सरकार दो स्लैब व्यवस्था लाने की तैयारी में, उपभोक्ता मांग बढ़ाने का लक्ष्य

संवाददाता / नई दिल्ली
त्योहारी सीज़न से पहले सरकार वस्तु एवं सेवा कर (GST) ढांचे में बड़ा सुधार करने की तैयारी कर रही है। प्रस्तावित बदलावों का मकसद दरों को सरल बनाना, अनुपालन का बोझ घटाना और उपभोक्ता खर्च को प्रोत्साहन देना है।
सूत्रों के अनुसार, मौजूदा बहु-दर प्रणाली को घटाकर केवल दो मुख्य स्लैब किए जाने का विचार है – आवश्यक वस्तुओं पर 5% और बाकी अधिकतर सामानों पर 18%। 28% की ऊपरी दर को खत्म किया जा सकता है और इसमें आने वाले सामानों को 18% स्लैब में स्थानांतरित किया जाएगा। वहीं 12% स्लैब के अंतर्गत आने वाले अधिकांश उत्पाद 5% श्रेणी में आ सकते हैं। तंबाकू व अन्य “पाप वस्तुओं” पर 40% की अधिकतम दर बरकरार रहेगी।
0.25% और 3% की विशेष दरों तथा छूट वाले सामानों पर कोई बदलाव नहीं किया जाएगा। मुआवजा उपकर (compensation cess) को धीरे-धीरे खत्म कर 40% श्रेणी में समाहित किया जा सकता है।
3-4 सितंबर को जीएसटी काउंसिल की बैठक
56वीं जीएसटी काउंसिल बैठक 3 और 4 सितंबर को नई दिल्ली में होगी, जिसकी अध्यक्षता केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण करेंगी। इसी बैठक में दर संरचना में बदलाव पर अंतिम फैसला लिया जा सकता है।
उद्योग जगत की प्रतिक्रिया
बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, “केंद्र सरकार का उद्देश्य उपभोक्ता वस्तुओं पर कर बोझ घटाकर मांग को बढ़ाना है। त्योहारी सीज़न से पहले यह कदम बाजार में रौनक ला सकता है। कम स्लैब से अनुपालन आसान होगा और यदि रोज़मर्रा की वस्तुएं सस्ती होती हैं तो महंगाई में भी कमी आएगी।”
व्यापारिक संगठन कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (CAIT) ने इसे उपभोक्ताओं के लिए “बड़ा तोहफ़ा” बताया, लेकिन कार्बोनेटेड पेयों को 18% स्लैब में लाने की मांग की। उनका कहना है कि कोल्ड ड्रिंक जैसी पेय सामग्री किराना दुकानों की लगभग 30% बिक्री में योगदान देती है और दरों में कटौती से छोटे व्यापारियों को राहत मिलेगी।
होटल एसोसिएशन ऑफ इंडिया (HAI) ने कहा कि पर्यटन क्षेत्र की प्रतिस्पर्धा बनाए रखने के लिए होटल सेवाओं पर दर घटाना ज़रूरी है। संगठन ने होटल कमरों पर 12% जीएसटी स्लैब की सीमा ₹7,500 से बढ़ाकर ₹15,000 करने और सभी होटल व रेस्टोरेंट सेवाओं पर इनपुट टैक्स क्रेडिट के साथ 5% जीएसटी लगाने की सिफारिश की।
इंडियन वेजिटेबल ऑयल प्रोड्यूसर्स एसोसिएशन (IVPA) ने इनवर्टेड ड्यूटी स्ट्रक्चर से जुड़ी समस्या को हल करने पर ज़ोर दिया। उनका कहना है कि इनपुट टैक्स क्रेडिट रिफंड पर प्रतिबंध से खासकर एमएसएमई इकाइयों की पूंजी फंस रही है और उपभोक्ता कीमतें बढ़ रही हैं।
राजस्व तटस्थता चुनौती
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इस सुधार की सबसे बड़ी कसौटी यह होगी कि क्या यह राजस्व तटस्थ (revenue neutral) रहेगा। वर्तमान में जीएसटी राजस्व का दो-तिहाई हिस्सा 18% स्लैब से आता है, जबकि 28% स्लैब से करीब 10–11% योगदान है। इसे 18% में लाने से उपभोक्ताओं को राहत तो मिलेगी, लेकिन राजस्व पर दबाव आ सकता है।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर, प्रस्तावित सुधार से उपभोक्ता वस्तु क्षेत्र, आतिथ्य उद्योग और छोटे व्यापारियों को लाभ मिलने की उम्मीद है। हालांकि केंद्र सरकार की वित्तीय स्थिति पर इसका असर देखने योग्य होगा। अर्थशास्त्री सबनवीस ने कहा, “यह शून्य-योग खेल है। यदि उपभोक्ता को राहत मिलती है तो बजट को बोझ उठाना होगा। लेकिन जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था तेज़ी से बढ़ेगी, यह संतुलन अपने आप सुधर जाएगा।”
