Last Updated on November 12, 2025 8:03 pm by INDIAN AWAAZ

आर. सूर्यामूर्ति
भारत की खुदरा मुद्रास्फीति (Retail Inflation) अक्टूबर महीने में 0.25 प्रतिशत पर आ गई है — जो 2012 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) लागू होने के बाद से सबसे धीमी वृद्धि दर है। खाद्य वस्तुओं की कीमतों में भारी गिरावट और वस्तु एवं सेवा कर (GST) में की गई कटौती का असर पूरे आर्थिक तंत्र में दिखाई दे रहा है। सांख्यिकी एवं कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अनुसार, सितंबर में 1.44 प्रतिशत रही मुद्रास्फीति में यह तेज गिरावट सस्ते उपभोग्य वस्तुओं, बेहतर फसल उत्पादन और कम इनपुट लागतों का नतीजा है।
सबसे बड़ा योगदान खाद्य वस्तुओं का रहा। उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक (CFPI) में साल-दर-साल 5.02 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई, जबकि सितंबर में यह गिरावट 2.33 प्रतिशत थी। सब्जियों, अनाज, फलों, खाद्य तेलों और अंडों की कीमतों में भारी कमी आई है। बेहतर आपूर्ति व्यवस्था और वैश्विक बाजारों में नरमी ने मुद्रास्फीति के दबाव को ठंडा किया। ग्रामीण क्षेत्रों में खाद्य मुद्रास्फीति माइनस 4.85 प्रतिशत, जबकि शहरी क्षेत्रों में यह माइनस 5.18 प्रतिशत रही — जो CPI के आधार वर्ष के बाद से सबसे कम है।
कुल मिलाकर, ग्रामीण मुद्रास्फीति माइनस 0.25 प्रतिशत पर पहुंच गई, जो सितंबर के 1.07 प्रतिशत से कम है, वहीं शहरी मुद्रास्फीति 0.88 प्रतिशत रही, जो पिछले महीने के 1.83 प्रतिशत से घटी है। परिवहन, जूते-चप्पल और संचार सेवाओं की कीमतों में भी नरमी आई। आवासीय मुद्रास्फीति 2.96 प्रतिशत पर स्थिर रही, जबकि शिक्षा क्षेत्र में 3.49 प्रतिशत की हल्की वृद्धि और स्वास्थ्य सेवाओं में 3.86 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई।
मंत्रालय ने इस व्यापक नरमी का श्रेय कर राहत, मानसून के बाद सुधरी लॉजिस्टिक्स व्यवस्था, और कम इनपुट लागतों को दिया। हालांकि राज्यों के बीच स्थिति असमान रही। केरल में सबसे अधिक 8.56 प्रतिशत मुद्रास्फीति दर्ज की गई, जो ऊंची खाद्य और सोने की कीमतों से प्रेरित थी। वहीं बिहार (-1.97%), उत्तर प्रदेश (-1.71%), और मध्य प्रदेश (-1.62%) जैसे राज्यों में मुद्रास्फीति नकारात्मक रही, जो ग्रामीण मांग में कमी और खरीद क्षमता घटने का संकेत देती है।
अर्थशास्त्रियों का कहना है कि इतनी कम मुद्रास्फीति भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को मौद्रिक नीति में नरमी लाने का अवसर देती है। बैंक ऑफ बड़ौदा के मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, “मुख्य आंकड़े उम्मीद के मुताबिक हैं। हमें लगता है कि औसत मुद्रास्फीति इस साल लगभग 2.5 प्रतिशत के आसपास रहेगी और मार्च 2026 तक 4 प्रतिशत तक बढ़ेगी।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि अनाज और दालों के दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे चले गए हैं, जिससे किसानों की आमदनी पर असर पड़ सकता है।
कैपिटल इकोनॉमिक्स के एशिया अर्थशास्त्री शिवान तंडन ने कहा कि “करीब 26 साल में सबसे कम मुद्रास्फीति दर से ब्याज दरों में कटौती का रास्ता खुलता है।” उनके अनुसार, RBI दिसंबर में नीति दर को 5.5 प्रतिशत से घटाकर 5 प्रतिशत तक ला सकता है। उन्होंने कहा, “मुद्रास्फीति अगले कुछ तिमाहियों तक 4 प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे रहेगी, उसके बाद धीरे-धीरे बढ़ेगी।”
आईसीआरए की मुख्य अर्थशास्त्री अदिति नायर ने कहा कि CPI का आंकड़ा उम्मीद से थोड़ा कम है और यह मुख्यतः खाद्य व पेय पदार्थों की मुद्रास्फीति में गिरावट (3.7% बनाम 1.4%) से प्रेरित है। “महीना-दर-महीना कीमतों में केवल 0.2 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है, जबकि पिछले साल यह 1.3 प्रतिशत थी,” उन्होंने बताया।
कोटक महिंद्रा बैंक की मुख्य अर्थशास्त्री उपासना भारद्वाज ने कहा कि हालांकि मुद्रास्फीति नियंत्रण में है, RBI को “त्योहारी और GST से जुड़ी मांग को वास्तविक सुधार से अलग करना होगा।” उन्होंने कहा कि यदि विकास की रफ्तार अनिश्चित रहती है, तो केंद्रीय बैंक सीमित स्तर पर दरों में कटौती कर सकता है।
फिलहाल अक्टूबर के आंकड़े सरकार और आम जनता दोनों के लिए राहत की खबर हैं — कीमतों में ठहराव के साथ आर्थिक विकास का संतुलन कायम रहा है, भले ही आने वाले महीनों में वैश्विक तेल कीमतों और आधार प्रभाव में बदलाव से यह राहत अस्थायी साबित हो।
