
भारतीय सिनेमा के महान अभिनेता धरमेंद्र अब हमारे बीच नहीं रहे। लंबी बीमारी से संघर्ष करने के बाद उनका निधन हो गया, लेकिन वे अपने पीछे ऐसा शानदार, ऐसी यादें और ऐसा व्यक्तित्व छोड़ गए हैं जो आने वाली पीढ़ियों को प्रेरित करता रहेगा। पंजाब के साधारण से गांव में धर्म सिंह देओल के रूप में जन्मे धरमेंद्र ने मेहनत और लगन के दम पर बॉलीवुड के सबसे चमकते सितारों में अपनी jagah बनाई।
सपनों की पोटली लेकर मुंबई का सफर
1950 के दशक में धरमेंद्र महज़ सपनों के सहारे मुंबई आए थे। एक टैलेंट कॉन्टेस्ट ने उन्हें पहला मौका दिया, लेकिन इंडस्ट्री में जगह बनाना उनकी मेहनत, धैर्य और असाधारण स्क्रीन प्रेज़ेंस का नतीजा था। अनपढ़, बंदिनी और सत्यकाम जैसी फिल्मों ने उन्हें गंभीर, संवेदनशील और शक्तिशाली अभिनेता के रूप में स्थापित किया।
‘ही-मैन’ की चमक
60 और 70 के दशक में धरमेंद्र अपनी रौबीली पर्सनैलिटी, आकर्षक अंदाज़ और दमदार एक्शन की वजह से बॉलीवुड के “ही-मैन” बन गए। शोले का वीरू, चुपके चुपके की कॉमेडी, यादों की बारात और जुगनू जैसे एक्शन रोल—ये सब उनकी बहुमुखी प्रतिभा का प्रमाण हैं।

कैमरे के पीछे एक सरल, भावुक इंसान
धरमेंद्र को उनके सह-कलाकार हमेशा एक विनम्र, संवेदनशील और बेहद उदार इंसान के रूप में याद करते हैं। उन्हें खेती, प्रकृति और कविता से गहरा लगाव था—और यही सादगी उनके व्यक्तित्व को खास बनाती थी।
एक परिवार, एक विरासत
उनकी विरासत आज उनके परिवार में जीवित है—सनी देओल, बॉबी देओल, ईशा देओल और अब नई पीढ़ी भी सिनेमा में अपनी राह बना रही है। धरमेंद्र सिर्फ एक एक्टर नहीं, बल्कि एक युग थे।
हमेशा दिलों में जिंदा
धरमेंद्र भले दुनिया से रुख़सत हो गए हों, लेकिन उनका जादू, उनकी मुस्कान और उनका अद्भुत फिल्मी सफर हमेशा भारतीय सिनेमा में जीवित रहेगा। वे सचमुच एक अमर कलाकार थे।
