुरै आदि शामिल हैं। कुल 5798 प्रतिभागियों से बातचीत की गई, जिनमें 70% युवा (18–30 वर्ष) और 30% बुज़ुर्ग (60 वर्ष से ऊपर) थे। रिपोर्ट में यह समझने की कोशिश की गई है कि आज के शहरी परिदृश्य में युवा और बुज़ुर्ग एक-दूसरे को कैसे देखते हैं, किस तरह संवाद करते हैं, और कितनी भावनात्मक निकटता महसूस करते हैं।

रिपोर्ट के निष्कर्ष: जुड़ाव और जटिलता की दोहरी तस्वीर
ऊपरी तौर पर सब कुछ ठीक-ठाक लगता है—86% बुज़ुर्गों ने कहा कि उन्हें युवा पीढ़ी से सम्मान मिलता है। लेकिन गहराई में झांकें, तो एक चुप्पी और दूरी नजर आती है। कई बुज़ुर्गों ने यह कहते हुए निराशा जताई: “हमसे पूछा नहीं जाता, बस बताया जाता है।”
यह वाक्य उस भावनात्मक खाई की ओर इशारा करता है, जो दृष्टिकोण और व्यवहार के बीच मौजूद है।
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“क्या हम सच में अपने बुज़ुर्गों की सुनते हैं, या सिर्फ मान लेते हैं कि हम सुन रहे हैं?” HelpAge India के सीईओ रोहित प्रसाद सवाल करते हैं।
“भारत एक साथ दुनिया की सबसे युवा और वृद्ध आबादी वाला देश बनने जा रहा है। इसलिए हमें पीढ़ियों के बीच सहयोग और साझा उद्देश्य को बढ़ावा देना होगा, तभी हम असली ‘इंटरजनरेशनल डिविडेंड’ का लाभ उठा सकेंगे।”
भारत की जनसांख्यिकीय तस्वीर भी इसकी पुष्टि करती है। 2025 में भारत की 12% आबादी 60 वर्ष से ऊपर है, जो 2050 तक बढ़कर 19% हो जाएगी। वहीं, 15–29 आयु वर्ग के 36.5 करोड़ से अधिक युवा देश की ऊर्जा का आधार हैं।
युवाओं की सोच: सहानुभूति और पूर्वाग्रह दोनों का मिश्रण
युवाओं के अनुसार बुज़ुर्ग “अकेले” (56%), “निर्भर” (48%), लेकिन साथ ही “बुद्धिमान” (51%) और “सम्मानित” (43%) भी हैं।
मल्टी-जनरेशनल परिवारों में रिश्ते गहरे होते हैं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि जो युवा बुज़ुर्गों से दूर रहते हैं, वे उम्र बढ़ने को लेकर अधिक सकारात्मक दृष्टिकोण रखते हैं।
“आज का युवा उदासीन नहीं है—वह जुड़ना चाहता है, मदद करना चाहता है,” HelpAge India की नीति एवं शोध प्रमुख अनुपमा दत्ता कहती हैं।
“वे चाहते हैं कि विश्वविद्यालयों में बुढ़ापे को लेकर शिक्षा हो, वे डिजिटल साक्षरता से लेकर रोजमर्रा की मदद तक करना चाहते हैं। बस उन्हें सक्षम बनाने की ज़रूरत है।”
मीडिया की भूमिका: आईना या निर्माणकर्ता?
80% युवाओं ने माना कि मीडिया से उनके बुज़ुर्गों को देखने के नजरिये पर असर पड़ता है—मीडिया उन्हें कभी बुद्धिमान गुरु, तो कभी हास्य का पात्र या लाचार दिखाता है।
यह छवि युवाओं के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती है।
इसी को ध्यान में रखते हुए HelpAge India अपनी #GenerationsTogether मुहिम को आगे बढ़ा रहा है—डिजिटल टूल्स, वालंटियरिंग और एजुकेशन के ज़रिए पीढ़ियों के बीच सेतु निर्माण की कोशिश।
“हम मीडिया, उद्योग और शैक्षणिक संस्थानों के साथ मिलकर वृद्धावस्था की सकारात्मक और गहन छवि गढ़ने पर काम कर रहे हैं,” COO प्रतीप चक्रवर्ती कहते हैं।
“दया नहीं, साझेदारी चाहिए!”
भारत में परिवार एक पवित्र संस्था है, लेकिन पीढ़ियों के बीच की खाई गहराती जा रही है। INBO रिपोर्ट एक आईना भी है और एक रास्ता भी—जो हमें दिखाता है कि कैसे हम इस खामोश दूरी को पाट सकते हैं और रिश्तों को नए सिरे से जोड़ सकते हैं।
युवा सोच: सहानुभूति और पूर्वाग्रह दोनों साथ
युवाओं की नजर में बुजुर्ग:
- अकेले – 56%
- निर्भर – 48%
- बुद्धिमान – 51%
- सम्मानित – 43%